सरदार पटेल की वजह से पूरे भारत का टाइम है एक, वरना देश में हो रही थी स्टैंडर्ड समय को लेकर जंग?
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सरदार पटेल की वजह से पूरे भारत का टाइम है एक, वरना देश में हो रही थी स्टैंडर्ड समय को लेकर जंग?

Indian Standard Time Introduced 1 September 1947: आप लोग तो घड़ी पहनते ही होंगे, कभी आपने सोचा है कि पूरे भारत का समय एक कैसे है? शायद ऐसे बहुत कम लोग ही होंगे जो हाथों में घड़ी बंधाते हैं, लेकिन उनकों पता हो कि इंडियन स्टैंडर्ड टाइम कब और कैसे निर्धारित हुआ था? किसकी वजह से पूरे भारत का समय भी एक है, वरना देश में समय को लेकर विवाद हो रहा था. 

 

सरदार पटेल की वजह से पूरे भारत का टाइम है एक, वरना देश में हो रही थी स्टैंडर्ड समय को लेकर जंग?

Indian Standard Time: भाई...घड़ी में समय कितना हुआ है? जी... 12 बजाने वाला है. कितना आसान है न किसी घड़ी में समय देखकर किसी को बताना, लेकिन अगर आपसे यह सवाल किया जाए कि इंडियन स्टैंडर्ड टाइम कैसे तय हुआ, किसने कराया तो आपका क्या जवाब होगा? सोच में पड़ जाएंगे. तो आइए जानते हैं कि विश्व के अन्य देशों की तरह भारत का इंडियन स्टैंडर्ड टाइम कब और कैसे निर्धारित हुआ था, किसने कराया था.

इंडियन स्टैंडर्ड टाइम  1 सितंबर 1947 
भारत को आज़ादी (Independence of India) मिली, तो 1 सितंबर 1947 को पूरे देश के लिए एक समय ज़ोन चुना गया, जिसे आईएसटी कहा गया. यह दुनिया के कॉर्डिनेटेड समय (यानी UTC) के हिसाब से +05:30 माना गया यानी साढ़े पांच घंटे आगे वाला टाइम ज़ोन. उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम हम समय के एक सूत्र में बंध गए थे. भारत को अपना स्टैंडर्ड समय मिल गया था. विविधता पूर्ण देश की भारतीय स्टैंडर्ड समय की परिकल्पना भी अद्भुत थी. इसका क्रेडिट भी काफी हद तक भारत के लौह पुरुष यानि वल्लभ भाई पटेल को जाता है.

इंडियन स्टैंडर्ड टाइम का इतिहास बेहद दिलचस्प है. कहा जाता है कि पहले भारत में कोई भी इंडियन स्टैंडर्ड टाइम नहीं हुआ करता था, लेकिन ब्रिटिश काल में पहली बार इसका जिक्र हुआ, एक अन्य कहानी है कि ब्रिटिश काल में मुंबई (बम्बई), चेन्नई (मद्रास), कोलकाता (कलकत्ता) जैसे शहर और राज्य के अनुसार टाइम जोन को निर्धारित किया गया था.

 

क्या है इंडियन स्टैंडर्ड टाइम का इतिहास
बॉम्बे टाइम जोन:-
इंडियन स्टैंडर्ड टाइम को दुनिया के कॉर्डिनेटेड समय (यानी यूटीसी) से साढ़े पांच घंटे आगे वाला टाइम ज़ोन माना गया. इससे पहले समस्या तो थी और वो भी गंभीर! आखिर विविधता पूर्ण देश को कैसे एक समय में बांध दिया जाए. समय और भारतीय स्टैंडर्ड टाइम को लेकर बहस हुईं क्योंकि बॉम्बे और कलकत्ता (कोलकाता) का अपना टाइम जोन था.

अंग्रेज़ों ने 1884 में इस टाइम ज़ोन को तब तय किया जब अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर टाइम ज़ोन तय किए जाने की बैठक हुई. ग्रीनविच मीनटाइम यानी जीएमटी से चार घंटे 51 मिनट आगे का टाइम ज़ोन था बॉम्बे टाइम. 1906 में जब आईएसटी का प्रस्ताव ब्रिटिश राज में आया, तब बॉम्बे टाइम की व्यवस्था बचाने के लिए फिरोज़शाह मेहता ने पुरज़ोर वकालत की और बॉम्बे टाइम बच गया!

कलकत्ता टाइम ज़ोन:-
दूसरा था कलकत्ता टाइम ज़ोन. साल 1884 वाली बैठक में ही भारत में दूसरा टाइम जोन था कलकत्ता टाइम. जीएमटी से 5 घंटे 30 मिनट 21 सेकंड आगे के टाइम ज़ोन को कलकत्ता टाइम माना गया. 1906 में आईएसटी प्रस्ताव नाकाम रहा, तो कलकत्ता टाइम भी चलता रहा.

ऐतिहासिक किस्सा
देबाशीष दास ने अपने एक लेख में इसकी ऐतिहासिकता को लेकर कई किस्से शेयर किए. भारतीय स्टैंडर्ड टाइम समय का परिचय: एक ऐतिहासिक सर्वेक्षण में उन्होंने इसका जिक्र किया है. लिखा है- जुलाई 1947 में, स्वतंत्रता से ठीक पहले, सरदार वल्लभभाई पटेल से कलकत्ता के समय को समाप्त करने का अनुरोध किया गया था.

सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमिका
कहा गया- जब पूरे भारत में, विशेष रूप से बंगाल में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और आवश्यक मामले को संबंधित अधिकारियों द्वारा अनदेखा किया जा रहा है, यानि बंगाल का समय जो भारतीय मानक समय से एक घंटा आगे है और केवल बंगाल में ही इसका पालन किया जाता है जो नागरिकों के हितों के लिए हानिकारक है. हम बंगाली समय के एक रूप यानी भारतीय मानक समय का पालन करना चाहते हैं. जिसका पालन अन्य सभी प्रांतों में किया जाता है. " बंबई के संबंध में भी ऐसा ही अनुरोध किया गया था.

पटेल का सुझाव 
गृह विभाग ने सुझाव दिया कि इस मामले पर संबंधित राज्य सरकार विचार करें. और दोनों शहर सहमत हो गए, कलकत्ता ने लगभग तुरंत और बॉम्बे ने ढाई साल बाद इसे स्वीकार कर लिया. कलकत्ता और पश्चिम बंगाल प्रांत ने 31 अगस्त/1 सितंबर 1947 की मध्यरात्रि को IST को अपना लिया. इनपुट आईएनएस से

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