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नई दिल्ली: सेवानिवृत्त नौकरशाहों और न्यायाधीशों के एक समूह ने किसान आंदोलन (Farmers Protest) का हल तलाशने के लिए सरकार द्वारा दिए गए सुझावों की सराहना की है. 180 पूर्व नौकरशाहों और न्यायाधीशों ने कहा कि किसान आंदोलन को समाप्त कराने के लिए सरकार ने बीच का रास्ता सुझाते हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के बारे में कानूनी आश्वासन देने और कृषि कानूनों (Farm Laws) को 18 महीनों के लिए निलंबित करने की बात कही है. इसके बावजूद कुछ लोग गलत माहौल बनाने में लगे हैं.
सेवानिवृत्त नौकरशाहों और न्यायाधीशों (Retired Bureaucrats and Judges) के इस समूह ने 75 पूर्व नौकरशाहों के उस समूह को 'मसखरों' की टोली बताया है, जो किसान आंदोलन का समर्थन कर रहा है. उन्होंने कहा है कि 'मसखरों' का एक समूह अभी देश को भ्रमित कर रहा है. रॉ के पूर्व प्रमुख संजीव त्रिपाठी, पूर्व सीबीआई निदेशक नागेश्वर राव, एसएसबी के पूर्व महानिदेशक एवं त्रिपुरा के पूर्व पुलिस प्रमुख बीएल वोहरा सहित 180 लोगों ने सोमवार को यह बयान जारी किया. बता दें कि कुछ दिन पहले ही 75 सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने एक खुले पत्र में आरोप लगाया था कि किसान आंदोलन के प्रति केंद्र का दृष्टिकोण प्रतिकूल और टकराव वाला रहा है.
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बयान में कहा गया है कि सरकार ने किसी भी स्तर पर यह घोषित नहीं किया है कि असली और वास्तविक किसान देशविरोधी हैं. यहां तक कि गणतंत्र दिवस पर उन लोगों के साथ भी अत्यंत संयमित तरीके से व्यवहार किया गया, जिन्होंने अपराध में लिप्त होने के लिए किसानों के आंदोलन को एक अवसर के रूप में इस्तेमाल किया. इस समूह ने पूर्व नौकरशाहों के खुले पत्र को राजनीतिक रूप से प्रेरित बताते बताया है.
अपने बयान में 180 पूर्व नौकरशाहों और न्यायाधीशों ने कहा है, ‘हम सेवानिवृत्त नौकरशाहों के मसखरों के एक समूह की पूरी तरह गलत बयानी से परेशान हैं, जिसका उद्देश्य एक भ्रामक विमर्श बनाना है. जब सरकार ने बीच का रास्ता सुझाया है जिसमें उसने कानूनों के क्रियान्वयन को 18 महीने के लिए निलंबित करने, न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रखने के बारे में कानूनी आश्वासन और पर्यावरण संरक्षण के मामलों में किसानों के खिलाफ दंडात्मक प्रावधान वाले कुछ कानूनों को वापस लेना शामिल है, तो कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े रहने का कोई मतलब नहीं रह जाता’.
बयान में किसानों से अपील करते हुए कहा गया है कि राष्ट्र-विरोधियों और अवसरवादी नेताओं के चंगुल में फंसने के बजाए सभी को बातचीत के जरिए मुद्दे के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए काम करना चाहिए. इस बयान पर राजस्थान हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अनिल देव सिंह, केरल के पूर्व मुख्य सचिव आनंद बोस, जम्मू-कश्मीर के पूर्व डीजीपी एस पी वैद, एयर वाइस मार्शल (सेवानिवृत्त) आर पी मिश्रा के भी हस्ताक्षर हैं.