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नई दिल्ली: आज हम कर्नाटक में मारे गए बजरंग दल के कार्यकर्ता हर्षा को इंसाफ दिलाने की अपनी मुहिम जारी रखेंगे. आपको बताएंगे कि जब हर्षा की अंतिम यात्रा निकाली जा रही थी, तब कुछ लोगों द्वारा उस पर भी पत्थर बरसाए गए. Zee News की टीम आज हर्षा के घर पहुंच गई और हर्षा के परिवार ने हमसे कहा है कि उन्हें इंसाफ चाहिए.
आज हम आपको इस इलाके से अपनी स्पेशल ग्राउंड रिपोर्ट दिखाएंगे, जिससे आपको पता चलेगा कि हमारे देश में कैसे दो भारत बसते हैं. एक भारत वो है, जहां स्कूल में हिजाब की जिद पर अड़ी, अल्लाह-हू-अकबर का नारे लगाने वाली एक मुस्लिम छात्रा को बहादुर बताया जाता है और हर जगह उसकी तारीफ की जाती है और दूसरे भारत में बजरंग दल के कार्यकर्ता को साम्प्रदायिक मान कर उसकी हत्या कर दी जाती है. इस दूसरे भारत में हिजाब की जिद करना तो जायज है लेकिन इसका विरोध करना नाजायज भी है और गैर कानूनी भी.
इस समय कर्नाटक के शिमोगा में जबरदस्त तनाव है और पूरे शहर में अब भी धारा 144 लागू है. क्योंकि 21 फरवरी को यहां घरों में तोड़फोड़ की गई थी और कई गाड़ियों को आग लगा दी गई थी. हमें इस हिंसा के कुछ Videos भी मिले हैं, जिनमें एक वीडियो उस समय का बताया जा रहा है, जब हर्षा नाम के इस लड़के का शव अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा था और इस दौरान कुछ लोगों ने ऐम्बुलेंस पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए.
इस घटना के बाद दोनों पक्षों की तरफ से पत्थरबाजी हुई और कुछ घरों में तोड़फोड़ भी की गई. सोचिए, ये कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि पहले एक लड़के की इसलिए हत्या कर दी जाती है क्योंकि वो स्कूलों में मुस्लिम छात्राओं द्वारा हिजाब पहनने का विरोध करता है. हत्या के बाद जब उसकी अंतिम यात्रा निकाली जाती है तो उस पर पत्थर मारे जाते हैं. लेकिन हमारे देश का एक खास वर्ग, जो अभिव्यक्ति की आजादी की बात करता है, जो लोकतंत्र की बात करता है, वो इस पूरी घटना पर चुप है.
आज बड़ा सवाल ये है कि क्या 23 साल के इस लड़के को इसलिए इंसाफ नहीं मिलेगा, क्योंकि वो बजरंग दल का कार्यकर्ता था. हमारे देश में बजरंग दल के कार्यकर्ता को तो साम्प्रदायिक मान लिया जाता है लेकिन PFI के कार्यकर्ताओं को मानव अधिकारों की आवाज उठाने वाला मसीहा कहा जाता है.
आपको याद होगा, वर्ष 2019 में जब झारखंड में तबरेज अंसारी नाम के एक व्यक्ति की मॉब लिंचिंग हुई थी तो एक खास विचारधारा के लोगों ने ये आरोप लगाया था कि तबरेज की इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि वो एक मुसलमान था. जबकि झारखंड पुलिस ने अपनी जांच के बाद इन आरोपों को गलत माना था और ये बताया था कि तबरेज़ पर चोरी करने का आरोप था. इस मामले का धर्म से कोई लेना देना ही नहीं था. लेकिन जब इसी तरह की घटना, हर्षा नाम के इस लड़के के साथ हुई, उसकी मॉब लिंचिंग हो गई तो चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है? आज आपको ये तय करना है कि भारत में तबरेज और हर्षा की हत्या को समान रूप से देखा जाएगा या नहीं. क्या हर्षा को इसलिए इंसाफ नहीं मिलेगा, क्योंकि वो बजरंग दल का कार्यकर्ता था?
इस समय हमारी टीम शिमोगा में ग्राउंड जीरो पर मौजूद है और हमें कई ऐसी जानकारियां मिली हैं, जो चौंकाने वाली है. हमें पता चला है कि हर्षा नाम का ये लड़का, स्कूलों में मुस्लिम छात्राओं द्वारा हिजाब पहनने का लगातार विरोध कर रहा था. अपने इलाके में इसने कई विरोध प्रदर्शनों में भी हिस्सा लिया था. ये भी कहा जा रहा है कि कुछ मुस्लिम संगठन और नेताओं द्वारा इस लड़के और उसके दोस्तों को हिजाब का विरोध नहीं करने के लिए धमकियां दी गई थीं और उन पर लगातार दबाव बनाया जा रहा था.
कल्पना कीजिए, अगर इस मामले में हर्षा की जगह, किसी ऐसे व्यक्ति पर हमला हुआ होता, जो एक खास धर्म से होता और हिजाब के समर्थन में आन्दोलन चला रहा होता, तो देश में कैसे माहौल होता? तब शायद इस मामले को भारत के मीडिया में ही नहीं, बल्कि विदेशी मीडिया और खास कर पश्चिमी मीडिया में प्रमुखता से छापा जाता और इस खबर की हेडलाइन होती, भारत में हिजाब का समर्थन करने पर एक विशेष धर्म के व्यक्ति को मार दिया गया. फिर अमेरिका और ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देश और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं, भारत की आलोचना करने लगती. भारत के संविधान को खतरे में बताया जाता. लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ. क्यों नहीं हुआ, ये आज आपको सोचना है.
आपको ये तय करना है कि अगर हिजाब के समर्थन में अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगाने वाली मुस्कान नाम की मुस्लिम छात्रा बहादुर है और ऐसा करना उसकी अभिव्यक्ति की आजादी है तो फिर एक लड़के द्वारा हिजाब का विरोध करना, अलोकतांत्रिक कैसे हो सकता है. उस लड़के की हत्या कैसे की जा सकती है.
आज हमने ग्राउंड जीरो से आपके लिए इस घटना की विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है, जो आपको इस मामले के हर पहलू के बारे में बताएगी. आपको ये भी पता चलेगा कि कैसे कर्नाटक के स्कूलों से शुरू हुई हिजाब पहनने की जिद अब साम्प्रदायिक रूप ले चुकी है.
देश की राजधानी दिल्ली से लगभग दो हजार किलोमीटर दूर कर्नाटक के शिमोगा में रहने वाला ये परिवार एक ही सवाल पूछ रहा है कि अगर भारत में विरोध प्रदर्शन का संवैधानिक अधिकार समान रूप से सबको हासिल है तो फिर उनके बेटे की हत्या क्यों कर दी गई? हर्षा की उम्र 23 साल थी और वो चाहता था कि स्कूलों में समानता का सिद्धांत कभी समाप्त नहीं हो. इसी के लिए वो मुस्लिम छात्राओं द्वारा की जा रही स्कूलों में हिजाब पहनने की मांग का विरोध कर रहा था. लेकिन इस विरोध की बीच उसकी आवाज को खामोश कर दिया गया. 20 फरवरी की रात 9 बजे उसकी निर्ममता से हत्या कर दी गई. लेकिन इस हत्या को उतना निर्मम नहीं माना गया, जितना अखलाक की हत्या को माना गया था.
इस मामले को समझने के लिए हमारी टीम हर्षा के घर पहुंची, जहां उसका परिवार अब भी ये यकीन नहीं कर पा रहा कि उनके बेटे को कुछ लोगों ने बीच सड़क पर खुलेआम से चाकुओं से गोदकर मार डाला. परिवार के लोगों के साथ बातचीत के दौरान हमें ये भी पता चला कि हर्षा हिजाब के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों में सक्रिय रूप से हिस्सा ले रहा था. जब 21 फरवरी को उसकी अंतिम यात्रा निकाली जा रही थी, तब कुछ लोगों ने उसक शव पर पत्थर भी बरसाए. दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि पत्थर मारने वालों में छोटे-छोटे बच्चे भी थे.
इस मामले में पुलिस ने 6 लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें सैयद नदीम और मोहम्मद कासिफ नाम के आरोपी पर पहले से कई आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. पुलिस इस मामले की जांच, हिजाब वाले पहलू से भी कर रही है. हर्षा के परिवार का दावा है कि उसकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी बल्कि वो बजरंग दल का कार्यकर्ता था और लगातार देश विरोधी बातों के विरोध में वो प्रर्दशन में भाग लेता था और हिजाब वाले मुद्दे पर भी वो लगातार इसके खिलाफ बोल रहा था.
हर्षा की हत्या ने शिमोगा में तनाव की स्थिति पैदा कर दी है. कई घरों में तोड़फोड़ और आगजनी होने से लोगों में गुस्सा भी है. शिमोगा में इस समय धारा 144 लागू है और लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की गई. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या इस मामले में हर्षा का इंसाफ मिलेगा?
आज कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब मामले पर सुनवाई के दौरान एक अहम टिप्पणी की गई. इस मामले में कर्नाटक के स्कूलों का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील एसएस नागानंद ने याचिकाकर्ता से पूछा कि हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में Relegious Pratice है या इसे सांस्कृतिक आचरण माना जाएगा? इसमें आगे उन्होंने जो बातें कहीं, वो आपको बहुत ध्यान से पढ़नी चाहिए.
एसएस नागानंद ने बताया कि जब इस्लाम धर्म की स्थापना हुई थी, तब स्थितियां बहुत अलग थीं और तब मुसलमानों के लिए दिन में पांच समय की नमाज को अनिवार्य बताया गया था. लेकिन आज के हालात में ज्यादातर मुसलमानों के लिए दिन में पांच समय नमाज पढ़ना सम्भव नहीं है.
इसके बाद वो कहते हैं कि कल्पना कीजिए, अगर कोई व्यक्ति स्कूटर चला रहा है और इस दौरान पास किसी मस्जिद से अजान की आवाज़ आने पर वो व्यक्ति सड़क के बीचों-बीच ही अपना स्कूटर रोक कर नमाज पढ़ने लगता है तो उस स्थिति में एक पुलिसवाला क्या करेगा? अगर पुलिसवाला ट्रैफिक संचालित करने के लिए उस व्यक्ति को बीच सड़क पर नमाज पढ़ने से रोकता है तो क्या इसका मतलब ये माना जाएगा कि उस उसने उस व्यक्ति को उसके धर्म का पालन नहीं करने दिया?
एक लाइन में इस टिप्पणी का सार ये है कि, भारत का संविधान यही कहता है कि किसी भी नागरिक को उसके मौलिक अधिकारों की तभी तक आजादी है, जब तक वो उस आजादी से दूसरे नागरिकों के अधिकारों में दखल नहीं देता. लेकिन हिजाब मामले में ऐसा ही हो रहा है.
स्कूल में एक ही धर्म के बच्चे नहीं पढ़ते. सभी धर्मों के बच्चे पढ़ते हैं. स्कूल शिक्षा हासिल करने के लिए होते हैं. अब अगर मुस्लिम छात्राएं हिजाब पहनने की मांग करेंगी, तो फिर हिन्दू छात्र तिलक लगा कर और भगवा गमछा पहन कर Classes अटेंड करने की मांग करेंगे. ईसाई धर्म के बच्चे, धार्मिक चिन्ह वाले लॉकेट पहन कर आएंगे और हमारे देश की पाठशालाएं, धर्म की पाठशालाएं बन जाएंगी.
इसे आप आंध्र प्रदेश से आई खबर से भी समझ सकते हैं, जहां प्रकाशम जिले में स्थित एक स्कूल में हिजाब पहनने को लेकर जबरदस्त हंगामा हुआ. पुलिस के मुताबिक, इस स्कूल के प्रिंसिपल ने जब एक मुस्लिम छात्रा को हिजाब पहन कर क्लास में प्रवेश देने से मना कर दिया तो इस मुस्लिम छात्रा के माता पिता और स्थानीय लोग स्कूल के बाहर इकट्ठा हो गए और इन लोगों ने स्कूल के प्रिंसिपल से ऐसा करने के लिए माफी भी मंगवाई. इसके अलावा इन लोगों ने खुद से ये ऐलान कर दिया कि अब इस स्कूल में किसी भी मुस्लिम छात्रा को हिजाब पहनने से नहीं रोका जाएगा.