अयोध्या के लिए सिखों का 'पराक्रम अध्याय', मुगलों को धूल चटाकर जलाई थी राम की ज्योति
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अयोध्या के लिए सिखों का 'पराक्रम अध्याय', मुगलों को धूल चटाकर जलाई थी राम की ज्योति

राम जन्मभूमि के लिए लड़े गए सिखों के युद्ध की कहानी सांप्रदायिक सौहार्द की सबसे बड़ी कहानी है.

अयोध्या रामजन्म भूमि विवाद पर सबसे बड़ा फैसला आने में बस थोड़ा सा वक्त बाकी है.

अयोध्या/नई दिल्ली: अयोध्या रामजन्म भूमि विवाद (Ram janmabhoomi case) पर सबसे बड़ा फैसला आने में बस थोड़ा सा वक्त बाकी है. सबसे बड़े फैसले पर ZEE NEWS की सबसे बड़ी कवरेज में हम आपको इस फैसले से जुड़ी हर हलचल के साथ अयोध्या से सांप्रदायिक सौहार्द की कहानियां भी दिखा रहे हैं. आज हम आपको दिखाएंगे सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी (Guru Gobind singh Ji) का अयोध्या और श्रीराम से प्रेम. आज हम आपको सोलहवीं सदी में लड़े गए उस भीषण युद्ध की पूरी कहानी सुनाने जा रहे है जिसमें चिमटाधारी साधुओं और गुरु गोबिंद सिंह की सिख सेना ने मिलकर मुगलों से राम जन्मभूमि की रक्षा की थी. राम जन्मभूमि के लिए लड़े गए सिखों के युद्ध की कहानी सांप्रदायिक सौहार्द की सबसे बड़ी कहानी है.

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अयोध्या जहां पर हमेशा राम नाम की धुन सुनाई पड़ती रहती है. जहां राम भक्तों को तांता लगा रहता है जो नगरी हिंदुओं के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है. उसी राम की नगरी अयोध्या में मौजूद गुरुद्वारा श्री ब्रह्मकुंड साहिब. देश और दुनिया के कोने कोने से अयोध्या पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है ये गुरुद्वारा और इसी गुरूद्वारे में मौजूद हैं रामजन्मभूमि के लिए सिखों के दसवें गुरू गोबिंद सिंह जी की सेना के भीषण पराक्रम के चिन्ह जो सिख सेना ने राम जन्मभूमि को बचाने के लिए दिखाया था. 

श्री राम की नगरी अयोध्या में गुरू गोबिंद सिंह जी के चरण सन 1672 में पड़े थे. उस वक्त गुरू गोबिंद सिंह जी बालक थे. कम उम्र में उनके अयोध्या आने की कहानियों से जुड़ी तस्वीरें भी इस गुरूद्वारे में मौजूद हैं. गुरू गोबिंद सिंह के पहले भी सिखों के गुरुओं ने अयोध्या आकर श्री राम जन्मभूमि के दर्शन के किए और राम में अपनी श्रद्धा दिखाई और जब अयोध्या पर मुगल शासक औरंगजेब की शाही सेना ने हमला किया तो भी सिखों की सेना ने रामजन्मभूमि की रक्षा के लिए भीषण संघर्ष किया.  

मुगलों की सेना के हमले की खबर जैसे चिमटाधारी साधु बाबा वैष्णव दास को लगी उन्होंने गुरु गोबिंद सिंह से मदद मांगी और गुरु गोबिंद ने ​बगैर कोई वक्त गंवाई अपनी सेना रामजन्मभूमि की रक्षा के लिए भेज दी. निहंग सिखों की सेनाओं ने साधुओं के साथ मिलकर मुगल सेना से भीषण युद्ध लड़ा, इस युद्ध में पराजय के बाद सिखों और साधुओं के पराक्रम से औरंगजेब इतना हैरान हो गया कि उनके काफी वक्त तक अयोध्या में दोबारा हमला करने की हिम्मत नहीं दिखाई. मुगलों से युद्ध लड़ने आई सिख सेना ने सबसे पहले ब्रह्मकुंड में ही अपना डेरा जमाया था.

गुरुद्वारे में वो हथियार भी मौजूद हैं जिनसे गुरु गोबिंद सिंह जी सिख सेना ने मुगल सेना को धूल चटा दी थी. गुरु गोबिंद सिंह जी के हथियार भी इस गुरूद्वारे में मौजूद हैं. गुरु गोबिंद सिंह जी शस्त्रों के उपासक थे उनका कहना था कि शास्त्र की रक्षा भी शस्त्रों के जरिए की जा सकती है . गुरू गोबिंद सिंह जी ने कभी युद्ध की शुरूआत नहीं की लेकिन युद्ध का ऐसा भीषण जवाब दिया कि विरोधी कांप गए. सिखों की सेना ने पराक्रम दिखाकर रामजन्मभूमि की रक्षा की थी. सिखों के दसवें गुरू गोबिंद सिंह की श्रद्धा भी श्रीराम में थी. उनका अयोध्या नगरी में आगमन इसका प्रतीक है. 

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गुरुद्वारा ब्रह्म कुंड के मुख्य ग्रंथी गुरजीत सिंह खालसा ने बताया कि गुरु गोबिंद सिंह जी यहां पर आए थे छह साल की अवस्था में सन् 1672 में उस समय वो रामजन्मभूमि गए ​थे और बंदरों को चने खिलाए थे. गुरु गोबिंद सिंह जी ने वहां से निहंग सिखों का बड़ा सा जत्था भेजा अयोध्या में, जिन्होंने राम जन्मभूमि को युद्ध करके आज़ाद करवाया और हिन्दुओं को सौंप कर वो पंजाब वापस चले गए. दिगंबर अखाड़ा प्रमुख महंत सुरेशदास ने भी इस तथ्य की पुष्टि करते हुए कहा कि सिख धर्म अलग नहीं है वो हिंदू धर्म से ही अलग हुआ है. इसलिए सिख धर्म को बचाने के लिए गुरु गोबिंद सिंह आए थे.

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