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नई दिल्लीः हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने ऐलान किया कि दशकों बाद नागालैंड, असम और मणिपुर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के तहत आने वाले अशांत क्षेत्रों को घटाया जा रहा है. हालांकि इस फैसले का मतलब यह नहीं है कि उग्रवाद प्रभावित इन राज्यों से AFSPA को पूरी तरह से हटाया जा रहा है, बल्कि यह कानून तीन राज्यों के कुछ इलाकों में लागू रहेगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर AFSPA क्या है? किसी भी राज्य या क्षेत्र में यह क्यों लगाया जाता है. आइए बताते हैं...
सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) की जरूरत उपद्रवग्रस्त पूर्वोत्तर में सेना को कार्रवाई में मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया था. वहीं, जब 1989 के आस पास जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो 1990 में इस कानून को यहां भी लगा दिया गया था.
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किसी भी राज्य या किसी भी क्षेत्र में यह कानून तभी लागू किया जाता है, जब राज्य या केंद्र सरकार उस क्षेत्र को 'अशांत क्षेत्र' अर्थात डिस्टर्बड एरिया एक्ट (Disturbed Area Act) घोषित कर देती है. AFSPA केवल उन्हीं क्षेत्रों में लगाया जाता है, जो कि अशांत क्षेत्र घोषित किए गए हों. इस कानून के लागू होने के बाद ही वहां सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं. कानून के लगते ही सेना या सशस्त्र बल को किसी भी संदिग्ध व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार आ जाता है.
- सेना किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर सकती है
- सशस्त्र बल बिना किसी वारंट के किसी भी घर की तलाशी ले सकते हैं और इसके लिए जरूरी बल का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.
- यदि कोई व्यक्ति अशांति फैलाता है, बार बार कानून तोड़ता है तो मृत्यु तक बल का प्रयोग कर किया जा सकता है.
- यदि सशस्त्र बलों को अंदेशा है कि विद्रोही या उपद्रवी किसी घर या अन्य बिल्डिंग में छुपे हुए हैं (जहां से हथियार बंद हमले का अंदेशा हो) तो उस आश्रय स्थल या ढांचे को तबाह किया जा सकता है.
- वाहन को रोक कर उसकी तलाशी ली जा सकती है.
- सशस्त्र बलों द्वारा गलत कार्रवाई करने की दशा में भी, उनके ऊपर कानूनी कार्रवाई नही की जाती है.
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AFSPA के विरोध का जिक्र हो तो सबसे पहले मणिपुर की आयरन लेडी भी कही जाने वाली इरोम शर्मिला का जिक्र होता है. नवंबर 2000 में एक बस स्टैंड के पास दस लोगों को कथित तौर पर सैन्य बलों ने गोली मार दी थी. इस घटना के वक्त इरोम शर्मिला वहीं मौजूद थीं. इस घटना का विरोध करते हुए 29 वर्षीय इरोम ने भूख हड़ताल शुरू कर दी थी, जो 16 साल चली. अगस्त 2016 में भूख हड़ताल खत्म करने के बाद उन्होंने चुनाव भी लड़ा था, जिसमें उन्हें नोटा (NOTA) से भी कम वोट मिले. इसके अलावा 10-11 जुलाई 2004 की दरमियानी रात 32 वर्षीय थंगजाम मनोरमा का कथित तौर पर सेना के जवानों ने रेप कर हत्या कर दी थी. मनोरमा का शव क्षत-विक्षत हालत में बरामद हुआ था. इस घटना के बाद 15 जुलाई 2004 को करीब 30 मणिपुरी महिलाओं ने नग्न होकर प्रदर्शन किया था.
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