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जम्मूः कभी हिंसा का गढ़ रहा दक्षिण कश्मीर एक नए युग का गवाह बनने जा रहा है. अनंतनाग जिले के एक छोटे से गांव 'मटन' में कम से कम डेढ़ दर्जन से ज्यादा कश्मीरी पंडित नए घर बना रहे हैं या इन घरों की फिर से मरम्मत की जा रही है. कुछ घरों का काम पूरा हो गया है और कुछ घरों में निर्माण चल रहा है. इन घरों को कश्मीरी पंडितों को छोड़ना पड़ा था. 1990 में आतंकवाद की शुरुआत के बाद इन पंडितों को पलायन करना पड़ा था.
1996 से मटन में रह रहे कश्मीरी पंडित अशोक कुमार सिदा ने बताया कि 1990 में सभी पंडितों ने इस जगह को छोड़ दिया था. अशोक प्रसिद्ध मार्तंड मंदिर के अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने बताया कि जब यहां हिंसा भड़की थी तब लगभग 200 घरों को जला दिया गया था. कश्मीरी पंडितों की हत्या भी की गई थी. लेकिन हम सभी मुस्लिम समुदाय को दोष नहीं दे सकते. मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कश्मीरी पंडितों की मदद की थी. अशोक ने कहा कि अब चीजें बदली हैं.
इस गांव में लगभग 15 कश्मीरी पंडित परिवार अपने घरों में वापस आ गए हैं. ये घर सालों से खराब हालत में थे और अब आखिरकार ऐसा लग रहा है कि इन घरों को फिर से खुशी का समय देखने को मिलेगा. अशोक कुमार ने कहा 'हां, यह सच है कि घर फिर से बन रहे हैं. कश्मीरी पंडित अब अपने घरों में वापसी करने की सोच रहे हैं. लगभग 15 घर हैं जो बन रहे हैं, आगे और भी बनेंगे. मुझे यकीन है कि कुछ वर्षों में अगर स्थिति शांतिपूर्ण रही, तो सभी वापस आ जाएंगे.'
बता दें कि पिछले कुछ सालों में ऐसे कई परिवार घाटी में वापस आ गए हैं जो यहां आने की कभी सोचते भी नहीं थे. मटन गांव में सबसे ज्यादा कश्मीरी पंडितों की वापसी हुई है. स्थानीय लोगों ने उनके पुराने घरों को बनाने में उनकी बहुत मदद की. स्थानीय मुस्लिम निवासियों का कहना है कि पुराना समय (1980 और उससे पहले का) वापस लौट रहा है.
बता दें कि कश्मीरी पंडितों के घरों का निर्माण कार्य कश्मीरी मुस्लिम समुदाय द्वारा किया जा रहा है. वे इन संपत्तियों की देखभाल करते रहे हैं और अब इन घरों के पुनर्निर्माण में भी उनकी मदद कर रहे हैं. फारूक अहमद लोन ने कहा 'हम बहुत खुश हैं कि वे वापस लौट रहे हैं. हम उनके घरों पर काम कर रहे हैं. लगभग 15 नए घर बन रहे हैं. हम उन्हें पूरा समर्थन दे रहे हैं.'
कश्मीर घाटी से तीन दशकों के पलायन के बाद, कश्मीरी पंडित परिवार आखिरकार अपने घरों को लौट रहे हैं, संख्या कम हो सकती है लेकिन शुरुआत बड़ी हैं. ऐसा लगता है कि यह पंडित समुदाय के लिए अपनी जन्मभूमि की ओर वापस आने की शुरुआत है.
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