DNA With Sudhir Chaudhary: Edwina Mountbatten और जवाहर लाल नेहरू से जुड़े कुछ दस्तावेज ब्रिटेन की साउथैम्पटन यूनिवर्सिटी में रखे थे. लेकिन ब्रिटेन अब इन दस्तावेजों को सार्वजनिक करने से मना कर रहा है. अब सवाल ये उठता है कि इन दस्तावेजों में ऐसा क्या है, जिसे ब्रिटेन छिपाना चाहता है.
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DNA With Sudhir Chaudhary: ब्रिटेन की अदालत ने भारत के आखिरी Viceroy Lord Mountbatten, उनकी पत्नी Edwina Mountbatten और जवाहर लाल नेहरू से जुड़े कुछ दस्तावेजों को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है. भारत को आजाद हुए 74 साल से ज्यादा हो चुके हैं. आम तौर पर पुराने दस्तावेजों को Declassify कर दिया जाता है लेकिन एडविना और नेहरू से जुड़े दस्तावेज अब तक रहस्य बने हुए हैं.
ये दस्तावेज ब्रिटेन की साउथैम्पटन यूनिवर्सिटी में रखे थे और ब्रिटेन के मशहूर इतिहासकार Andrew Lownie (एंड्रयू लॉनी) ने इन्हें रिलीज करने की मांग की, लेकिन यूनिवर्सिटी के मना करने के बाद वो कोर्ट पहुंच गए. उन्होंने लार्ड माउंटबेटेन और लेडी माउंटबेटेन की निजी डायरी के साथ एडविना माउंटबेटेन और जवाहर लाल नेहरू के बीच लिखी गई चिठ्ठियों को सार्वजनिक करने की मांग की. इस केस को लड़ने के उन्होंने करीब तीन लाख पाउंड यानी लगभग 2 करोड़ 80 लाख रुपये खर्च कर दिए. लेकिन कोर्ट ने उनकी अपील खारिज कर दी. कोर्ट ने इस फैसले के पीछे दलील दी कि इन दस्तावेजों को सार्वजनिक होने से ब्रिटेन के भारत और पाकिस्तान के साथ संबंधों पर खराब असर पड़ सकता है.
यहां आपके लिए ये जानना भी जरूरी है कि लार्ड माउंटबेटेन उनकी पत्नी और उनसे जुड़े ये दस्तावेज इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं और ब्रिटिश सरकार इस रहस्य को छिपाने की इतनी कोशिश क्यों कर रही है.
रिपोर्ट्स के अनुसार ब्रिटिश सरकार ने भी इस मुकदमे में 8 लाख डॉलर यानी 6 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर दिए हैं. ये भारी भरकम राशि कुछ बेहद गोपनीय दस्तावेजों को छिपाने के लिए खर्च की गई है. जिन Papers को सार्वजनिक करने से कोर्ट ने मना कर दिया है, वो वर्ष 1947 से 1948 के बीच के हैं. ये वही दौर था, जब भारत को अंग्रेजी शासन से आजादी मिली थी और विभाजन के बाद पाकिस्तान नाम का नया देश बना था और सबसे अहम बात ये कि उस समय भारत के संविधान का निर्माण भी हो रहा था.
माउंटबेटन भारत में ब्रिटेन के आखिरी वायसराय थे और जब भारत आजाद हो रहा था, उस वक्त वही भारत के गवर्नर जनरल थे. उन्होंने आजादी, भारत के विभाजन जैसी स्थितियों को करीब से देखा था और वो खुद भी कहीं न कहीं इसका हिस्सा थे. माना जाता है कि उन्होंने अपनी Diary में कई ऐसी बातें लिखीं, जिनका जिक्र ना तो उन्होंने कभी किसी से किया और ना ही ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1979 में उनकी मृत्यु के बाद ऐसा होने दिया. इन clasified papers में Lady Montbatten और जवाहर लाल नेहरु द्वारा एक दूसरे को लिखे गए कुछ पत्र भी हैं.
Andrew Lownie इससे पहले भी Lord Mountbatten और उनकी पत्नी पर एक पुस्तक लिख चुके हैं. उस समय भी उन्होंने ये सभी पत्र और दूसरे दस्तावेज हासिल करने के लिए काफी प्रयास किए थे. उनके प्रयासों की वजह से ब्रिटिश सरकार ने उन्हे करीब 35 हजार पेज तो उपलब्ध करा दिए. तो लेकिन 150 पेज ऐसे थे जिन्हें गोपनीय बताते हुए सरकार ने जारी नहीं किया. यानी ब्रिटेन इस मुद्दे से जुड़े 99.80 प्रतिशत papers तो पहले ही सार्वजनिक कर चुका है, लेकिन बाकी बचे 0.20 प्रतिशत पेपर्स को वो नहीं जारी करना चाहता है.
यहां आपको ये भी जान लेना चाहिए कि Lord Mountbatten भारत के आखिरी Viceroy होने के साथ British Royal Family के एक महत्वपूर्ण सदस्य भी थे. वो Duke of Edinburgh Prince Philip के maternal uncle थे. इसके अलावा वो उस वक्त ब्रिटेन के राजा King George VI के cousin भी थे. रॉयल फेमिली के दूसरे सदस्यों की तरह उन्होंने भी Royal Navy ज्वाइन की और World War II के समय वो South East Asia Command के Supreme Allied Commander भी बनाए गए थे. यानी उनका ताल्लुक ब्रिटेन की उस Royal Family से भी था, जिसने भारत पर 190 वर्षों तक राज किया. इसलिए ये भी सवाल उठता है कि क्या इन दस्तावेजों के सार्वजनिक होने से Royal Family की प्रतिष्ठा पर असर पड़ता और क्या वो नहीं चाहती थी कि ये papers सार्वजनिक हों?
Lord Mountbatten और उनकी पत्नी Edwina Mountbatten दोनों को ही चिट्ठियां और Diary लिखने का शौक था. और वो सामान्य दिनों के घटनाक्रम को भी अपनी डायरी में लिखा करते थे. यानी दिनभर में जो होता था, वो उसे अपनी डायरी में नोट कर लेते थे. इसलिए हो सकता है कि जिन दस्तावेजों को ब्रिटिश सरकार सार्वजनिक नहीं करना चाहती, उनमें ऐसी कोई जानकारी हो, जिससे ये पता चल सके कि भारत को आजादी देने का आधार क्या था? और भारत पाकिस्तान बंटवारे का फैसला कैसे लिया गया?
यहां आपको ये भी जान लेना चाहिए कि उस समय किसी को भी भारत के विभाजन की बात पर विश्वास नहीं था. वर्ष 1940 तक खुद मोहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान के बनने की कोई उम्मीद नहीं थी. लेकिन सिर्फ सात वर्षों में यानी 1947 आते आते ये कल्पना सच हो गई. आज हर कोई जानना चाहता है कि भारत का विभाजन क्यों हुआ और इसके पीछे कौन था? क्या Viceroy Mountbatten, जिन्ना, महात्मा गांधी और नेहरु के बीच इस पर कोई गुप्त चर्चा हुई थी और क्या इसका जिक्र Mountbatten ने अपनी डायरी में किया था?
1947 में भारत का बंटवारा तो तय हो गया था, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती थी भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा का निर्धारण करना और ये तय करना कि पाकिस्तान को कौन-कौन से राज्य दिये जाएंगे? ये काम Cyril Radcliffe (सिरिल रेडक्लिफ) को सौंपा गया था, उन्होंने नेहरु, जिन्ना और Mountbatten के साथ कई मुलाकातें की थीं और इस बात की काफी संभवनाएं हैं कि Radcliffe के साथ हुई मुलाकातों का इन चिठ्ठियों और Mountbatten की Diary में भी जिक्र किया गया हो. हो सकता है इन दस्तावेजों में सीमा तय करने से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां दर्ज हों.
इन दस्तावेजों में जवाहरलाल नेहरू और Lord Mountbatten और उनकी पत्नी Edwina के एक दूसरे को लिखे गए पत्रों का भी जिक्र है. यहां आपको ये जान लेना चाहिए कि Mountbatten ही नहीं उनकी पत्नी Edwina के साथ जवाहर लाल नेहरु की बहुत गहरी मित्रता थी. इस पर उनकी बेटी Pamela Mountbatten ने एक पुस्तक भी लिखी थी. इसका शीर्षक था- India Remembered A Personal Account of the Mountbattens... During the Transfer of Power.
इसमें वो लिखती हैं कि नेहरु और Lady Mountbatten के बीच गहरा या यूं कहें कि आध्यात्मिक प्रेम का रिश्ता था. उनके पिता Lord Mountbatten अपनी पत्नी और नेहरु के रिश्तों को अपने लिए बहुत उपयोगी मानते थे. ये बात बहुत महत्वपूर्ण है, मैं आपको फिर से बताता हूं. Lord Mountbatten को ऐसा लगता था कि उनकी पत्नी और नेहरु का रिश्ता उनके लिए फायदेमंद है. इसका जिक्र Andrew Lownie ने अपनी पुस्तक में भी किया है. इसके Page Number 207 पर लिखा है कि जब आजादी से 3 महीने पहले मई 1947 में नेहरु, शिमला में Mountbatten के साथ छुट्टियां मना रहे थे, तब उन्होंने नेहरु से कहा कि वो आजादी के बाद भारत को Commonwealth देशों का सदस्य बनाने पर विचार करें. लेकिन नेहरु ने इससे मना कर दिया. इसके बाद Lord Mountbatten ने अपनी पत्नी Edwina Mountbatten से उन्हें इस मुद्दे पर राजी करने के लिए कहा. बाद में नेहरु इसके लिए राजी भी हो गए. इस पुस्तक के लेखक लिखते हैं कि Edwina Mountbatten ने उस दिन अपने पति Lord Mountbatten का करियर बचा लिया था.
ऐसा कहा जाता है कि नेहरु Lady Mountbatten की कोई बात नहीं टालते थे. दोनों के बीच काफी अच्छे रिश्ते थे. मार्च 1957 को नेहरु ने Lady Mountbatten को एक खत में ये लिखा था कि मुझे ये अनुभूति हुई है कि हमारे बीच गहरा जुड़ाव है. कोई अदृश्य शक्ति है, जो हमें एक दूसरे की तरफ खींचती है. नेहरु अपनी इन चिट्ठियों में अक्सर Lady Mountbatten को भारतीय राजनीति की अंदरुनी परिस्थितियों के बारे में बताते थे, वो उन्हें ये भी बताते थे कि अम्बेडकर से उनके क्या मतभेद हैं, भारत के संविधान को लेकर क्या बहस चल रही है और देश के पहले लोक सभा चुनाव के दौरान क्या क्या हो रहा है.
यहां हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि दो व्यक्ति एक दूसरे को पत्र में क्या लिखते हैं, इससे हमें कोई मतलब नहीं है. हमारा मकसद किसी के निजी जीवन को खबर बनाना नहीं है, बल्कि हमारा सवाल ये है कि जवाहरलाल नेहरु देश के पहले प्रधानमंत्री थे और वो भारत की अंदरुनी राजनीति और मुद्दों के बारे में Lady Mountebatten को बता रहे थे. यानी ब्रिटेन की उस Royal Family के साथ सारी जानकारियां शेयर कर रहे थे, जिसने भारत पर 190 वर्षों तक शासन किया.
हमें लगता है कि अगर ये दस्तावेज सार्वजनिक हो जाते तो देशवासियों को ऐसे कई सवालों के जवाब मिलते, जिनके उत्तर आज भी स्पष्ट नहीं हैं. भारत की आजादी और देश के विभाजन के संदर्भ में भी कई नई बातें पता चल सकती थीं. लेकिन विदेशी संबंधों का हवाला देकर ब्रिटेन की कोर्ट ने उन 150 पन्नों को सार्वजनिक किए जाने से रोक दिया है और अब ये सवाल हमेशा बना रहेंगे. उनमें एक सवाल ये भी है कि जब 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ तो Lord Mountbatten और उनकी पत्नी सारे फैसले नेहरु के हिसाब से क्यों तय कर रही थीं. क्या ये पहले से तय था कि नेहरु प्रधानमंत्री बनेंगे और Lord Mountbatten भारत के पहले Governor General?