Electoral Bond: 'क्या ED अब भाजपा की संपत्ति जब्त करेगी?' उद्धव के 'सामना' ने क्यों लिया दाऊद-इकबाल मिर्ची का नाम?
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Electoral Bond: 'क्या ED अब भाजपा की संपत्ति जब्त करेगी?' उद्धव के 'सामना' ने क्यों लिया दाऊद-इकबाल मिर्ची का नाम?

Saamana Editorial: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चुनावी बॉन्ड चर्चा में है. उद्धव ठाकरे के शिवसेना गुट ने बीजेपी के खिलाफ ईडी एक्शन की मांग की है. सामना के संपादकीय में लिखा गया कि चुनावी बॉन्ड से किसने पैसा दिया पता नहीं, क्या अब ईडी विपक्ष को छोड़ बीजेपी पर कार्रवाई करेगी?

Electoral Bond: 'क्या ED अब भाजपा की संपत्ति जब्त करेगी?' उद्धव के 'सामना' ने क्यों लिया दाऊद-इकबाल मिर्ची का नाम?

Electoral Bond BJP News: इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम रद्द किए जाने के बाद उद्धव ठाकरे के गुट वाली शिवसेना ने भाजपा पर हमला बोला है. पार्टी के मुखपत्र 'सामना' ने संपादकीय में लिखा कि ‘EVM’ और ‘इलेक्टोरल बॉन्ड’ हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के सबसे बड़े घोटाले माने जाते हैं. आगे संपादकीय में दानदाताओं के रूप में दाऊद इब्राहिम और इकबाल मिर्ची जैसे नाम लेते हुए गंभीर सवाल खड़े किए गए. कहा गया कि ‘ईवीएम’ से किसी को दिया गया वोट ‘कमल’ को जाता है और इस समय ईवीएम के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन चल रहा है, जबकि इलेक्टोरल बॉन्ड भाजपा के खजाने में पैसा इकट्ठा करने का एक साधन बन गया था.

लेख में कहा गया कि चुनावी चंदा इकट्ठा करने के लिए मोदी सरकार ने ‘इलेक्टोरल बॉन्ड’ योजना शुरू की थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि यह पूरी योजना असंवैधानिक है. चुनावी फंड के तौर पर इस योजना के जरिए भाजपा ने अब तक 7 से 8 हजार करोड़ रुपए जुटाए हैं और यह पैसा इन्हें किसने और किन कारणों से दिया? इसके बदले उन सभी दानदाताओं को भाजपा से क्या फायदा मिला, यह गोपनीय है.

आगे पढ़िए सामना का संपादकीय 

'जिन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए पैसे दिए, उनके नाम गुप्त रखे गए, यह तो एक बड़ा घोटाला है. फिर उन दानदाताओं में कोई दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील, नीरव मोदी, इकबाल मिर्ची, चीनी कंपनियां आदि हैं या अडानी आदि का पैसा परोक्ष रूप से भाजपा की तिजोरी में जमा हो रहा है इसका पता नहीं चलता. कुल मिलाकर इलेक्टोरल बॉन्ड का मतलब काले पैसे को सफेद कर फिर से भाजपा की तिजोरी में पहुंचाने का मामला है और उसे पीएमएलए कानून के अंतर्गत ‘मनी लॉन्ड्रिंग’ कहा जाता है.

अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘इस तरह की लीपापोती का धंधा ठीक नहीं है. पारदर्शिता के नाम पर जनता के साथ इस तरह की लीपापोती ठीक नहीं है.’ इसका मतलब यह है कि इस लेनदेन में भाजपा ने उद्योगपतियों, व्यापारियों, ठेकेदारों के काले धन को चुनाव फंड के नाम पर अपनी तिजोरी में भर लिया है. मोदी के पास असीमित शक्ति है. लोकतंत्र वगैरह जैसी चीजें उन्हें स्वीकार नहीं. पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसा और उसी पैसे से फिर से सत्ता खरीदना, यही उनके लोकतंत्र की व्याख्या है. इस पैसे को इकट्ठा करने के लिए उन्होंने आतंक का सहारा लिया, केंद्रीय जांच ब्यूरो के हंटर का इस्तेमाल किया. देश के सारे उद्योग, संसाधन, सार्वजनिक संपत्ति एक ही मित्र के नाम करनेवाली मोदी सरकार पर इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में कैसे भरोसा किया जाए? मोदी सरकार की नीति सारा पैसा अपने पास रखना और अपने राजनीतिक विरोधियों की तिजोरी में छेद करना है.

भाजपा का नाड़ा खुल गया...

भाजपा छोड़कर अगर कोई विपक्ष की मदद करता है तो उन्हें धमकाया जाएगा, उनके चारों ओर जांच का फंदा बनाया जाएगा, छापे मारे जाएंगे, पैसे जब्त किए जाएंगे. लोकतंत्र में विपक्ष को टिकने ही नहीं देना है. सभी मामलों में उनको फंसाना है. इसमें आर्थिक सूत्रों को घेरना भी है. अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त फैसला सुनाया है. कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड के लेनदेन और बिक्री रोकने, अगले तीन सप्ताह के भीतर इस बाबत सारी जानकारी घोषित करने का आदेश दिया. यानी कोर्ट ने भाजपा के गले से पेट में हाथ डाल दिया है. दूसरी अहम बात यह है कि जिन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे हैं कोर्ट ने उस व्यक्ति और कंपनियों को बॉन्ड की रकम लौटाने का स्पष्ट आदेश दिया है यानी भाजपा का नाड़ा ही खुल गया.

भाजपा की तिजोरी भरती गई और...

चुनावी फंड को लेकर पारदर्शिता लाने के नाम पर इलेक्टोरल बॉन्ड का मुद्दा शुरू किया गया, लेकिन पारदर्शिता दिखावा साबित हुई और भाजपा ने ‘काले को सफेद’ करने का धंधा शुरू कर दिया. इससे असमानता और असंतुलन पैदा हुआ. भाजपा जैसी पार्टी की तिजोरी में धन की बाढ़ आ गई, लेकिन अन्य लोगों के हिस्से आया ठन-ठन गोपाल. प्रशांत भूषण, सीपीआई (एम) जैसे व्यक्ति और पार्टियां इस बॉन्ड घोटाले के खिलाफ अदालत में गईं. बॉन्ड के खिलाफ 2018 में याचिका दायर की गई और इसकी सुनवाई आते-आते 2023 भी बीत गया. इस दौरान भाजपा ने उद्योगपतियों को भारी पैमाने पर लूटकर अपनी तिजोरी भरी. अब 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक खरा फैसला सुनाकर भाजपा का मुखौटा उतार दिया.

इलेक्टोरल बॉन्ड का लेनदेन स्टेट बैंक के माध्यम से किया जा रहा था और स्टेट बैंक का लेनदेन पारदर्शी नहीं था. इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों के बाबत गोपनीयता के नाम पर सूचना के अधिकार में भी नागरिकों को सच्चाई समझ में नहीं आएगी, लेकिन चूंकि स्टेट बैंक सरकारी है, इसलिए सरकार के उच्च पदस्थ अधिकारियों को यह जानकारी आसानी से मिल सकती है. यानी... मंडली को समझ आ जाएगा कि उनके राजनीतिक विरोधियों को ‘बॉन्ड’ के जरिए किसने कितनी आर्थिक सहायता दी है और वे उन सभी को परेशान करेंगे और अब तक यही हुआ है.

भाजपा के विरोधियों को आर्थिक लाभ कानूनी तौर पर भी नहीं मिलने दिया जाए, यह इलेक्टोरल बॉन्ड व्यवस्था में होता रहा है. भाजपा इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए मालामाल हो गई। यह सभी माल ‘ब्लैक मनी’ था और है. यह योजना यानी सीधे-सीधे भ्रष्टाचार का पैसा राजनीति में लाने का मौका रहा, लेकिन यह अवसर केवल भाजपा के लिए था. दूसरों के लिए यह धन प्राप्त करना एक अपराध और मनी लॉन्ड्रिंग था. इस अपराध को लेकर ‘ईडी’ जैसी जांच एजेंसियां अब क्या कार्रवाई करनेवाली हैं? अपराध स्वरूपी आय और उससे प्राप्त की गई संपत्ति जब्त करने का अधिकार ईडी के पास है. अपराध की आय को जब्त करने की शक्ति है. ईडी भाजपा के आलीशान कार्यालय और संपत्ति जब्त करेगी क्या?'

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