रविवार को उनका 88वां जन्मदिन था. इस मौके पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि जॉर्ज फर्नांडिस जैसे ‘बागी नेताओं’ की जरूरत हमेशा रहती है, क्योंकि कोई भी देश उनके बिना प्रगति नहीं कर सकता.
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नई दिल्ली: नई पीढ़ी के लोगों को शायद ही समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस याद होंगे. वही जॉर्ज फर्नांडिस जिनकी एक आवाज पर हजारों गरीब-गुरुबा एकत्र हो जाते थे. इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी और संजय गांधी के नाक में दम करने वाले जॉर्ज अब भी जीवित हैं, लेकिन गंभीर रोगों से ग्रसित हैं, जिसके चलते 8 साल से एक बिस्तर तक ही उनकी दुनिया सिमट गई है. रविवार को उनका 88वां जन्मदिन था. इस मौके पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि जॉर्ज फर्नांडिस जैसे ‘बागी नेताओं’ की जरूरत हमेशा रहती है, क्योंकि कोई भी देश उनके बिना प्रगति नहीं कर सकता.
आडवाणी ने जार्ज फर्नांडिस के 88 वें जन्मदिन पर उन पर आधारित एक वेबसाइट के लांच के मौके पर यह बात कही. दिल्ली स्थित आवास पर बीमार चल रहे इस नेता से मिलने के बाद आडवाणी ने कहा कि वह एक शानदार व्यक्ति हैं.
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आडवाणी ने वेबसाइट ‘जॉर्ज फर्नांडिस डॉट ओआरजी’ के लांच के बाद कहा, ‘मैं कई वर्षों तक संसद में उनके साथ रहा. वह शानदार व्यक्ति हैं. बागी नेताओं की हमेशा जरूरत होती है. उनके बिना कुछ नहीं होता.’
उन्होंने कहा, ‘अगर कोई बागी नहीं होता तो देश को आजादी नहीं मिली होती. जॉर्ज जैसे बागी नेताओं को आते रहना चाहिए ताकि देश प्रगति और विकास कर सके.’
जानें जॉर्ज फर्नांडिस की 5 बातें
1. भारतीय संसद की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार इनका जन्म मैंगलोर में 3 जून 1930 को हुआ.
2. जॉर्ज फर्नांडिस 10 भाषाओं के जानकार हैं - हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली, तुलु, कोंकणी और लैटिन. उनकी मां किंग जॉर्ज फिफ्थ की बड़ी प्रशंसक थीं. उन्हीं के नाम पर अपने छह बच्चों में से सबसे बड़े का नाम उन्होंने जॉर्ज रखा.
3. मंगलौर में पले-बढ़े फर्नांडिस जब 16 साल के हुए तो एक क्रिश्चियन मिशनरी में पादरी बनने की शिक्षा लेने भेजे गए. पर चर्च में पाखंड देखकर उनका उससे मोहभंग हो गया. उन्होंने 18 साल की उम्र में चर्च छोड़ दिया और रोजगार की तलाश में बंबई चले आए.
4. जॉर्ज खुद बताते हैं कि इस दौरान वे चौपाटी की बेंच पर सोया करते थे और लगातार सोशलिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियन आंदोलन के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते थे. फर्नांडिस की शुरुआती छवि एक जबरदस्त विद्रोही की थी. उस वक्त मुखर वक्ता राम मनोहर लोहिया, फर्नांडिस की प्रेरणा थे.
5. 1950 आते-आते वे टैक्सी ड्राइवर यूनियन के बेताज बादशाह बन गए. बिखरे बाल, और पतले चेहरे वाले फर्नांडिस, तुड़े-मुड़े खादी के कुर्ते-पायजामे, घिसी हुई चप्पलों और चश्मे में खांटी एक्टिविस्ट लगा करते थे. कुछ लोग तभी से उन्हें ‘अनथक विद्रोही’ (रिबेल विद्आउट ए पॉज़) कहने लगे थे. जंजीरों में जकड़ा उनकी एक तस्वीर इमरजेंसी की पूरी कहानी बयां करती है.