केंद्र सरकार की कोशिशें ला रही रंग, 32 साल बाद जन्मभूमि वापस लौट रहे कश्मीरी पंडित
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केंद्र सरकार की कोशिशें ला रही रंग, 32 साल बाद जन्मभूमि वापस लौट रहे कश्मीरी पंडित

Kashmiri Pandits Returning Home: आज हम आपको बताएंगे कि कश्मीरी पंडितों को लेकर बढ़ रही जागरुकता के बाद अब कैसे कश्मीर में हिन्दू परिवारों ने 32 साल बाद फिर से लौटने की हिम्मत दिखाई है. 

केंद्र सरकार की कोशिशें ला रही रंग, 32 साल बाद जन्मभूमि वापस लौट रहे कश्मीरी पंडित

नई दिल्ली: साल 1947 में जब देश को आजादी मिली थी, उस समय कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की कुल आबादी लगभग 15 प्रतिशत थी. लेकिन दंगों और अत्याचारों की वजह से साल 1981 तक ये आबादी घट कर 5 प्रतिशत रह गई और 2015 में सरकार ने बताया था कि कश्मीर में अब 808 परिवारों के 3 हजार 445 कश्मीरी पंडित ही बचे हैं. 32 साल बाद कश्मीरी पंडितों ने फिर से अपने घरों में लौटने की हिम्मत दिखाई है. 

  1. अपने घर वापस लौट रहे हैं कश्मीरी पंडित
  2. 1990 के दशक में किया था पलायन
  3. मुस्लिम कर रहे हैं पंडितों के घर की मरम्मत

1990 के दशक में लाखों कश्मीरी पंडितों ने किया था पलायन

साल 1990 के दशक में जब कट्टरपंथी और आतंकवादी कश्मीरी पंडितों की हत्या कर रहे थे, तब 1 लाख 54 हजार कश्मीरी पंडितों ने पलायन किया था. हालांकि ऐसा भी कहा जाता है कि वास्तविकता में ये संख्या लगभग पांच लाख थी. इसके अलावा उस समय कश्मीरी पंडितों के 32 हजार घर जला दिए गए थे, जिनमें से अधिकतर पर बाद में कब्जा कर लिया गया और कुछ आज भी खंडहर पड़े हैं. लेकिन अब केन्द्र सरकार की कोशिशों के बाद, कश्मीरी पंडितों ने अपनी जड़ों की ओर लौटना शुरू कर दिया है और अब वो अपने पुराने घरों की मरम्मत करा रहे हैं.

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अनंतनाग जिले के मटन गांव में वापस लौट रहे हैं कश्मीरी पंडित

दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के मटन गांव की तस्वीरें बता रही हैं कि घाटी में माहौल बदल रहा है. यहां की फिजाओं में फिर से अमन की खुशबू बिखर रही है और भरोसे की बुनियाद एक बार फिर मजबूत हो रही है. सुधरते हालात के बीच कश्मीरी पंडित घर वापसी की तैयारी कर रहे हैं, अपनी जड़ों की तरफ लौटने के लिए घाटी में फिर से आशियाना बना रहे हैं. नये घर बनवाए जा रहे हैं और कई जगहों पर पुराने मकानों की मरम्मत करवाई जा रही है. 1996 से मटन गांव में रह रहे कश्मीरी पंडित अशोक कुमार सिद्धा का कहना है कि घाटी के हालात अब हालात सुधर रहे हैं. पंडित अशोक सिद्धा प्रसिद्ध मार्तंड मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हैं. इन्होंने वो दौर भी देखा है जब घाटी में कश्मीरी पंडितों का नरसंहार हुआ था और अब वो अपने आसपास बदल रहे माहौल को भी चश्मदीद हैं. पंडित अशोक सिद्धा ने घाटी छोड़ चुके कश्मीरी पंडितों से वापस अपने घरों की तरफ लौटने की अपील की.

कश्मीरी पंडितों के घर होने लगे हैं रौशन

मटन गांव में अब कश्मीरी पंडितों के घर रौशन होने लगे हैं. लगभग 15 कश्मीरी पंडित परिवार अपने घरों में वापस आ गए हैं. कई सालों से खाली पड़े इन घरों की हालत बेहद खराब हो गई थी, लेकिन कश्मीरी पंडितों को उम्मीद है कि उनके घरों में फिर से खुशियां लौटेंगी, फिर से आंगन चहकेगा. घाटी के बेहतर होते माहौल से कश्मीरी पंडित बहुत खुश हैं और भरोसा जता रहे हैं कि अगर हालात और सुधरे तो जल्द ही कश्मीर पंडित पूरे राज्य में फिर से बसने लगेंगे.

अपनी जड़ों की ओर वापस लौट रहे कश्मीरी पंडित उत्साहित हैं लेकिन सरकार से उनको बहुत उम्मीदें भी है. कश्मीरी पंडित चाहते हैं कि सरकार उन्हें सुरक्षा मुहैया करवाए और उनके घर फिर से बनवाने में मदद करे.

सरकार के फैसलों से सुधरे हैं घाटी के हालात

कश्मीर को ध्यान में रखते हुए लिए गए सरकार के फैसलों से घाटी के हालात सुधरे हैं. आतंकी घटनाओं में कमी आई है और लोगों में सुरक्षा का भाव बढ़ा है. यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में कई कश्मीर पंडित परिवार वापस आए हैं. मटन गांव इसलिए भी बेहद खास है क्योंकि इसी गांव में सबसे ज्यादा कश्मीरी पंडित की वापसी हुई है. बड़ी बात ये है कि ये लोग बिना किसी सरकारी मदद के वापस आए हैं और अपने घरों में रह रहे हैं. स्थानीय लोग भी कश्मीरी पंडितों को उनके पुराने घरों को फिर से बनाने में पूरी मदद कर रहे हैं. मटन गांव में रहने वाले मुस्लिमों का कहना है कि 1990 के पहले का समय वापस लौट रहा है.

पंडितों के घरों मरम्मत कर रहे हैं मुस्लिम

मटन गांव में कश्मीर पंडितों के घरों की मरम्मत का अधिकांश काम कश्मीरी मुस्लिम ही कर रहे हैं. वे इन संपत्तियों की वर्षों से देखभाल भी करते आए हैं और अब दोबारा उनके मालिकों के लौटने के बाद उनके पुनर्निर्माण में भी मदद कर रहे हैं. मटन गांव के लोगों को उम्मीद है कि अब घाटी में अमन-चैन का दौर लौटेगा, भाईचारे का माहौल बनेगा.

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कश्मीर घाटी से पलायन के करीब तीन दशक बाद, कश्मीरी पंडित परिवार अपनी जन्मभूमि की ओर लौट रहे हैं. अभी वापस आने वाले कश्मीरी पंडितों की संख्या कम है लेकिन ये शुरुआत बहुत बड़ी है. ये उस बदलाव की शुरुआत है जो कश्मीर को एक बार फिर उसके स्वर्णिम दौर में ले जाएगा.

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