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DNA with Sudhir Chaudhary: हमारे देश में अब अपराधियों को भी धार्मिक चश्मे से देखा जाता है और आइए आज आपको उसका सबसे ताजा उदाहरण बताते हैं. दिल्ली दंगों का एक आरोपी है, जिसका नाम है, शाहरुख पठान. वो जेल से पेरोल पर सिर्फ 4 घंटों के लिए अपने घर आया और इस दौरान उसका ऐसा स्वागत हुआ, जैसा वो कोई बहुत बड़ा नायक हो या रॉबिनहुड हो. उसके घर के आसपास के लोगों ने उसे एक खास धर्म का हीरो बना दिया और उसके पीछे सैकड़ों लोगों का एक हुजूम उसके समर्थन में नारे लगाने लगा. ये वही आरोपी है, जिसने दंगों के दौरान पुलिस पर पिस्तौर लहराई थी और ये दंगों का Posterboy बन गया था. हमारे देश में भोजन धर्म के नाम पर बंट चुका है, जानवर धर्म के नाम पर बंट चुके हैं, रंग धर्म के नाम पर बंट चुके हैं और अब अपराधी भी धर्म के नाम पर बंट गए हैं.
दिल्ली दंगों के आरोपी शाहरुख पठान को 24 फरवरी 2020 को गिरफ्तार किया था और तभी से वो जेल में बन्द है. इसके अलावा इस मामले में उसकी कई बार जमानत याचिका भी खारिज हो चुकी है और अदालत ने उस पर लगे आरोपों और उसके खिलाफ पेश किए गए सबूतों को काफी गंभीर माना है. हालांकि 21 मई को उसकी तरफ से दिल्ली की एक अदालत में पेरोल की अर्जी दी गई थी और इसमें ये लिखा था कि उसके पिता का स्वास्थ्य काफी खराब है. इसलिए अदालत उसे पेरोल पर जेल से बाहर जाने दे. इसके बाद अदालत ने मानवीय आधार पर चार घंटे की पेरोल मंजूर कर दी थी और साथ ही ये भी कहा था कि इस दौरान पुलिस इस आरोपी को उसके घर लेकर जाएगी. लेकिन जेल के बाहर निकलने के बाद क्या हुआ, वो नजारा देखने लायक था. इस छोटी सी अवधि की तस्वीरें हमारी न्यायिक व्यवस्था को भी सीधे चुनौती दे रही हैं. ये पूरी घटना 23 मई को हुई थी.
भविष्य में अगर शाहरुख पठान को अदालत ने दोषी मान भी लिया तो भी उसे हमारे देश में एक खास समुदाय के लोग कभी गलत नहीं मानेंगे. बल्कि वो ऐसे लोगों का रोल मॉडल बन जाएगा और इससे खतरनाक बात कोई और नहीं हो सकती. दिल्ली के जिस इलाके में शाहरुख पठान रहता है, वो मुस्लिम बहुल इलाका है और दंगों के दौरान इस इलाके में भी कई घरों और दुकानों को जलाया गया था.
यहां एक और बात गौर करने वाली है कि अब इस देश में जो न्यायिक व्यवस्था है, उसे भी धर्म के नाम पर बांट दिया गया है. इससे पहले रंग, पहनावे, जानवर और भोजन को तो धर्म के आधार पर बांट ही दिया गया था. लेकिन अब जो अदालतों में फैसले होते हैं, वो भी धर्म के आधार पर बंट गए हैं. जैसे यासीन मलिक को सजा होती है तो मुस्लिम कट्टरपंथी इस पर Minority Card खेलना शुरू कर देते हैं और जब शाहरुख पठान जैसे दंगाइयों को मानवीय आधार पर पेरोल मिल जाती है तो उसका जबरदस्त स्वागत किया जाता है.
2020 में जब नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ ये दंगे हुए थे, तब इनमें दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. लेकिन उनकी शहादत के बाद किसी ने भी उनके घर जाकर उनके परिवार से मिलने की कोशिश नहीं की. उन्हें अपना हीरो नहीं माना. लेकिन जिस व्यक्ति ने दंगे भड़काए, आज वो हमारे देश के एक खास धर्म के लोगों का हीरो बन गया है.
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#DNA: दिल्ली दंगों का आरोपी हीरो कैसे?
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— Zee News (@ZeeNews) May 27, 2022