Kerala: ‘गोरा-संस्कारी लड़का’ पैदा करने का ससुराल वाले डालते थे दवाब, पति ने बेटी के जन्म के बाद बना ली दूरी, केरल की महिला के संघर्ष की कहानी
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Kerala: ‘गोरा-संस्कारी लड़का’ पैदा करने का ससुराल वाले डालते थे दवाब, पति ने बेटी के जन्म के बाद बना ली दूरी, केरल की महिला के संघर्ष की कहानी

Kerala: महिला ने कहा, ‘यह धारणा कि बेटा बेटी से अधिक मूल्यवान है, हमारे समाज में गहराई से व्याप्त है, जो भेदभाव और अन्याय के चक्र को कायम रखता है.’ 

Kerala: ‘गोरा-संस्कारी लड़का’ पैदा करने का ससुराल वाले डालते थे दवाब, पति ने बेटी के जन्म के बाद बना ली दूरी, केरल की महिला के संघर्ष की कहानी

Kerala News: ‘केरल से एक ऐसा मामला सामने आया है जो यह बताता है कि समाज में लड़कियों को लेकर रूढ़ीवादी सोच किस हद तक बैठी है.  मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एक महिला ने आरोप लगाया है कि उसके ससुराल वालों ने उस पर एक 'अच्छा-गोरा-सुंदर-बुद्धिमान' लड़का पैदा करने का दवाब डाला और इसे लेकर तरह-तरह के टिप्स दिए. महिला का आरोप है कि जब बेटी का जन्म हुआ तो पति ने उनसे दूरी बना ली. 

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक महिला ने बताया कि उसे लड़का पैदा करने की विधियों से जुड़ा एक नोट दिया गया जो कि एक पुरानी मैगजीन के लेख का मलयालम अनुवाद था. इसके अलावा गोरी त्वचा वाले बच्चे का जन्म सुनिश्चित करने के लिए उसे कई ‘औषधीय’ पाउडर दिए गए.

महिला ने सास से किया सवाल
रिपोर्ट के मुताबिक महिला ने बताया कि उसने अपनी सास से लड़की पैदा करने के प्रति उनकी नापसंदगी के बारे में सवाल किया. पड़िता के मुताबिक सास का जवाब न केवल पुरातन बल्कि अपमानजनक भी था.

महिला के मुताबिक सास ने कथित तौर पर कहा कि लड़कियां हमेशा वित्तीय बोझ होती हैं, वे पैसे बाहर लेकर जाती हैं जबकि लड़के पैसे लेकर आते हैं. महिला के मुताबिक उसने सुसराल वालों की पुरानी सोच का सामना करने के बजाय, कुछ बदलाव की उम्मीद में चुप रहना बेहतर समझा.

पति केवल एक ही विषय पर बात करता
महिला ने कहा, ‘इसके तुरंत बाद, मेरे पति और मैं यूके चले गए, जहां मैं 2014 तक निःसंतान रही. इस दौरान, मेरे पति के साथ सभी पारिवारिक कॉल और बातचीत में लड़का होने का विषय हावी रहा. जब मेरी प्रेगनेंसी की पुष्टि हुई, तो मेरे पति ने मुझ पर मेरे मासिक धर्म की तारीखों के बारे में गुमराह करने का  आरोप लगाया, और मेरी गर्भधारण को एक आकस्मिक गलती बताया. तीन महीने बाद, उन्होंने मेरे लिए घर का टिकट बुक किया और मैं प्रेगनेंसी के बाकी समय के लिए अपने माता-पिता के साथ रही.’

बेटी की जन्म पर पति का रहा ये रिएक्शन
महिला ने कहा, ‘जब दिसंबर 2014 में मेरी बेटी का जन्म हुआ, तो मेरे पति की उदासीनता दर्दनाक रूप से जाहिर हो गई. वह शायद ही कभी हमसे मिलने आते थे, हमारी बेटी की परवरिश में बहुत कम दिलचस्पी दिखाते थे. मई 2015 में, मैं और मेरी बेटी यूके पहुंचे, लेकिन हम वहां केवल एक महीने तक रहे. हमारी वापसी के बाद से, उन्होंने बेटी को देखने या उसके साथ बातचीत करने का कोई प्रयास नहीं किया.’

कानूनी लड़ाई चली लंबी
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक महिला ने कहा, ‘नौ साल तक अलग रहने के बावजूद, तलाक की कार्यवाही लंबी चली, मेरे पति ने गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया. 2022 में, एक ट्रायल कोर्ट ने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया, लेकिन मेरे पति ने होई कोर्ट में एक रिविजन पिटिनश दायर की, जिससे प्रक्रिया लंबी हो गई. हाई कोर्ट के निर्देश के बाद, वह अब गुजारा भत्ता का भुगतान करता है लेकिन इंग्लैंड में हमारी बेटी की मुफ्त शिक्षा के लिए कस्टडी की मांग करता है.’

बेटी की भविष्य के लिए लड़ाई
महिला ने कहा, ‘यह धारणा कि बेटा बेटी से अधिक मूल्यवान है, हमारे समाज में गहराई से व्याप्त है, जो भेदभाव और अन्याय के चक्र को कायम रखता है.’ उन्होंने कहा उनकी लड़ाई सिर्फ अपने लिए नहीं है बल्कि उनकी बेटी के लिए एक उज्जवल और न्यायसंगत भविष्य सुरक्षित करने के लिए है , जो पुरातनपंथी मान्यताओं और प्रणालीगत अन्यायों की बेड़ियों से मुक्त हो.’

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