G20 Summit: पुतिन और शी जिनपिंग के जी20 में नहीं आने से कितना पड़ेगा असर? पढ़ें INSIDE STORY
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G20 Summit: पुतिन और शी जिनपिंग के जी20 में नहीं आने से कितना पड़ेगा असर? पढ़ें INSIDE STORY

Why Xi Jinping Not Attending G20 Summit: भारत में जी20 समिट का आयोजन 9 और 10 सितंबर को होगा. लेकिन इस समिट में न तो रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आ रहे हैं और ना ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग. इन दोनों के नहीं आने से समिट के कामकाज पर क्या असर पड़ेगा, आइए समझते हैं.

G20 Summit: पुतिन और शी जिनपिंग के जी20 में नहीं आने से कितना पड़ेगा असर? पढ़ें INSIDE STORY

G20 Summit Agenda: भारत की राजधानी नई दिल्ली में इस हफ्ते होने जा रहे जी-20 शिखर सम्मेलन में रूस और चीन के राष्ट्रपति शामिल नहीं हो रहे हैं . लेकिन उनकी गैरमौजूदगी और यूक्रेन युद्ध को लेकर मतभेद का बड़ा असर पूरे समिट पर देखने को मिलेगा.

 रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जी-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे, लेकिन सम्मेलन पर उनके और रूस-यूक्रेन युद्ध का असर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नहीं आने से अधिक होने की आशंका है. जी-20 समिट नई दिल्ली में 9 और 10 सितंबर को होना है.

कुछ ही दिन पहले खबर आई कि चीन के राष्ट्रपति इस सम्मेलन में हिस्सा नहीं लेंगे. जिनपिंग के समिट में नहीं आने से ग्लोबल इकोनॉमी पर असर डालने वाले कई मुद्दों पर आगे बातचीत नहीं हो पाएगी.

जरूरी मुद्दों पर होगी रुकावट

हालांकि, जी-20 समिट में पुतिन और यूक्रेन में युद्ध के मुद्दे के हावी होने से पहले संगठन के सामने पहले से लंबित जरूरी मुद्दों के आगे बढ़ने में रुकावट पैदा होने की आशंका है. सदस्य के तौर पर रूस का यह कदम कोई हैरानी की बात नहीं है. लेकिन जी20 की संरचना, जिसमें पश्चिमी देश और ग्लोबल साउथ के प्रमुख देश शामिल हैं, ने संगठन के लिए प्रभावी ढंग से काम करना और भी मुश्किल बना दिया है. 

'ग्लोबल साउथ' शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों के लिए किया जाता है. जी-20, नेताओं की दो दिन की सालाना बैठक से कहीं अधिक अहम है. इसका ज्यादा काम बैकग्राउंड में तकनीकी जानकारों और पॉलिसी मेकर्स के नेटवर्क से होता है, जो मुश्किलों को हल करने के तरीके ढूंढ सकते हैं, भले ही उनके नेताओं के बीच संबंध खराब हो जाएं. 

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जी-20 के एजेंडे में ये हैं मुद्दे

चल रहे संघर्ष के मुद्दे के अलावा भी इस साल जी-20 के एजेंडे में कई अन्य मुद्दे हैं. वैश्विक महंगाई उच्च स्तर पर बनी हुई है और विकास गति धीमी और ऐतिहासिक रुझानों से कम है. चीन की आर्थिक वृद्धि में कमी, डिफ्लेशन और हाउसिंग मार्केट अपनी आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसका बाकी दुनिया पर अहम प्रभाव पड़ सकता है.

कई अर्थव्यवस्थाएं कर्ज संकट से जूझ रही हैं. दुनिया के लगभग आधे विकासशील देशों को तुरंत वित्तीय मदद की जरूरत है क्योंकि महामारी का उनपर नकारात्मक असर पड़ा है. ये वे मुद्दे हैं जिनपर जलवायु परिवर्तन या सस्टेनेबल डेवेलपमेंट जैसे लंबी अवधि के मुद्दों पर विचार करने से पहले बात की जानी है. दोनों मोर्चों पर विकास तय समय से पिछड़ रहा है.

वास्तव में जी20 इन्हीं मुद्दों से निपटने के लिए बनाया गया था. यह दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लाता है, जो ग्लोबल जीडीपी में 85 प्रतिशत, ग्लोबल ट्रेड में 75 प्रतिशत और दुनिया की आबादी में दो-तिहाई कर योगदान देते हैं. दुनिया में जो ग्लोबल गवर्नेंस है वह जी-20 है.

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यूक्रेन-रूस युद्ध पर जी-20 में तीन गुट

  •  सहमति के लिए संघर्ष रूस और यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर, जी-20 के भीतर तीन अलग-अलग गुट हैं. पहला, रूस है, जिसने जी20 में युद्ध पर चर्चा की वैधता को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि एक इकोनॉमी बॉडी के रूप में सुरक्षा मामलों पर विचार करना उसका कोई काम नहीं है. जैसे-जैसे युद्ध लंबा खिंचता जा रहा है, चीन के रुख भी बदलाव आ रहा है क्योंकि वह रूस के करीब आ रहा है. 

  • दूसरा गुट पश्चिमी देशों का है जिन्होंने शुरू में रूस को संगठन से निष्कासित करने के लिए जी20 पर दबाव बनाया था, जिसका संगठन में कोई प्रावधान नहीं है. इन देशों ने यह नहीं होने पर इस बात पर जोर दिया है कि वह रूस और यूक्रेन पर हुए हमले की कड़े शब्दों में निंदा करे. 

  • वहीं तीसरा और सबसे बड़ा गुट ग्लोबल साउथ देशों का है जो इस पूरे संघर्ष से तटस्थ रहने की कोशिश कर रहे हैं. इस गुट के देश युद्ध के नतीजों को लेकर सबसे ज्यादा परेशान हैं, जिसमें भोजन और ऊर्जा की कीमतों पर इसका प्रभाव भी शामिल है, जो खास तौर से विकासशील देशों की इकोनॉमी पर असर डालता है.

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आम सहमति पर भी हो रहे संघर्ष

इन अंतरों के साथ जी20 को आम सहमति तक पहुंचने के लिए संघर्षों से गुजरना पड़ा है. इस साल के अध्यक्ष भारत की तरफ से आयोजित कोई भी मंत्री-स्तरीय बैठक आम विज्ञप्ति के साथ खत्म नहीं हुई है जो चर्चा किए गए विषयों पर समूह की आम सहमति के बारे में बताती हो. 

दिल्ली में होने जा रहे शिखर सम्मेलन से पहले, राजनयिक फिर से अंतिम विज्ञप्ति के लिए शब्दों का चयन करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं ताकि उसे सभी पक्ष स्वीकार कर लें. लेकिन जी-20 के इतिहास में पहली बार ऐसा करने में विफल होने की आशंका दिख रही है. 

प्रगति के संकेत इन असहमतियों के बावजूद जी20 कुछ मुद्दों पर प्रगति करने में कामयाब रहा है. जी20 बैठकें उन मुख्य मंचों में से एक रही हैं जिनके जरिए मल्टीलेटरल डेवेलपमेंट बैंकों के सुधार पर चर्चा की गई है. प्रस्तावों में विश्व बैंक और अन्य विकास बैंकों की अंदरूनी नीतियों में सुधार करना शामिल है ताकि उन्हें ज्यादा पूंजी उधार लेने और रियायती दरों पर उधार देने की इजाजत मिल सके, खास तौर से जलवायु परियोजनाओं के लिए. 

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फंडिंग भी है बड़ा मुद्दा

साथ ही बड़े देशों की तरफ से फंडिंग में इजाफे का मुद्दा भी शामिल है. अमेरिका ने हाल ही में अपने योगदान में 50 अरब अमेरिकी डॉलर के इजाफे का वादा किया है. उसने अपने सहयोगियों से कुल मिलाकर 200 अरब डॉलर तक योगदान बढ़ाने को कहा है. हालांकि समिट में सुधारों को अंतिम रूप नहीं दिया जाएगा, लेकिन जी-20 ने बातचीत को जारी रखने और आगे बढ़ाने के मामले में खुद को एक उपयोगी प्लेटफॉर्म साबित किया है. 

पिछले दो वर्षों में, जी-20 की अध्यक्षता विकासशील देशों इंडोनेशिया और भारत ने की है. अपनी तटस्थता के कारण, जब ये देश पश्चिम और रूस के बीच गतिरोध को दूर करने की कोशिश करते हैं तो उनकी विश्वसनीयता अधिक होती है. अगले दो मेजबान दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील हैं जिनका झुकाव समान है और उम्मीद है कि जी-20 में चल रहीं कोशिशें जारी रह सकती हैं. भले ही मुश्किल वैश्विक समस्याएं समाधान करने की क्षमता से परे साबित हों. बंटी हुई दुनिया में यह सबसे बड़ी उपलब्धि हो सकती है जिसे हासिल किया जा सकता है.

(पीटीआई इनपुट के साथ)

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