शिल्पकार ने बदलते समय के हिसाब से डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल करते हुए आकर्षक साज-सज्जा की सामग्री बनाना शुरू किया.
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इरशाद हिंदुस्तानी/बैतूल: शिल्पकला दिल, दिमाग, शरीर और अनुभव का मेल है. जब ये चीजें एक साथ मिल जाएं, तो कलाकार की मेहनत रंग लाती है. शिल्पकला का धनी लेकिन गुमनाम जिंदगी जी रहा बैतूल का एक युवा अब लोगों के सामने एक मिसाल पेश कर रहा है. यह युवा बांस की किमचियों से मनमोहक बैलगाड़ी, कप, नाईट लैंप और घरेलू साज-सज्जा की सामग्री बना रहा है. इस युवा शिल्पी की बांस की बनाई हुई दो बैलगाड़ी जल्द ही अमेरिका जाने वाली हैं. उनकी इस शिल्पकला को जिले में कोई पूछने वाला भी नही था. लेकिन, अब उनकी यह कला देश-प्रदेश ही नही विदेश में भी उड़ान भरने वाली है.
दरअसल, बांस की शिल्पकला में निपुण बैतूल से 15 किलोमीटर दूर खेड़ी गांव के रहने वाले प्रमोद बारंगे अपनी कला से अब लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर रहे हैं. वे बांस की किमचियों से बारीक से बारीक शिल्पकला की सामग्री बनाते हैं. अपने इस पुश्तैनी काम को वो आज भी लगन से कर रहे हैं. प्रमोद बारंगे ने बताया कि बांस की किमचियों से उनके बड़े-बूढ़े टोकनी, चटाई और झाड़ू बनाया करते थे. उनका यह पुश्तैनी काम है दादा, पापा किया करते थे और अब वो इस काम में लगे हैं. बदलते समय के हिसाब से उन्होंने डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल करते हुए आकर्षक साज-सज्जा की सामग्री बनाना शुरू किया.
उन्होंने बताया कि आज उनकी बनाई हुई बैलगाड़ी, कप, नाईट लैंप देश के बड़े शहरों में खूब पसंद किए जा रहे हैं. बेंग्लुरु, पुणे, कलकत्ता, दिल्ली सहित कई बड़े शहरों से उन्हें आर्डर मिल रहे हैं. दिवाली जैसे त्योहार के सीजन पर उन्हें अच्छे खासे आर्डर मिलने लगे हैं. वहीं, प्रमोद के पिता का कहना है कि बेटा पुश्तैनी काम को आगे बढ़ा रहा है, उन्हें बहुत अच्छा लगता है. जाहिर है कि हुनर कभी किसी मदद का मोहताज नही होता. जिन हाथों में कला के जौहर दिखाने की लकीरें होती हैं. उन हाथों की कारीगरी खुद की तकदीर तो संवारती ही हैं, साथ ही दुनिया में देश का नाम भी रोशन करती हैं.