सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के बावजूद भी देशभर में लगातार बच्चे बोरवेल में गिर रहे हैं. मध्य प्रदेश में 27 फरवरी एक बच्चा जिंदगी की जंग हार गया. इसके बाद अब छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा में एक बच्चा बोरवेल में गिर गया. उसे बचाने के लिए पूरा तंत्र लगा हुआ है. जानिए क्या है सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन और क्या है हादसों से बचने के उपाए.
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श्यामदत्त चतुर्वेदी/रायपुर: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के जांजगीर चांपा जिले (Janjgir Champa District) में बोरवेल (Borewell) में गिरे बच्चे का रेस्क्यू (Rescue Operation) पिछले 40 घंटे से चल रहा है. पूरा तंत्र बच्चे को बचाने में लगा है. मध्य प्रदेश में भी कुछ समय पहले ही छतरपुर, उमरिया के बाद दमोह में एक बच्चा बोरवेल में गिर गया था. हालांकि छत्तरपुर में बच्ची को बचा लिया गया, लेकिन दमोह और उमरिया की घटना में बच्चे जिंदगी की जंग हार गए. इन घटनाओं से सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसे मामले सामने आते क्यों है. क्या इन्हें लेकर कोई कानून या गाइडलाइन हा या नहीं है. अगर है तो क्या है. इन हादसों से जान के नुकसान के अलावा भी क्या नुकसान होता है और इनसे कैसे बचा जा सकता है.
देश में जब बनी थी सुर्खियां
21 जुलाई 2006 को हरियाणा के गुरूग्राम में प्रिंस नाम का बच्चा 60 फीट गहरे बोरवेल में गिर गया था. 23 जुलाई को भारतीय सेना के जवानों ने उसे बाहर निकाला. तब यह घटना पहली बार देशभर में सुर्खिया बनी थी और सबने प्रिंस की सलामती के लिए दुआ मांगी थी. सेना ने तो प्रिंस को नौकरी देने का वादा भी किया था. इसी घटना के बाद जनहित याचिकाओं का सिलसिला शुरू हुआ था.
सुप्रीम कोर्ट दे चुका है फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने नलकूप खनन के दौरान छोटे बच्चों को होने वाली गंभीर दुर्घटनाओं से बचाने के लिए 6 अगस्त 2010 में आदेश पारित किया था. फैसला तत्कालीन चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया, जस्टिस केएस राधाकृष्णन और जस्टिस स्वतंत्र कुमार की बेंच ने रिट पिटीशन पर सुनाया था.उसी समय से फैसला पूरे देश में लागू है, लेकिन इसका सही क्रियान्वन आज तक नहीं हुआ.
क्या हैं सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन
- नलकूप की खुदाई से पहले कलेक्टर/ग्राम पंचायत को लिखित सूचना देनी होगी
- खुदाई करने वाली सरकारी, अर्ध-सरकारी संस्था या ठेकेदार का पंजीयन होना चाहिए
- नलकूप की खुदाई वाले स्थान पर साइन बोर्ड लगाया जाना चाहिए
- खुदाई के दौरान आसपास कंटीले तारों की फेंसिंग की जाना चाहिए
- केसिंग पाइप के चारों तरफ सीमेंट/कॉन्क्रीट का 0.30 मीटर ऊंचा प्लेटफार्म बनाना चाहिए
- बोर के मुहाने को स्टील की प्लेट वेल्ड की जाएगी या नट-बोल्ट से अच्छी तरह कसना होगा
- पम्प रिपेयर के समय नलकूप के मुंह को बंद रखा जाएगा
- नलकूप की खुदाई पूरी होने के बाद खोदे गए गड्ढे और पानी वाले मार्ग को समतल किया जाएगा
- खुदाई अधूरी छोड़ने पर मिट्टी, रेत, बजरी, बोल्डर से पूरी तरह जमीन की सतह तक भरा जाना चाहिए
किसकी है जिम्मेदारी
बोरवेल खुदाई को लेकर अलग-अलग राज्यों का विभागों के साथ ही हाईकोर्टों के कई निर्देश हैं. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नियमों को पालन कराने की जिम्मेदारी कलेक्टर की होगी. वे सुनिश्चित करेंगे कि केंद्रीय या राज्य की एजेंसी द्वारा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी मार्गदर्शिका का सही तरीके से पालन हो.
क्यों खुले पड़े रहते हैं बोरवेल
- लापरवाही और पैसा बचाने के लालच में बोरवेल, ट्यूबवेल को खुला छोड़ दिया जाता है
- कई किसान इस कारण भी खुला छोड़ देते हैं कि अगले साल पानी आने पर उन्हें पानी आने की उम्मीद रहती है
- किसानों को यह लगता है कि खेत में बच्चों का आना-जाना नहीं होता, इसलिए इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते
- वहीं कई संस्थागत बोरवेल ठेकेदारों द्वारा लापरवाही और पैसे बचाने के लिए खुले छोड़ दिए जाते हैं
दमोह की घटना
27 फरवरी 2022 को दमोह के पटेरा ब्लॉक के बरखेड़ा वैस गांव में 3 साल का प्रिंस खेलते-खेलते खेत में बने बोरवेल में गिर गया. करीब 6 घंटे तक रेस्क्यू ऑपरेशन चला. बच्चे को गड्ढे से निकालने के बाद सीधे अस्पताल ले जाया गया है, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. 14 मार्च 2019 को जन्मे प्रिंस का कुछ दिन बाद जन्मदिन आने वाला था.
उमरिया की घटना
24 फरवरी 2022, दिन गुरुवार को 4 साल का बच्चा गौरव बोरवेल में गिर गया. वो 250 फीट गहरे गड्ढे में करीब 60 फीट में फंसा हुआ था. उसे बचाने के लिए तमाम प्रशासनिक संसाधन लगाए गए, लेकिन रेस्क्यू से पहले बच्चे की मौत हो गई. 24 फरवरी को बोरवेल में गिरे बच्चे को 25 फरवरी की सुबह रेस्क्यू किया गया. तुरत उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे ने तो 7 घंटे पहले ही दम तोड़ दिया था.
छतरपुर की घटना
17 दिसंबर 2021, गुरुवार की दोपहर छतरपुर में नौगांव थाना क्षेत्र के दोनी गांव में एक साल की बच्ची के करीब 15 फीट गहरे बोरवेल में गिर गई. मौके पर राहत बचाव कार्य शुरू किया गया. इस काम में पुलिस और जिला प्रशासन के साथ सेना के जवान भी लगे. तब कही जाकर 9 घंटे के रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद बच्ची को बचाया जा सका.
समाधान क्या है?
- स्थानीय प्रशासन को ही सख्ती बरतना होगी
- हर बोरवेल, ट्यूबवेल की नियमित जांच होना चाहिए
- नियमों का पालन न करने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो
- लोगों को स्व-विवेक से समझदारी दिखानी चाहिए
घटनाओं से होता संसाधनों का अपव्यय
बोरवेल या गड्ढे में बच्चे या किसी मवेशी के गिरने से उसको रेस्क्यू करने में तमाम प्रशासनिक संसाधनों का उपयोग होता है. कई मामलों में सेना और SDRF के साथ ही NDRF तक की मदद लेनी पड़ी है. बड़ी-बड़ी मशीनों को काम पर लगाया जाता है. इसमें भारी सरकारी खर्च आता है. सबसे ज्यादा बच्चों के परिजन मानसिक और शारीरिक रूप से भी परेशान होते हैं. तो कई बार उन्हें बच्चा खोने का सदमा भी लग जाता है. ऐसे में नियमों के पालन के अलावा अपनी समझदारी से इन घटनाओं से बचने के लिए प्रयास किए जाना ही बेहतर है.
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