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नई दिल्ली: जब किसी घर में कोई बच्चा जन्म लेता है, तो उसके माता-पिता से लेकर सभी रिश्तेदार बच्चे के नाम को लेकर काफी एक्साइटेड होते हैं. आजकल कई माता-पिता अपने नाम पर ही बच्चों का नाम रखते हैं. इसके अलावा कई लोग वाकायदा पूजा पाठ कराकर बच्चे का नाम रखवाते हैं. लेकिन कर्नाटक के एक गांव में अजीबोगरीब परंपरा है. वहां बच्चों के नाम किसी भी फेमस शख्सियत से लेकर कंपनी और वस्तुओं के नाम पर रख दिए जाते हैं. इस गांव में, मोदी, ओबामा और गूगल जैसे बच्चों के नाम हैं.
इस खास परंपरा वाले गांव का नाम है बहादुरपुर. इस गांव में नाम रखने के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती. लोग उसे अपनी पहचान बना लेते हैं जो दुनिया में सबसे मशहूर हो. ये गांव बेंगलुरु के पास है. यहां हाक्कीपिक्की आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं. हाक्कीपिक्की समुदाय के लोग जंगलों से निकलकर गांव में बस गए और अपने कई नए नियम बना लिए.
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हाक्कीपिक्की समुदाय ने अपने हिसाब से नाम रखने का नियम बना लिया. वो फेमस चीजों पर बच्चों के नाम रखते हैं. जैसे अगर आज कोई बच्चा जन्म ले तो वे वर्तमान दौर को देखते हुए उसका नाम शायद कोरोना रख दें या फिर कोविड वैक्सीन.यह सिलसिला सालों से चला आ रहा है. इसलिए इस गांव में रहने वाला हर व्यक्ति अनोखी पहचान रखता है. जैसे किसी का नाम गूगल है तो कोई ओबामा है. किसी ने खुद को सुप्रीम कोर्ट पहचान दी है तो कोई माइक्रोसॉफ्ट कहलवाना पसंद करता है. वैसे यहां शाहरुख खान, अमिताभ बच्चन, सोनिया गांधी के साथ नरेंद्र मोदी भी रहते हैं.
हम्पी विश्वविद्यालय के ट्राइबल स्टडीज डिपार्टमेंट के चेयरपर्सन केएम मेत्री बताते हैं कि हाक्कीपिक्की समुदाय के लोग खुद को राजपूत महाराज महाराणा प्रताप का वंशज मानते हैं. यह समुदाय पहले देश के कई हिस्सों में फैला हुआ था पर अब कर्नाटक के बेंगलुरु के आसपास के गांवों में बसा हुआ है.
आदिवासी पहले अपने बच्चों के नाम कंदमूल, फलों, नहरों और नदियों के नाम पर रखा करते थे. आज भी गांव के बुजुर्ग नीम, पीपल, बांस और बेरी जैसे अनोखे नामों से जाने जाते हैं. ऐसा इसलिए था क्योंकि आदिवासी खुद को जंगलों से जुड़ा हुआ मानते थे, वे जंगलों पर आश्रित थे और उसे सम्मान देने के लिए इस तरह के नाम रखे जाते थे. लेकिन आजकल नए नाम रखे जाने लगे हैं. कई लोगों ने तो आधार कार्ड और राशन कार्ड पर भी यही नाम लिखवा रखे हैं.
अनोखे नाम रखने के अलावा हाक्कीपिक्की समुदाय में कई और भी अच्छी बातें हैं. जैसे इस समुदाय में बेटी के जन्म पर उत्सव मनाया जाता है और जब उसकी शादी होती है तो दूल्हा पक्ष के लोग बेटी के परिवार को तोहफे के तौर पर रकम या कोई कीमती चीज देते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि आदिवासियों का मानना है कि कन्यादान दुनिया का सबसे महान दान है और इसकी पूर्ति कोई नहीं कर सकता. ऐसे में जब एक पिता अपने बेटी किसी परिवार को दे रहा है तो वह सम्मान का हकदार है और उसे कीमती चीज तोहफे में देना उसी सम्मान को जताने का एक तरीका है.
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इसके अलावा समुदाय के लोग आज भी जंगलों से लकड़ियां बीनने के काम करते हैं, ना कि लकड़ी के लिए पेड़ों को काटने का. ये शायद इकलौता समुदाय ही होगा जो 14 तरह की भाषाएं बोलने और लिखने में माहिर है. हालांकि ये भाषाएं हमारी आम कही सुनी जाने वाली भाषाओं से अलग है. जिसे केवल आदिवासी बातचीत के दौरान इस्तेमाल करते हैं.
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