21वीं सदी में बेटियों को मिला '21' का हक, जानें समाज में क्या आएगा बदलाव
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21वीं सदी में बेटियों को मिला '21' का हक, जानें समाज में क्या आएगा बदलाव

भारत में लड़कियों की शादी की उम्र (Girls Marriage Age)  18 साल से बढ़ाकर 21 किए जाने का कानून पास हो गया है. यह कानून मुस्लिमों और ईसाइयों पर लागू नहीं होगा. इस कानून से देश में बड़ा बदलाव आने की संभावना जताई जा रही है. 

21वीं सदी में बेटियों को मिला '21' का हक, जानें समाज में क्या आएगा बदलाव

नई दिल्ली: भारत में जैसे कोई भी लड़की 18 साल की होती है, तो उसके मां बाप और परिवार के मन में सबसे पहले विचार आता है कि अब जल्दी से लड़की के हाथ पीले (Girls Marriage Age) कर दिए जाएं यानी उसकी शादी हो जाए और मां बाप की जिम्मेदारी पूरी हो जाए. इसके बाद वो लड़की अपने ससुराल की जिम्मेदारी बन जाए. वो कहां रहेगी, किन हालात में रहेगी. उसकी आगे पढाई होगी या नहीं, क्या नौकरी करेगी, ये सबकुछ अब उसका ससुराल तय करेगा. 

  1. टास्क फोर्स ने दी थी रिपोर्ट
  2. मुस्लिम और ईसाइयों पर लागू नहीं होगा कानून
  3. समाज में पड़ने जा रहे बड़ा असर

भारत में हर साल लगभग लाखों लड़कियां इसी मानसिकता की शिकार हो जाती हैं. ये भारत में लगभग हर महिला का दर्द है, जिसे अपनी मर्ज़ी से पढ़ाई लिखाई करने और जीवन जीने का अधिकार नहीं मिला. देश की मोदी सरकार ने भारत में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 से 21 साल करने का प्रस्ताव पास कर दिया है. ये बहुत ही क्रान्तिकारी फैसला है, जो ना सिर्फ़ करोड़ों लड़कियों की ज़िन्दगी बदल देगा बल्कि भारत की आने वाली पीढ़ियों को भी सुधार देगा. 

टास्क फोर्स ने दी थी रिपोर्ट

अब तक देश में पुरुषों की विवाह की न्यूनतम उम्र 21 और महिलाओं की 18 साल (Girls Marriage Age) थी, जिसकी समीक्षा करने के लिए केन्द्र सरकार ने एक Task Force का गठन किया था. इस Task Force ने ही केन्द्र सरकार को इस कानून में बदलाव की सिफारिश की थी. टास्क फोर्स ने अपने निष्कर्ष में कहा था कि पहले बच्चे को जन्म देते समय महिलाओं की आदर्श उम्र 21 वर्ष होनी चाहिए. इससे ना सिर्फ़ महिलाओं के स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर दिखेगा बल्कि इस फैसले के आर्थिक और सामाजिक प्रभाव भी बहुत शक्तिशाली होंगे. हालांकि इस फैसले के पीछे कुछ और वजह भी हैं. जिसे आप 2011 की जनगणना के कुछ आंकड़ों से समझ सकते हैं. 

इन आंकड़ों के मुताबिक भारत में लड़कियों के विवाह करने की औसत उम्र 21 वर्ष 2 महीने पाई गई है. यानी 10 साल पहले जो जनगणना हुई थी, वो ये कहती है कि भारत में लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र भले 18 वर्ष हो लेकिन वो शादी 21 वर्ष की उम्र में ही कर रही हैं. हालांकि शहरी और ग्रामीण इलाक़ों में इसमें थोड़ा अंतर ज़रूर है. ग्रामीण इलाक़ों में लड़कियों के विवाह की औसत उम्र 20 वर्ष 7 महीने है. जबकि शहरी इलाक़ों में ये उम्र 22 वर्ष 7 महीने है. यानी लगभग 23 साल के आसपास है. अगर लड़कों की बात करें तो कानूनन लड़के 21 वर्ष की उम्र में विवाह कर सकते हैं. लेकिन देश में लड़कों के शादी करने की औसत उम्र साढ़े 23 साल है. यह लड़कियों से दो साल ज्यादा है.

मुस्लिम और ईसाइयों पर लागू नहीं होगा कानून

अब यहां सोच ये है कि अगर सरकार ने विवाह की न्यूनतम उम्र (Girls Marriage Age) को बढ़ाया तो इससे लोगों की सोच में बदलाव आएगा. इससे जो परिवार लड़की की 18 साल उम्र होते ही उसकी शादी के बारे में सोचने लगते हैं, वो ऐसा नहीं करेंगे.

यहां दो और बातें समझने वाली है. पहली ये कि भारत में हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिख धर्म के सिविल मामलों के लिए तो अलग से कानून है. ऐसा इंतजाम देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने खुद किया था. वहीं इस्लाम और ईसाई धर्म के सिविल मामलों में आज भी उनके Personal Laws ही चलते हैं.

सिविल मामलों से हमारा मतलब ये है कि उस धर्म में सम्पत्ति के बंटवारे, विवाह और तलाक को लेकर क्या कानून माना जाएगा. इस हिसाब से सरकार ने जो आज फैसला लिया है वो हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिख धर्म के लोगों पर तो लागू होगा. लेकिन इस्लाम धर्म में Muslim Personal Law Board ही प्रभावी रहेगा, जिसमें 15 साल की मुस्लिम लड़की के विवाह को वैध माना गया है. इसलिए इस अंतर को भी आपको समझना होगा.

लेकिन उससे पहले आप ये समझिए कि इस फैसले का देश और समाज पर क्या प्रभाव होगा.

समाज में पड़ने जा रहे ये असर

- पहली बात इससे उच्च शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी. अभी कोई लड़की शुरुआत से बिना फेल हुए सभी कक्षाओं में पास होती है तो वो 18 साल तक 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी कर लेती है. यहां चुनौती ये है कि इसके बाद उसका विवाह करा दिया जाता है और वो आगे की शिक्षा पर ध्यान ही नहीं दे पाती. इस फैसले के बाद ऐसा नहीं होगा. एक अनुमान के मुताबिक़ आने वाले कुछ वर्षों में अभी की तुलना में 5 से 7 प्रतिशत तक ज्यादा लड़कियां Graduation तक की पढ़ाई पूरी कर पाएंगी.

ये इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि भारत में हर 10 में से 9 लड़कियों को उनके सुसराल में आगे की शिक्षा हासिल करने का मौका ही नहीं मिलता. जबकि इनमें से 37 प्रतिशत लड़कियां ऐसी होती हैं, जो पढ़ाई में काफ़ी अच्छी होती हैं. वे आगे पढ़ें तो काफ़ी बदलाव ला सकती हैं.

- दूसरी बात- महिला शिक्षित होंगी तो देश में शिक्षा का स्तर भी बढ़ेगा. कहा जाता है कि जब एक महिला शिक्षित होती है तो वो पूरे परिवार को शिक्षित कर सकती है. अमेरिका में हुए एक सर्वे में पता चला था कि जो महिलाएं शिक्षित होती हैं, उनके बच्चे विज्ञान और गणित जैसे मुश्किल विषयों में भी अच्छा प्रदर्शन करते हैं और ज्यादा कुशल होते हैं.

- तीसरा Point भी शिक्षा से ही जुड़ा है. महिलाएं अगर स्कूल के बाद भी पढ़ाई जारी रखती हैं. या मान लीजिए किसी सरकारी नौकरी की तैयारी करती हैं या कोई प्रोफेशनल कोर्स करती हैं तो इससे वो किसी ना किसी क्षेत्र में रोज़गार के लिए तैयार हो जाएंगी. इससे देश की Labour Force में यानी कामगारों की संख्या में उनकी भागीदारी बढ़ेगी.

गर्भावस्था मृत्यु दर में आएगी कमी

- इसके अलावा 21 वर्ष की उम्र (Girls Marriage Age) में विवाह करने से महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान मृत्यु की दर कम हो जाएगी. यानी इस फैसले का असर महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा.

- इस फैसले का भारत के समाज पर भी गहरा असर पड़ेगा. लड़कियां अगर पढ़ लिखने के बाद शादी करेंगी तो इससे उनके प्रति रुढ़िवादी सोच में बदलाव आएगा. महिलाओं की ज़िम्मेदारी घर की रसोई और बच्चों के पालन पोषण तक सीमित नहीं मानी जाएगी.

- विवाह के फैसलों में लड़कियों की राय को भी ज्यादा महत्व मिलेगा. जैसा कि अभी बहुत कम मामलों में होता है. अभी लड़की पढ़ी लिखी होती है तो परिवार किसी भी लड़के से शादी कराने से पहले एक बार उसकी सहमति ज़रूर लेता है. लेकिन कम शिक्षित लड़कियों से उनकी राय नहीं पूछी जाती.

- कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं और NGOs का मानना है कि इसका जनसंख्या पर भी असर होगा क्योंकि शिक्षित महिलाओं का रुझान हमेशा से कम बच्चों की तरफ़ रहा है. इसलिए ये Point भी बहुत महत्वपूर्ण है.

भारत में अब लड़की और लड़कियों के विवाह की उम्र (Girls Marriage Age) एक समान हो गई है और ये उम्र है 21 साल. हालांकि पहले ये परंपरा नहीं थी. हर दौर में पुरुषों के विवाह की उम्र महिलाओं से औसतन दो से तीन साल ज्यादा ही रखी गई है. इसके पीछे दो कारण दिए जाते हैं और ये दोनों कारण सामाजिक हैं.

ज्यादा उम्र की महिलाओं से शादी का मजाक

- पहला, समाज में ये धारणा काफ़ी मजबूत है कि शादी का रिश्ता पुरुषों के हिसाब से ज्यादा चलता है. ऐसे में अगर किसी पुरुष की उम्र उसकी पत्नी से ज्यादा हो तो वो खुद को बड़ा भी महसूस करता है और इस रिश्ते में अपने प्रभुत्व को भी ज्यादा पाता है. इसके अलावा भारत समेत एशिया के दूसरे देशों में ज्यादा उम्र या समान उम्र की लड़की से शादी करने को दुर्भावना से देखा जाता है. ऐसे लोगों का मजाक उड़ाया जाता है जो ज्यादा उम्र की महिलाओं से शादी करते हैं. 

उत्तर प्रदेश में एक ऐसा मामला भी सामने आया था. वहां एक व्यक्ति ने अपने 6 साल बड़ी महिला से शादी (Girls Marriage Age) की तो उसके दोस्त उसका ये कहकर मजाक उड़ाने लगे थे कि उससे पहले उसकी पत्नी बूढ़ी हो जाएगी. यानी महिला की सुंदरता भी इसमें एक बड़ा पहलू है.

- हालांकि कुछ उदाहरणों से आप ये भी समझ सकते हैं कि अगर पुरुष और महिला सशक्त हों और प्रगतिशील हों तो उनके लिए उम्र ज्यादा मायने नहीं रखती. जैसे अभी 33 वर्षीय अभिनेता विक्की कौशल ने पांच साल बढ़ी कैटरीना कैफ से शादी की है. इसी तरह अमेरिका के सिंगर निक जोनस, प्रियंका चोपड़ा से 10 साल छोटे हैं. सचिन तेंदुलकर ने अपने से 6 साल बड़ी अंजली तेंदुलकर से विवाह किया था. फ्रांस के मौजूदा राष्ट्रपति Emmanuel Macron अपनी पत्नी से 25 साल छोटे हैं. वो 43 साल के हैं और उनकी पत्नी 68 वर्ष की हैं.

 

 

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पुरुषों पर परिवार चलाने की जिम्मेदारी

- दूसरा सामाजिक कारण है आर्थिक जिम्मेदारियां- अधिकतर मामलों में परिवार के पालन पोषण की ज़िम्मेदारी पुरुषों की होती है. इसलिए ये माना जाता है कि स्कूल की पढ़ाई के बाद लड़का बाहर जाकर कोई काम सीखेगा या आगे की पढ़ाई करेगा ताकि उसका रोज़गार पक्का हो सके. 

आपने भी सुना होगा कि जब शादी (Girls Marriage Age) के किसी रिश्ते की बात होती है तो लड़की के परिवारवाले सबसे पहले यही प्रश्न पूछते हैं कि लड़का, घर कैसे चलाएगा? मतलब वो करता क्या है, जबकि लड़केवाले, लड़कियों से ऐसा कोई सवाल नहीं पूछते. लड़कियों से ये पूछा जाता है कि क्या वो खाना बना लेती हैं और आज कल के जमाने में कोई लड़की नौकरी करती है तो उससे ये कहा जाता है कि वो नौकरी के साथ घर को मैनेज कर लेगी?

एक चीज़ ये भी है कि ऐसा माना जाता है कि उम्र में छोटी लड़की और कम पढ़ी-लिखी लड़की को आप अपने हिसाब से ढाल सकते हो. उसे जैसा कहो वो वैसा करेगी. यानी पुरुष का प्रभुत्व उस पर बना रहता है. 

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