Project Cheetah: आगे कुआं पीछे खाई जैसी दिक्कत में विदेश से लाए गए चीते, क्या है फुर्तीले मेहमानों की दोहरी मुश्किल?
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Project Cheetah: आगे कुआं पीछे खाई जैसी दिक्कत में विदेश से लाए गए चीते, क्या है फुर्तीले मेहमानों की दोहरी मुश्किल?

Kuno National Park And Gandhi Sagar Wildlife Sanctuary: मध्य प्रदेश का कूनो राष्ट्रीय उद्यान तेंदुओं की संख्या अधिक होने और शिकार योग्य पशुओं की कमी से जूझ रहा है. भारत में विदेश से लाए गए चीतों का पहला घर बना था. वहीं, चीतों का दूसरा घर बनने जा रहा गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में चीता के लिए जरूरी तैयारियों को पूरा करने में देरी हो रही है.

Project Cheetah: आगे कुआं पीछे खाई जैसी दिक्कत में विदेश से लाए गए चीते, क्या है फुर्तीले मेहमानों की दोहरी मुश्किल?

Double Trouble For Cheetah: भारत में विदेश से लाए गए चीतों का पहला घर बना मध्य प्रदेश का कूनो राष्ट्रीय उद्यान तेंदुओं की संख्या अधिक होने और शिकार योग्य पशुओं की कमी से जूझ रहा है. इन्हीं दोनों चुनौतियों ने गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में भी जरूरी तैयारियों में देर करवा दी है. यह अभ्यारण्य चीतों का दूसरा घर होगा. 

केंद्र की ‘चीता परियोजना संचालन समिति’ (चीता प्रोजेक्ट स्टीरिंग कमेटी) की बैठकों के विवरण से पता चलता है कि सितंबर 2022 में भारत में चीतों की आबादी बढ़ाने की महत्वाकांक्षी पहल के सामने शिकार में बढ़त और तेंदुओं का प्रबंधन प्रमुख चुनौतियां हैं.

सेप्टिसीमिया के कारण तीन चीतों की मौत के बाद बढ़ी सावधानी

शिकार कम होना उन वजहों में से एक है जिसके चलते सेप्टिसीमिया के कारण तीन चीतों की मौत के बाद बाकी के चीतों को पिछले साल अगस्त में जंगल से लाए जाने के बाद कूनो में बाड़ों में अधिक वक्त गुजारना पड़ा. हालांकि, अंतरिम समाधान के तौर पर प्राधिकारी कूनो और गांधी सागर अभयारण्य दोनों में शिकार की संख्या बढ़ा रहे हैं. दोनों इलाकों में तेंदुओं की अधिक तादाद के कारण भी तेंदुआ स्थानांतरण अभियान शुरू करना पड़ा है.

तेंदुए और शेर जैसे शिकारियों की उपस्थिति चीतों के लिए खतरा

विशेषज्ञों के अनुसार, तेंदुए और शेर जैसे शिकारियों की उपस्थिति चीतों के लिए खतरा पैदा करती है. बहरहाल, समिति के सदस्यों ने बार-बार ‘‘मूल स्थान पर शिकार बढ़ाने’’ की महत्ता पर जोर देते हुए कहा है कि ‘‘ट्रांसफर के जरिए सक्रिय शिकार को बढ़ाया जाना अनिश्चितकाल तक नहीं हो सकता है.’’ मंदसौर के प्रभागीय वन अधिकारी संजय रैखेरे ने 18 जून को एक बैठक में कहा था कि गांधी सागर अभयारण्य में चीतों के नए जत्थे के लिए तैयार किए जा रहे 64 वर्ग किलोमीटर के बाड़े में 24 तेंदुए थे.

सूत्रों के अनुसार, अभी तक वहां से 15 तेंदुओं को स्थानांतरित किया गया है. इसके अलावा गांधी सागर अभयारण्य तेंदुओं की संख्या और शिकार की चुनौतियों के कारण चीतों के लिए ‘‘100 फीसदी तैयार नहीं’’ है. एक सूत्र ने बताया, ‘‘हम तेंदुआ मुक्त बाड़बंदी बनाने पर काम कर रहे हैं. हमें बाड़े के अंदर और बाहर शिकार की आबादी में सुधार करने की भी आवश्यकता है.’’ 

368 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है गांधी सागर अभयारण्य

गांधी सागर अभयारण्य 368 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और इसके आसपास 2,500 वर्ग किलोमीटर का अतिरिक्त क्षेत्र है. ‘‘गांधी सागर अभयारण्य में चीतों को लाने की कार्य योजना’’ के मुताबिक, पांच से आठ चीतों को पहले चरण में प्रजनन पर ध्यान केंद्रित करते हुए 64 वर्ग किलोमीटर के शिकारी मुक्त बाड़बंदी वाले क्षेत्र में छोड़ा जाएगा. इस परियोजना का दीर्घकालीन मकसद कूनो-गांधी सागर में 60-70 चीतों की आबादी तक पहुंचना है. 

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तेंदुओं से सीधे टकराव से बचते हैं चीता, करते हैं खुले में शिकार

अपनी असाधारण गति और चपलता के लिए पहचाने जाने वाले चीते मुख्य रूप से खुले आवास में शिकार करते हैं. इसके विपरीत, तेंदुए विभिन्न प्रकार के आवास में शिकार करने के अनुकूल होते हैं और उनका आहार कई तरह का होता है. नतीजतन, चीते ऐसे आवास और समय चुनकर तेंदुओं से सीधे टकराव से बचते हैं जब तेंदुए कम सक्रिय होते हैं. 

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सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदन के जरिए मिले रिकॉर्ड से पता चलता है कि समिति के सदस्यों ने अभी तक हुई लगभग हर बैठक में शिकार और तेंदुआ संबंधी चुनौतियों को लेकर गंभीर चिंताएं व्यक्त की हैं. संचालन समिति के अध्यक्ष राजेश गोपाल ने तेंदुओं की सापेक्ष बहुतायत से निपटने के लिए पारिस्थितिकी, आवास आधारित दीर्घकालीन समाधान तलाशने की जरूरत पर जोर दिया है. (एजेंसी इनपुट के साथ)

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