राजपरिवार में पले बढ़ें माधवराव सिंधिया कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शामिल थें.
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नई दिल्ली : 30 सितम्बर 2001 का दिन पूरे देश में एक खबर आग की तरह फैल गई. अगले दिन अखबारों की सुर्खियों में पता चला कि ग्वालियर राज घराने के उत्तराधिकारी और कांग्रेस के दिग्गज नेता माधवराव सिंधिया की उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुए हेलीकॉप्टर क्रैश में मौत हो गई है.
सिंधिया उस समय की सोनिया गांधी के विदेशी मूल के राजनीति के बीच कानपुर में एक कार्यक्रम में जा रहे थे. राजेश पायलट के बाद माधव राव सिंधिया का इस तरह जाना कांग्रेस के के लिए यह एक बड़ा नुकसान था.
राजपरिवार में पले बढ़ें माधवराव सिंधिया उन कांग्रेस के उन दिग्गज नेताओं में शामिल थें. जिन्होंने पार्टी के अंदर के विवाद को सुलझाने के लिए खुद की राजनितिक महत्वाकांक्षा को हमेशा पीछे रखा. आइए जानते हैं राज परिवार में जन्मे इस शख्सियत से जुड़ी कुछ किस्से- कहानियां.
एमपी के ग्वालियर राजघराने में जन्मे सिंधिया पर राजसी गुमान कभी सर चढ़ कर नहीं बोला. आजादी से पहले देश की सत्ता के शीर्ष पर रहें,ग्वालियर राजघराने में जन्में माधवराव ने हमेशा आम लोगो के सरोकार से जुड़ कर राजनीती की और अपनी एक अलग पहचान भी बनायी.
कांग्रेस की राजनीती में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले सिंधिया, हर कार्यकर्ता को नाम से पहचानते तो थें हीं,उनके सरोकार से खुद को भी जोड़ कर रखते थें. उन कार्यकर्ताओं से जुड़ाव का नतीजा रहा की वो लगातार 9 बार चुनाव जीतने में कामयाब रहें.
90 का दौर था.. सत्ता कांग्रेस के हांथों से फिसल कर भाजपा के पास जा चुकी थी. दस साल तक लगातार मध्य प्रदेश की सत्ता में काबिज रहा कांग्रेस सत्ता से तो बाहर था हीं, इस दौरान कांग्रेस के दिग्गज नेता की आपस में नहीं बन रही थी. मध्य प्रदेश के कांग्रेस में नेतृत्व और पावर के लिए आपस में हीं कांग्रेसी उलझे हुयें थें.
1992 में इसी उलझन और कांग्रेस के शीर्ष नेताओ की आपस में चल रही टकराहट के बीच माधवराव सिंधिया ने एक मंच पर सब को एक साथ इकठ्ठा करने का प्रयास किया. जिसमें उन्हें सफलता भी मिली.
उस समय अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा, श्यामचरण शुक्ल के अलावा कमल नाथ और दिग्विजय सरीखे नेता को एक साथ एक मंच पर ला कर कांग्रेस की 1995 में सत्ता वापसी भी कराई. उनके प्रयास का नतीजा रहे डाबरा सम्मेलन के बाद सत्ता के गलियारें में उन्होंने अपनी पैठ भी बनाई.
उनके कांग्रेस को मध्य प्रदेश की सत्ता मे दुबारा लाने के लिए किये प्रयास के बाद पार्टी नेतृत्व उन्हें मुख्यमंत्री बनाने को भी तैयार था. लेकिन माधवराव सिंधिया ने इस प्रस्ताव को नही स्वीकारा.
बुलेट ट्रेन का था सिंधिया का सपना
नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद लगातार पुरे देश में बुलेट ट्रेन की चर्चा भले हो रही हो. लेकिन भारत में तेज गति से ट्रेन को दौड़ाने की शुरुआत सिंधिया के रेल राज्य मंत्री बनने के बाद हुई.
राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री रहे सिंधिया ने दिल्ली से ग्वालियर तक शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन को चलवाया था. रेल राज्य मंत्री रहने के दौरान वो एकमात्र मंत्री रहे, जिनका मंत्रालय राजीव ने 5 साल तक नहीं बदला.
राजघराने वाले सिंधिया ने ग्वालियर के विकास के लिए रहें हमेशा तत्त्पर
आज माधवराव सिंधिया की वजह से ग्वालियर शहर में राष्ट्रीय स्तर के उत्कृष्ट दिख रहे हैं. ग्वालियर के विकास के लिए सदैव तत्त्पर रहे सिंधिया की बदौलत आज उनके संसदीय क्षेत्र में अंतराष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट संस्थानके के अलावा टूरिज्म का राष्ट्रीय संस्थान आईआईटीएम ,होटल मैनेजमेंट की पढाई के लिए संस्थान आईएचएम और फिजिकल एजुकेशन के उत्कृष्ट संस्थान एलऐनआईपीई की स्थापना हुई. इसके साथ हीं मध्य प्रदेश के चम्बल क्षेत्र में उन्होने इंडस्ट्री के विकास के लिए भी काफी प्रयास किये थे.
आज उसकी वजह से इंडस्ट्री का मालनपुर और बानमौर में विकास हो पाया. फिलवक्त ग्वालियर और आस पास के क्षेत्रों में विकास की वर्तमान गढ़ी कहानी के पीछे सिंधिया के योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है.