Naxalite Area Bastar: बस्तर के नक्सलियों का नया स्वरूप सामने आया है, जिसमें कामरेडों द्वारा हमले और आयोजनों की वीडियो कवरेज के लिए अलग से दस्ता तैयार किया गया है. हाल ही में नक्सलियों द्वारा उनके मारे गए साथियों के याद में शहादत सप्ताह मनाने की बात सामने आई है.
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अविनाश प्रसाद/बस्तर: जिले के बीहड़ों में लाल आतंक का झंडा थामे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के दस्ते तीन दशक से आंदोलन के नाम पर हिंसा का पर्याय बने हुए हैं. माओवादियों की कार्यप्रणाली के अलग-अलग किस्से समय-समय पर सामने आते रहते हैं. इन दिनों बस्तर में माओवादी संगठन का आधुनिक स्वरूप सामने आ रहा है. हाल ही में बस्तर और सुकमा के सीमावर्ती बीहड़ों में नक्सलियों द्वारा अपने मारे गए साथियों के याद में शहीदी सप्ताह मनाने के बात की पुष्टि हुई है.
आधुनिक हथियारों की उपलब्धता तो नक्सलियों के पास रही ही है. साथ साथ अन्य तकनीकी क्षेत्र में भी यह संगठन प्रगतिशील होने की दौड़ में शामिल होता दिखाई दे रहा है. वहीं 28 जुलाई से 3 अगस्त तक नक्सलियों ने अपने मारे गए साथियों की याद में कई आयोजन इन इलाकों में किये और इसे शहीदी सप्ताह के रूप में मनाया.
बड़े स्तर पर किया आयोजन
किसी कॉरपोरेट कंपनी या बड़े शासकीय-प्रशासकीय आयोजनों की तर्ज पर नक्सलियों ने इस पूरे आयोजन की कवरेज के लिए 8 से 10 कामरेडों का एक अलग दस्ता तैयार किया था. यह दस्ता हैंडीकैम और मोबाइल के जरिए इन आयोजनों की बाकायदा लगातार अलग-अलग एंगल से वीडियो उतार रहा था. नक्सल ड्रेस पहने कंधे पर बंदूक टांगे यह कैमरामैन अपना बंदूक संभालते और अपने मोबाइल या कैमरे से वीडियो उतारते दिखें.
वीडियो दस्ते की जिम्मेदारी
दरअसल नक्सल संगठन अब इस बात पर विशेष ध्यान देने लगा है कि उसके समस्त आयोजनों के भरपूर वीडियो फुटेज उसके पास उपलब्ध हो और लगभग हर एंगल से प्रत्येक आयोजन को वीडियो के रूप में पूरी तरह से अपने पास संरक्षित कर लिया. इसके लिए लगभग एक दर्जन कामरेडों का दस्ता तैयार किया जाता है. इनमें उन लड़कों को शामिल किया जाता है, जिन्हें मोबाइल या हैंडीकैम से वीडियो उतारना आता हो और साथ ही जिन एंगल और फ्रेमिंग का ज्ञान हो.
आयोजन के पहले होती है बैठक
आयोजन के पहले बाकायदा इस दस्ते का लीडर टीम का सदस्य की एक बैठक लेता है और सदस्यों को समझाता है कि आयोजन के दौरान किसे किस जगह पर तैनात रहना है और किन आवश्यक विषयों की वीडियो लेनी है. रैली और प्रदर्शनों के दौरान यह दस्ता चलित सीसीटीवी की तरह काम करता है और आगे बढ़ती रैली के प्रत्येक कदम की लगभग 10 अलग-अलग एंगल से वीडियो कवरेज की जाती है. आयोजन स्थल पर वीडियो कवरेज के दौरान यह इस बात का भी पूरी तरीके से ध्यान रखते हैं कि जंगलों की आड़ से कहीं कोई खतरा उनकी ओर न पहुंच जाए. वीडियो उतार लिए जाने के बाद सभी मोबाइल और कैमरे की वीडियो फुटेज एक लैपटॉप में एकत्रित कर ली जाती है और इसे बड़े कैडरों को भेज दिया जाता है.
समीक्षा के लिहाज से उपयोगी होते हैं वीडियो
माओवादी संगठन विगत लगभग आठ 10 वर्षों से अपने हमलों, आयोजनों या प्रशिक्षण शिविर की वीडियो कवरेज करता रहा है. लेकिन इन दिनों इसे और सुनियोजित किया गया है. अब इस कार्य के लिए बाकायदा आयोजन के पूर्व एक दस्ता तैयार कर लिया जाता है, जिसमें 8 से 10 सदस्य होते हैं. यह वीडियो फुटेज बाद में समीक्षा के लिहाज से बेहद उपयोगी साबित होते हैं. वीडियो फुटेज में आयोजनों और प्रशिक्षण आदि के प्रत्येक पहलू की विस्तृत जानकारी संग्रहित होती है.
आम लोगों पर प्रभाव जमाने की कोशिश करते हैं माओवादी
जिसके बाद में बारीकी से देखकर अपनी कमियों और गलतियों को देखा समझा जा सकता है और इस आधार पर उसमें सुधार लाया जा सकता है. यह एक प्रकार से अपने आप में एक बड़ा सबूत होता है, जो नक्सल गतिविधियों के विषय में बड़े कैडरों को जीवंत रूप में उपलब्ध हो जाता है. बड़े आक्रमण और आयोजन के वीडियो फुटेज नक्सली मीडिया और सोशल मीडिया के लिए जारी करते हैं. इससे वे सुरक्षाबलों और आम लोगों में अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करते हैं. वे यह दिखाना चाहते हैं कि उनका इलाका कितना स्वतंत्र है, उनके लड़के कितने बहादुर हैं और वह किस तरह से सुरक्षा बलों के खिलाफ जघन्य अपराध करने में हिचकते नहीं हैं.
जानिए कैसे उपलब्ध होता है मोबाइल व कैमरा
कहां से होती है उपलब्धता सामान्यता नक्सल संगठन के आयोजन उन जंगली बीहड़ों में होते हैं, जहां मोबाइल के नेटवर्क नहीं होते. लेकिन इसके बावजूद नक्सली अपने साथ मोबाइल रखते हैं. मोबाइल की उपलब्धता उन्हें ग्रामीणों के जरिए और व्यापारियों ठेकेदारों के जरिए हो जाती है. यह लोग समीप के शहरी क्षेत्र से मोबाइल और कैमरे खरीद कर इन तक पहुंचा देते हैं. मोबाइल और कैमरों की बैटरी सोलर पैनल सिस्टम के जरिए चार्ज कर ली जाती है. डिवीजन स्तर पर नक्सल नेताओं के पास लैपटॉप होते हैं, जिनमें वीडियो और फोटो डाटा संग्रहित कर लिया जाता है.
सोशल मीडिया पर उपलब्ध है दर्जनों वीडियो
नक्सल संगठन द्वारा अपने हमलों, आयोजनों और प्रशिक्षण शिविर के दर्जनों वीडियो सोशल मीडिया में जारी किए गए हैं. इन वीडियो में लाखों व्यू है. कई बार कुछ एक वीडियो दोबारा वायरल हो जाते हैं, जिनसे इनके विषय में फिर से चर्चा शुरू हो जाती है.
3 वर्षों में बैकफुट पर आए नक्सली
बस्तर पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी ने बताया कि पिछले 3 वर्षों में बस्तर के अंदरूनी इलाकों में 2 दर्जन से अधिक सुरक्षाबलों के कैंप खोले गए हैं. नक्सली बैकफुट पर है और यही वजह है कि लंबे समय से वह किसी भी बड़ी घटना को अंजाम देने में सफल नहीं हो पाए हैं. हालांकि वे तकनीकी रूप से सुदृढ़ होने की कोशिश करते रहते हैं. लेकिन हमारी अत्याधुनिक प्रणाली, जवानों के हौसले और पुख्ता इनपुट की वजह से नक्सल संगठन बेहद कमजोर हो चुका है.
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