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नई दिल्ली: कोरोना वायरस (Coronavirus) की दूसरी लहर में कई मरीजों को ब्लैक फंगस (Black Fungus) की बीमारी से जूझना पड़ा. कई मरीजों की जान कोरोना की वजह से नहीं बल्कि ब्लैक फंगस की वजह से चली गई. लेकिन दिल्ली (Delhi) के एक अस्पताल से सामने आए अनोखे मामले में एक मरीज की जान बचाने के लिए डॉक्टरों को उसकी एक किडनी और फेफड़ों के कुछ हिस्से को निकालना पड़ा.
45 वर्ष के रंजीत कुमार (Ranjit Kumar) म्यूकरमाइकोसिस की बीमारी के साथ पिछले महीने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल (Sir Ganga Ram Hospital) पहुंचे थे. अस्पताल पहुंचते वक्त उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी, थूक में खून आ रहा था और बेहद तेज बुखार लगातार बना हुआ था. टेस्ट करने पर साफ हुआ कि मरीज को ब्लैक फंगस यानी म्यूकरमाइकोसिस ने घेर लिया है. फंगस फैलकर बाएं फेफड़े और दाहिनी किडनी तक जा पहुंचा था. अगर कुछ न किया जाता तो मरीज की जान जाने का खतरा था. इसलिए डॉक्टर्स ने मरीज की एमरजेंसी सर्जरी करने का फैसला किया और 6 घंटे के मुश्किल ऑपरेशन में मरीज के बाएं फेफड़े का एक हिस्सा और दाहिनी किडनी को निकाला गया.
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सर गंगा राम अस्पताल के पल्मोनोलॉजी डिपार्टमेंट में सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. उज्ज्वल पारख ने बताया, 'पिछले महीने गाजियाबाद में रहने वाले 45 वर्षीय रंजीत कुमार सिंह हॉस्पिटल में एडमिट हुए थे. ये एक पोस्ट कोविड बीमारी ‘म्यूकोर्मिकोसिस’ का कॉम्प्लिकेटेड केस था. उन्हें सांस लेने में तकलीफ, थूक में खून और बहुत तेज बुखार जैसी परेशानियां थी. जांच के बाद हम यह देखकर चौंक गए कि म्यूकोर न केवल उनके बाएं फेफड़े में बल्कि दाएं गुर्दे में भी फैल गया था. फेफड़े और किडनी का दोनों हिस्सा बुरी तरह डैमेज हो चुका था और आगे फैलने की आशंका थी. पेशेंट की जान बचाने के लिए लाइफ सेविंग प्रोसिजर के रूप में म्यूकोर संक्रमित पार्ट को आपातकालीन हटाने की योजना बनाई गई.'
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वहीं हॉस्पिटल के यूरोलॉजी विभाग में कंसल्टेंट डॉ. मनु गुप्ता ने कहा, 'यह एक कॉम्प्लिकेटेड केस था जिसमें म्यूकोर फेफड़े और गुर्दे के हिस्से में फैल गया. इस मामले में मरीज को बचाने के लिए समय बहुत ही कम था क्योंकि अन्य अंग प्रभावित हो रहे थे. गुर्दा काम नहीं कर रहा था. सर्जरी के दौरान यह पाया गया कि फंगस लगभग लीवर और बड़ी आंत में तेजी से फैल रहा है. इस प्रकार बड़ी कठिनाई के साथ, नजदीकी ऑर्गन को नुकसान पहुंचाए बिना गुर्दा को हटाया जा सकता था. इस मामले को चिकित्सा साहित्य में कोविड संक्रमण के बाद, दुनिया में ऐसा पहला मामला है.' करीब एक महीने अस्पताल में रहने के बाद ही रंजीत को छुट्टी मिली. अब रंजीत वापस काम पर लौट गए हैं. हालांकि अगले कुछ महीनों तक एंटी फंगल दवाएं चलती रहेंगी.
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