2024 से पहले चुनाव आयोग पर कौन सा विधेयक पास हुआ, 'बिलडोजर' कह भड़का विपक्ष
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2024 से पहले चुनाव आयोग पर कौन सा विधेयक पास हुआ, 'बिलडोजर' कह भड़का विपक्ष

राज्यसभा में चुनाव आयोग से संबंधित एक महत्वपूर्ण बिल पास हो गया है. विपक्ष ने गंभीर आरोप लगाते हुए सदन से वॉकआउट किया. अब इस बिल को 'बिलडोजर' (Billdozer) कहा जा रहा है. केंद्रीय कानून मंत्री ने संसद में कुछ बातें स्पष्ट की हैं, सरकार ने विपक्ष के विरोध पर कुछ संशोधन भी किए हैं लेकिन तीन सदस्यीय समिति पर स्थिति स्पष्ट नहीं है. 

2024 से पहले चुनाव आयोग पर कौन सा विधेयक पास हुआ, 'बिलडोजर' कह भड़का विपक्ष

Election Commissioner Appointment: राजस्थान में नए सीएम के सस्पेंस से पर्दा उठने की गहमागहमी के बीच कल राज्यसभा ने एक महत्वपूर्ण विधेयक को पारित कर दिया, जिसकी चर्चा कम हुई. हालांकि विपक्ष हमलावर है. उच्च सदन में विपक्षी सदस्यों ने वॉकआउट भी किया. विपक्ष के नेता इसे 'बिलडोजर' कह रहे हैं. खास बात यह है कि 2024 लोकसभा चुनाव से पहले जो बिल पास कराया गया है वह चुनाव आयोग से संबंधित है और विपक्षी सदस्य सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर रहे हैं. ऐसे में यह समझना जरूरी हो जाता है कि इस बिल में ऐसा क्या है कि विपक्ष तिलमिला गया है. आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि इस 'बिलडोजर' के माध्यम से सरकार ने लोकतंत्र को कुचलने का काम किया है. अगर देश में निष्पक्ष चुनाव आयोग नहीं होगा तो क्या निष्पक्ष चुनाव हो सकता है? अगर स्वतंत्र और निष्पक्ष इलेक्शन कमीशन नहीं होगा तो क्या स्वतंत्र और निष्पक्ष इलेक्शन हो सकता है, यह सवाल खड़ा होता है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एक फॉर्मूला दिया था कि तीन सदस्यों की समिति बनाइए- प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और भारत के चीफ जस्टिस हों. ये समिति तय करे कि कौन चुनाव आयोग में बैठेगा, उसका गठन कैसे होगा. 12 दिसंबर को सरकार ने बिल लाकर पीएम और नेता प्रतिपक्ष को नहीं छेड़ा लेकिन चीफ जस्टिस को बाहर का दरवाजा दिखाकर एक मनोनीत कैबिनेट मंत्री को उनकी जगह बिठा दिया. राघव ने कहा कि अब इस तीन सदस्यीय समिति में दो वोट हमेशा सरकार के पास होंगे. 

राज्यसभा ने मंगलवार को मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्तियों, उनकी सेवा शर्तों से संबंधित विधेयक पारित किया. बिल के जरिए चुनाव आयुक्तों के दर्जे को सुप्रीम कोर्ट के जजों के बराबर बनाए रखने, चयन समिति से संबंधित नया प्रावधान जोड़ने जैसे महत्वपूर्ण संशोधन शामिल हैं। विधेयक ध्वनिमत से पारित हो गया जबकि विपक्षी सदस्यों ने आरोप लगाया कि प्रस्तावित विधेयक चुनाव आयोग को कार्यपालिका के अधीन करता है और संविधान का उल्लंघन करता है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यह सीईसी और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को दरकिनार करने का प्रयास है. मंत्री के जवाब पर नाखुशी जाहिर करते हुए सदन से वॉकआउट किया गया। सरकार ने चुनाव आयुक्तों के दर्जे को वापस सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर तो कर दिया है लेकिन इस बात पर कोई बदलाव नहीं दिखता है जिसमें सिलेक्शन पैनल में चीफ जस्टिस की जगह केंद्रीय मंत्री को रखने की बात थी. 

चुनाव आयुक्त फिर से जज के बराबर

इस साल अगस्त में जब उच्च सदन में विधेयक पेश किया गया था तो विपक्षी दलों और कुछ पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्तों ने निर्वाचन आयोग के सदस्यों की तुलना कैबिनेट सचिव से किए जाने पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने दावा किया था कि इस कदम से संस्थान की स्वतंत्रता से समझौता होगा। अभी सीईसी और निर्वाचन आयुक्तों को सुप्रीम कोर्ट के जज का दर्जा प्राप्त है। संशोधन लाकर सरकार ने उस दर्जे को बरकरार रखा है। 

और क्या बदला

  1. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि चयन समिति के ढांचे में सुधार के लिए कुछ संशोधन लाए गए हैं, जिसे पहले कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में प्रस्तावित किया गया था. एक अन्य संशोधन के तहत, सीईसी और अन्य आयुक्तों को सुप्रीम कोर्ट के जज के वेतन के बराबर वेतन का भुगतान किया जाएगा.
  2. कानून मंत्री ने कहा कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू करने से संरक्षण से संबंधित एक नया प्रावधान भी संशोधन के माध्यम से पेश किया गया है. दरअसल, तेलंगाना हाई कोर्ट ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार और कई अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए पुलिस को दिए गए निर्देश के सिलसिले में एक विशेष सत्र न्यायाधीश को निलंबित कर दिया था. इस संदर्भ में मेघवाल ने कहा कि नए प्रावधान में ऐसी घटनाओं को रोकने की बात कही गई है.
  3. एक अन्य संशोधन में यह स्पष्ट किया गया है कि जिस प्रकार सुप्रीम कोर्ट के जज को उनके पद से हटाने का प्रावधान है वही मुख्य निर्वाचन आयुक्त पर लागू होगा. 
  4. यह भी कहा गया है कि अन्य निर्वाचन आयुक्तों को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश के अलावा पद से नहीं हटाया जा सकेगा. निर्वाचन आयोग के एक पूर्व अधिकारी ने कहा कि ये दोनों स्पष्टीकरण निर्वाचन आयोग से संबंधित अनुच्छेद 324 में उल्लिखित संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप हैं. 

इसकी जरूरत ही क्या थी?

कानून मंत्री ने कहा कि निर्वाचन आयोग का कामकाज निष्पक्ष रहा है और यह ऐसा ही रहेगा. उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार इसे इसी तरह से बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है. नए कानून की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि पहले के अधिनियम में कमजोरियां थीं. मेघवाल ने विपक्ष के इन आरोपों का भी खंडन किया कि यह विधेयक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्तियों से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को दरकिनार करने के लिए लाया गया है. उन्होंने कहा, ‘यह विधेयक जो हम लाए हैं वह उच्चतम न्यायालय के खिलाफ नहीं है. इसे सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत लाया गया है. यह अनुच्छेद 324 (2) के तहत सूचीबद्ध प्रावधानों के अनुसार है. यह संविधान के अनुच्छेद 50 के तहत सूचीबद्ध शक्तियों के पृथक्करण का भी अनुसरण करता है.’ 

यह विधेयक तब लाया गया था जब मार्च में उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति इन आयुक्तों की नियुक्ति पर संसद द्वारा कानून बनाए जाने तक सीईसी और चुनाव आयुक्तों का चयन करेगी. विधेयक के अनुसार, प्रधानमंत्री चयन समिति के प्रमुख होंगे जबकि लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री अन्य दो सदस्य होंगे.

'मृत बच्चे की तरह कानून'

कांग्रेस सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि प्रस्तावित कानून संविधान की मूल भावना को पूरी तरह नकारता है और उसका उल्लंघन करता है. उन्होंने आरोप लगाया, ‘यह निर्वाचन आयोग को पूरी तरह नकारता है और कार्यपालिका के अधिकार के अधीन करता है और यह स्वेच्छा से, दुर्भावनापूर्ण तरीके से उच्चतम न्यायालय के फैसले को खत्म करता है और यही कारण है कि यह कानून मृत बच्चे की तरह है.’ (भाषा से इनपुट के साथ)

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