छत्तीसगढ़ की गोदना कला को विदेशों में मिली पहचान, कलाकारों को भी मिल रहा रोजगार
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छत्तीसगढ़ की गोदना कला को विदेशों में मिली पहचान, कलाकारों को भी मिल रहा रोजगार

छत्तीसगढ़ हस्त शिल्प बोर्ड द्वारा 2011 में गांव की महिलाओं को गोदना की ट्रेनिंग दी गई थी. ट्रेनिंग के बाद महिलाओं ने गोदना शिल्प की साड़ी, सूट, बेडशीट तैयार करती हैं. साथ ही महिलाओं को दीवार पर गोदना पेंटींग के लिए बुलाया भी जाता है. 

फाइल फोटो

सरगुजा: छत्तीसगढ़  प्राचीन कला, सभ्यता, संस्कृति के लिए जाना जाता है. छत्तीसगढ़ राज्य जनजातिय बाहुल राज्य है. यहां की गोदना कला बेहद प्रसिद्ध है. जिसका वर्तमान समय में कोई मुकाबला नहीं है. आजकल लोग जो टैटू कराते हैं वो भी इसी कला का नया अंदाज है.अब यह कला धीरे-धारे लुप्त होती जा रही है. जिसके कारण गोदना शिल्प के कई कलाकारों की रोजगार पर भी काफी असर पड़ रहा था. छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड ने इस कला से जुड़े कलाकारों को अपनी कला के प्रदर्शन के लिए बाजार उपलब्ध कराया है. जिससे गोदना आर्ट की पहचान विदेशों तक हो गई है.साथ ही कलाकारों को भी रोजगार मिला है. कई महिलाए आत्मनिर्भर बनी हैं.
 
बता दें कि छत्तीसगढ़ हस्त शिल्प बोर्ड द्वारा 2011 में गांव की महिलाओं को गोदना की ट्रेनिंग दी गई थी. ट्रेनिंग के बाद महिलाओं ने गोदना शिल्प की साड़ी, सूट, बेडशीट तैयार करती हैं. साथ ही महिलाओं को दीवार पर गोदना पेंटींग के लिए बुलाया भी जाता है. 

महिलाएं गोदना शिल्प से तैयार कपड़ो को प्रदर्शनी में स्टॉल लगाकर इन कपड़ो का विक्रय भी करती हैं. वहीं अब महिलाओ को गोदना कला में तकनीकी सुधार करने के लिए 3 महीने की ट्रेनिंग दी जा रही है. ताकि महिलाए अपने गोदना कला को और भी निखार सकें. जिससे वे देश-विदेश के बाजारों में बेहतर गोदना शिल्प के कपड़े उपलब्ध करा सकें. ऐसा करने से इन कपड़ों की डिमांड भी बढ़ेगी और विदेशों में भी हमारे देश की कला को पहचान मिलेगी. 

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पुराने जमाने में आदिवासी तबके के लोग इसे अपने पूरे शरीर में गोदना गुदवाते थे. लेकिन अब इस कला को कपड़े पर उतारा जाता है. साड़ियों और कपड़े पर बनने वाली गोदना कला पहले काफी सीमित थी. घर के उपयोग में आने वाली चीजों और पहनने के कपड़ों पर गोदना कला का उपयोग होता था. 

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