यूक्रेन-रूस युद्ध से भारत को मिला कौन सा सबक, डिफेंस एक्सपर्ट ने यूं समझाया
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यूक्रेन-रूस युद्ध से भारत को मिला कौन सा सबक, डिफेंस एक्सपर्ट ने यूं समझाया

रूस की सीमा एक दर्जन से अधिक देशों से मिलती है और इनमें से कुछ देश, जो कभी पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा थे, आज उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के सदस्य बन चुके हैं. यूक्रेन के राष्ट्रपति का झुकाव भी पश्चिमी देशों की तरफ था. लिहाजा, रूस अपनी सुरक्षा का लेकर चिंतित था. 

यूक्रेन-रूस युद्ध से भारत को मिला कौन सा सबक, डिफेंस एक्सपर्ट ने यूं समझाया

नई दिल्ली: कोरोना महामारी के खतरे से अभी पूरी दुनिया उबरी भी नहीं थी कि रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण (Russia Attack Ukraine) कर दुनिया के सामने नया संकट पैदा कर दिया है. सभी की नजर इस युद्ध और इसके नतीजों पर टिकी है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद दो देशों की आमने-सामने की सबसे बड़ी इस लड़ाई से भारत (India) भी अछूता नहीं रह सकता. क्या होगी इस युद्ध की परिणति और कैसे भारत सहित विश्व के दूसरे देश इससे प्रभावित होंगे, इसी मुद्दे पर रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेट जनरल (रिटायर्ड) संजय कुलकर्णी ने अहम विश्वेषण किया है.

  1. यूक्रेन पर हमले के मायने
  2. रूस-यूक्रेन वार के सबक
  3. वैश्विक व्यवस्था पर कितना असर?

यूक्रेन-रूस युद्ध के सबक

डिफेंस एक्सपर्ट लेफ्टिनेट जनरल (सेवानिवृत्त) संजय कुलकर्णी ने एक न्यूज़ एजेंसी को दिए इंटरव्यू में इस जंग (Russia-Ukraine War) से संबंधित अहम सवालों के जवाब देने की कोशिश की है. 

सवाल: रूस की सैन्य कार्रवाई के बाद यूक्रेन में भीषण जंग जारी है. इस युद्ध की क्या परिणति देखते हैं आप? 

जवाब: रूस की सीमा एक दर्जन से अधिक देशों से मिलती है और इनमें से कुछ देश, जो कभी पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा थे, आज उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के सदस्य बन चुके हैं. यूक्रेन के राष्ट्रपति का झुकाव भी पश्चिमी देशों की तरफ था. लिहाजा, रूस अपनी सुरक्षा का लेकर चिंतित था. उसे लगता रहा है कि उसकी सुरक्षा संबंधी चिंताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है. पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका को लग रहा था कि रूस कमजोर है और आज की तारीख में उसमें उतना दम नहीं है.

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जिस प्रकार उसने 1994 से लगातार हंगरी, रोमानिया, स्लोवाकिया, लातविया और लिथुवानिया जैसे देशों को धीरे-धीरे नाटो का सदस्य बना लिया, इससे रूस परेशान था. इसलिए आज की तारीख में जो भी हो रहा है उससे मुझे लगता है कि गलती यूक्रेन की भी है. यूक्रेन और रूस कभी एक ही देश थे. दोनों को एक दूसरे की चिंताओं को समझना था. लेकिन यूक्रेन ने शायद उसे नहीं समझा. मेरी राय में यूक्रेन को पश्चिमी देशों ने उकसाया भी और इस उकसावे के कारण यूक्रेन को ये सब भुगतना पड़ रहा है.

सवाल: भारत के लिहाज से इस युद्ध के तात्कालिक और दूरगामी नतीजे क्या होंगे? 

जवाब: बिल्कुल. इससे हम पर भी असर पड़ेगा. क्योंकि यूक्रेन के साथ हमारे अच्छे रिश्ते हैं तो रूस के साथ भी हमारे बहुत अच्छे संबंध हैं. अमेरिका के साथ भी हमारे बहुत अच्छे रिश्ते हैं लेकिन चीन के साथ हमारे रिश्ते अच्छे नहीं हैं. इस हालात में हम अगर देखें तो कम से कम यूक्रेन से हमारे जो आर्थिक रिश्ते हैं, वह प्रभावित होंगे. खाने का तेल, फर्टिलाइजर इत्यादी का यूक्रेन से निर्यात करते हैं. यह दोनों चीजें जबरदस्त तरीके से प्रभावित होंगी. रूस से भी तेल आता है, कच्चा ईंधन आता है. कोरोना के कारण दुनिया के तमाम देशों की आर्थिक स्थिति पहले से ही प्रभावित हुई है. अब यह जो अशांति फैली है, उसका भी फर्क पड़ेगा.

सवाल: क्या इस युद्ध के बाद आप एक ‘नया वर्ल्ड ऑर्डर’ (वैश्विक व्यवस्था) आकार लेते देख रहे हैं? 

जवाब: इसमें कोई शक नहीं है. एक नया वर्ल्ड ऑर्डर निश्चित तौर पर तैयार होगा, जिसमें चीन एशिया में अपने आपको प्रभावशाली बनाने की कोशिश करेगा. रूस ना एशिया में है ना यूरोप में. उसका 30% हिस्सा यूरोप में है और 70% एशिया में. बीते 22 साल से पुतिन रूस को उस मुकाम पर ले आए हैं, जिसके बारे में कोई सोच नहीं सकता था. 1990 में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस बिखर गया. रूस ने साबित किया है कि वह फिर से अपने गौरवशाली स्थान पर पहुंचा है. तो वह चाहता है कि सब उसकी ताकत को स्वीकार करें. रूस, पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका को संदेश दे रहा है कि वह उसे नजरअंदाज ना करे. अगर चीन, रूस, ईरान अजरबैजान यह सब देश एक हो गए और पश्चिमी देश अमेरिका के साथ हो गए तब भारत की चिंता बढ़ जाती है. क्योंकि चीन के साथ हमारे संबंध बहुत खराब हैं और हमारे संबंध रूस के साथ बहुत अच्छे हैं.

सवाल: यूक्रेन पर रूसी सैन्य कार्रवाई पर भारत कश्मकश की स्थिति में है. क्या कहेंगे आप?

जवाब: रूस, हमारा बहुत अच्छा दोस्त है, युक्रेन भी हमारा बहुत अच्छा दोस्त है और अमेरिका भी हमारा अच्छा दोस्त है. ऐसे में किसी का पक्ष लेना बहुत मुश्किल हो जाता है. इस लड़ाई के बाद एक बात साफ जाहिर है कि हर देश को अपनी लड़ाई खुद लड़नी है. इस लड़ाई ने यह साबित भी कर दिया है. यूक्रेन के राष्ट्रपति ने अपनी क्षमता को नहीं पहचाना और वह दूसरों के कंधे पर बंदूक रखकर गोली चलाने की सोच रहे थे. उन्हें उम्मीद थी कि नाटो, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों से मदद मिल जाएगी. लेकिन क्या हुआ, हम सब देख रहे हैं. इस लड़ाई से एक सीख हमें यह भी मिलती है कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ (Atmanirbhar Bharat) बहुत जरूरी है. सुरक्षा के मामले में हमारे लिए आत्मनिर्भर होना बहुत ही जरूरी है. देश की संप्रभुता और अखंडता के लिए लड़ाई हमें खुद लड़नी है. इसलिए तैयारी भी पूरी होनी चाहिए और सब के साथ अच्छे संबंध भी होने चाहिए. भारत के दो पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान के रवैये को देखकर लगता है कि हमारी सैन्य शक्ति मजबूत होनी चाहिए. हमें आर्थिक तौर पर मजबूत होने के साथ सबके साथ दोस्ती भी होनी चाहिए.

(भाषा इनपुट के साथ)

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