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नई दिल्ली: राज्यों की राजनीति की बात करें तो उत्तर प्रदेश हमेशा से अपनी घाघ राजनीति के लिए बेहद मशहूर रहा है. यहां के अपने नेताओं के ही इतने धड़े हैं कि उनके लिए ही राज्य में पैर जमाना खासा मुश्किल रहता है, उस पर किसी बाहरी का आकर यहां का मुख्यमंत्री बन जाना अपने आप में चमत्कार है. लेकिन यूपी की राजनीति में यह चमत्कार इसके पहले मुख्यमंत्री के चुनाव में ही हो गया था. जब नेहरू ने अपने पसंदीदा नेता गोविंद बल्लभ पंत को यूपी का पहला सीएम बना दिया था.
गोविंद बल्लभ पंत मूल रूप से मराठी थे लेकिन उनका जन्म 10 सितंबर 1887 को अल्मोड़ा में हुआ था. लेकिन किस्मत उनकी यूपी में चमकी और राज्य के पहले सीएम बने. पंत बचपन से ही दिमाग के तेज थे, लेकिन सेहत के मामले में खासे ढीले थे. जिस उम्र में बच्चे उछल-कूद मचाते हैं, वे एक जगह बैठे रहते थे इसलिए घर के लोग उन्हें थपुआ पुकारने लगे थे. थपुआ यानी कि जो एक जगह थपा रहे या बैठा रहे. हालांकि ये मजाक केवल मजाक नहीं रहा क्योंकि 14 साल की उम्र में ही पंत को हार्ट अटैक आ गया. इसके बाद पंत संभले और फिर वकालत से लेकर राजनीति तक में खूब चमके.
पंत के राजनीति में आने का किस्सा भी मजेदार है. एक दिन वे गैरीताल घूमने गए थे, वहां 2 लड़कों को स्वतंत्रता आंदोलन की बातचीत करते सुना. उन्होंने पूछा कि क्या यहां पर भी इस बारे में बातें होती हैं, उन्होंने कहा- हां, लेकिन नेतृत्व की कमी है. उसी दिन पंत ने वकालत छोड़कर राजनीति में आने का फैसला ले लिया.
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इसके बाद पंत लेजिस्लेटिव असेंबली में चुने गये. नमक आंदोलन में गिरफ्तार हुए. कांग्रेस और सुभाष चंद्र बोस के बीच जब मतभेद हुआ तो पंत ने मध्यस्थता भी की. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ्तार हुए. जेल गए. इससे पहले नेहरू के साथ बरेली और देहरादून की जेलों में रह चुके थे और यहीं से वे दोनों काफी करीब आए. इसलिए जब यूपी में पहले सीएम बनने की बात चली तो नेहरू ने पंत को ही चुना.
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ईमानदारी और उसूलों के मामले में पंत पक्के थे. सीएम बनने के बाद एक बार मीटिंग ले रहे थे. मीटिंग में कई मंत्री, अधिकारी आदि लोग थे. जब मीटिंग के चाय-नाश्ते का बिल पास होने के लिए आया तो केवल चाय का बिल पास किया और नाश्ते के पैसे अपनी जेब से चुकाए. इसे लेकर उन्होंने कहा कि नियम के अनुसार सरकारी पैसे का उपयोग केवल चाय में हो सकता है. नाश्ते का पैसा सरकारी खजाने से देने का नियम नहीं है.