देशभक्ति! चुशूल गांव के लोग कर रहे भारतीय सेना की मदद, ब्लैक टॉप तक कंधों पर पहुंचा रहे सामान
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देशभक्ति! चुशूल गांव के लोग कर रहे भारतीय सेना की मदद, ब्लैक टॉप तक कंधों पर पहुंचा रहे सामान

अगले महीने ठंड का मौसम आने वाला है और ऐसे में तापमान - 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा.  इस कारण ग्रामीणों में डर है कि अगर वे भारतीय सेना को अपनी स्थिति मजबूत करने और ठंड से बचने में मदद नहीं करते तो जल्द ही चीन उनके गांव पर कब्जा कर सकता है. 

फाइल फोटो. (सौ. ANI)

लंदन: लद्दाख के चुशूल गांव (chusul village) के निवासी ब्लैक टॉप (black top) के नाम से जानी जाने वाली हिमालय पर्वत की चोटी की मुश्किल यात्रा कर रहे हैं. कठिन यात्रा तय कर ये लोग भारतीय सेना के जवानों को जरूरत के सामान पहुंचा रहे हैं. भारतीय सेना एलएसी (LAC) पर चीनी फौज को लगातार मुंहतोड़ जवाब दे रही है. ऐसा करने के पीछे चुशूल गांव के लोगों का एक ही मकसद है, अपने गांव को चीनी नियंत्रण में आने से बचाना. 

  1. ग्रामीण सेना को पहुंचा रहे सामान
  2. ठंड आने से पहले ही की जा रही तैयारियां
  3. भारत की ओर से किए गए अहम बदलाव
  4.  

सेना को पहुंचा रहे सामान
एक निजी अखबार में छपी रिपोर्ट के अनुसार बताया गया कि करीब 100 लोगों का जत्था भरे हुए डफेल बैग, चावल की बोरियां, भारी ईंधन के डिब्बे और बांस के डिब्बे लेकर ब्लैक टॉप की ओर बढ़ रहा है. इसमें पुरुष, महिलाएं, युवा और अधेड़ उम्र के लोग भी शामिल हैं. ये लोग जिस और बढ़ रहे हैं, वहां भारतीय सेना के जवानों के टेंट लगे हुए हैं. अखबार में छपी रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि ग्रामीण दयाभाव के कारण ऐसा नहीं कर रहे हैं.

ठंड आने से पहले ही की जा रही तैयारियां
अगले महीने ठंड का मौसम आने वाला है और ऐसे में तापमान - 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा.  इस कारण ग्रामीणों में डर है कि अगर वे भारतीय सेना को अपनी स्थिति मजबूत करने और ठंड से बचने में मदद नहीं करते तो जल्द ही चीन उनके गांव पर कब्जा कर सकता है. चुशूल गांव के एक 28 साल के वॉलेंटियर टसेरिंग ने कहा, 'हम भारतीय सेना को जल्द उनकी स्थिति मजबूत करने में मदद करना चाहते हैं. हम भारतीय सेना तक जरूरत की चीजें पहुंचा रहे हैं. दिन में कई दफा हम चढ़ाई कर रहे हैं. हम चाहते हैं कि सेना को ज्यादा परेशानियों का सामना न करना पड़े.'

भारत की ओर से किए गए बदलाव
भारत और चीन के बीच पांगोंग त्सो और कई क्षेत्रों में संघर्ष हो रहा है. ये स्थान लद्दाख के चुशूल क्षेत्र से सब सेक्टर नॉर्थ की ओर हैं. भारत ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) से जून में गालवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद कुछ नियमों में बदलाव किए, जिसके तहत चीन के साथ संघर्ष के दौरान हथियारों का उपयोग नहीं करने के लिए कहा गया. चीन और भारतीय सेना के बीच हुई इस झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हुए थे. पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ लगी भारतीय सीमा के सबसे नजदीक चुशूल गांव में करीब 150 परिवार रहते हैं.  

विदेश मंत्री ने की समकक्ष से मुलाकात
बता दें, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीनी समकक्ष वांग यी से हाल ही में मास्कों में मुलाकात की. इस दौरान सीमा पर तनाव कम करने पर विदेश मंत्री ने जोर दिया. इस बैठक के बाद एक संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई. इसमें कहा गया कि दोनों नेताओं ने भारत-चीन सीमा क्षेत्रों के साथ-साथ भारत-चीन संबंधों से जुड़े घटनाक्रम पर स्पष्ट और रचनात्मक चर्चा की. दोनों मंत्रियों ने सहमति व्यक्त की कि दोनों पक्षों को भारत-चीन संबंधों को विकसित करने वाले मार्गदर्शकों से सलाह लेनी चाहिए, ताकि मतभेद विवाद में तबदील न हो. 

सीमा पर निर्माण कार्य जारी
अगर ग्रामीणों की माने तो सहमति बनती कम ही दिख रही है. बीते हफ्ते, भारतीय सैनिकों ने सीमा पर निर्माण कार्य जारी रखा है. भारतीय सेना की गाड़ियां सीमा पर चौकियों में तैनात जवानों को आपूर्ति और गोला-बारूद ला रही हैं. इसके साथ ही 100 खुदाई करने वालों को भी लाया गया है, ताकि सड़क निर्माण का काम जारी रहे और सीमा से लगे इलाकों को और भी सुरक्षित किया जा सके. 

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जानें, ग्रामीणों का क्या है कहना
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के एक सुरक्षा विशेषज्ञ मनोज जोशी ने कहा, 'ये हर तरह से साफ नजर आ रहा है की दोनों देशों की सेना ठंड के मौसम में रुकने का इंतेजाम कर रही हैं.  वे अनुमान लगा रहे हैं कि कोई राजनयिक परिणाम नहीं निकलेगा.' इस हफ्ते भी चुशूल गांव के लोग बिना रुके ब्लैक टॉप तक सामानों की आपूर्ति कर रहे हैं. इस नई सीमा रेखा पर कोई सड़क नहीं है. टसेरिंग ने बताया कि वे क्षेत्र जहां बीते दिनों झड़प हुई थी, वहां अभी सड़क नहीं बनी है सिर्फ बुनियादी ढांचे हैं. वहीं एक दूसरे ग्रामीण कोंचक टेसपेल ने कहा, 'न जाने कब तक जवानों को ऐसे ही सामान पहुंचाना होगा? वो क्षेत्र जहां भारत-चीन सेना के जवानों के बीच झड़प हुई, वहां रहने के अनुकूल परिस्थियां नहीं हैं. जवान टेंट में रह रहे हैं. ये समझ नहीं आ रहा है कि जब सड़क ही नहीं है तो वे उस क्षेत्र में रहने के लिए निर्माण कैसे करेंगे. (इनपुट - ANI)

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