कारगिल युद्ध के दौरान मुश्किल हालात को याद करते हुए बताया कि उस वक्त ना स्नो बूट थे ना गर्म कपड़े. एक बार तो तीन दिन तक लगातार खाना तक नहीं मिल सका और भूखे चौकसी करते रहे. युद्ध के दौरान वह एक दिन भी भरपूर नींद नहीं ले सके थे.
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नीलम पडवार/कोरबाः कारगिल युद्ध की यादें अभी भी लोगों के मन में ताजा हैं. आगामी 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के तौर पर मनाया जाएगा. कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने गजब के जीवट का परिचय देते हुए पाकिस्तानियों के दांत खट्टे कर दिए थे. इस युद्ध में भारत के 527 वीर जवान शहीद हुए थे और 1363 जवान घायल हुए थे. कारगिल युद्ध में छत्तीसगढ़ के वीर सपूतों ने भी हिस्सा लिया था और वीरता का परिचय देते हुए दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए थे.
कारगिल युद्ध में बिलासपुर, रायपुर, मस्तूरी और कोरबा क्षेत्र के कई जांबाज सिपाहियों ने साहस का परिचय दिया और उनकी वीरता के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने उन्हें विशेष सम्मान से पुरस्कृत किया . कोरबा जिले के तोपची प्रेमचंद पांडेय ने भी कारगिल युद्ध में हिस्सा लिया था. प्रेमचंद पांडेय 1995 में सेना में भर्ती हुए थे और अप्रैल 2013 में हवलदार पद से रिटायर हुए. प्रेमचंद बताते हैं कि वह ड्यूटी के दौरान श्रीनगर, दुर्गमुला, बारामुला,उरी, कारगिल और बाद में सियाचिन ग्लेशियर में 4 साल माइनस 40 डिग्री में चौकसी की.
कारगिल युद्ध की सुनाई यादें
प्रेमचंद पांडेय ने कारगिल युद्ध को याद करते हुए कहा कि मैदान ए जंग में मौजूद हर सिपाही जाति, धर्म, ऊंच-नीच, गांव शहर, घर परिवार, नाते रिश्ते सबकुछ भूल जाता है. शरीर में दौड़ते रक्त की हर एक बूंद का सिर्फ एक लक्ष्य होता है और वो है सामने आए दुश्मन को बर्बाद करना. प्रेमचंद पांडेय ने बताया कि वह कारगिल युद्ध के दौरान गनर थे और 102 मीडियम रेजीमेंट के अलावा कुछ दिन अटैच होकर 1889 लाइट रेजीमेंट में भी तैनात रहे. उन्होंने बताया कि उनकी रेजीमेंट में कुल 18 बोफोर्स तोपें थी. जिनमें उनकी बोफोर्स ने ही पूरे युद्ध में 13 हजार गोले दुश्मनों पर दागे.
प्रेमचंद पांडेय ने बताया कि कारगिल युद्ध में बोफोर्स और 120 एमएम मोर्टार ने निर्णायक भूमिका निभाई और दुश्मनों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. युद्ध के दौरान हमारी टीम सुमुक्ता बेस पर थी, जिसमें 195 सिपाही थे. इनमें से युद्ध के दौरान नायक मुकेश कुमार समेत दो जवान शहीद हुए थे और 13 घायल हुए थे.
नायक मुकेश कुमार की शहादत का मंजर आज भी है याद
प्रेमचंद पांडेय ने याद करते हुए बताया कि युद्ध के दौरान दुश्मन 15 हजार फीट ऊपर थे और हम उनसे चार हजार फीट नीचे 11-12 हजार फीट पर थे. लड़ाई के दौरान उनके सामने ही बोफोर्स गन के साथी नायक मुकेश कुमार पर दुश्मन का गोला गिरा था और उनके शरीर के चिथड़े उड़ गए थे. इस हादसे ने उन्हें दहला दिया था.
भारी गोलीबारी के बाद अगले दिन सभी नीचे शिफ्ट हो गए.पांडेय ने बताया कि गुमरी सेक्टर की मस्को घाटी में 530 गन हिल पर मैं और यूनिट के धर्मगुरू सूबेदार कीमोई एलएमजी ड्यूटी पर थे. रात के वक्त पाकिस्तान के कमांडो उस बंकर पर पहुंचे और उनकी संख्या सैंकड़ों में थी जबकि हम सिर्फ दो थे. ऐसे में हम एक स्थान पर छिप गए. जब वह सर्चिंग के बाद लौटकर ऊपर चढ़ने लगे तो तब हमने फायरिंग शुरू की. हमने वहां 600 से ज्यादा राउंड फायर किए और फिर अगली सुबह 30 किलोमीटर नीचे आकर यूनिट को रिपोर्ट की.
कारगिल युद्ध के दौरान मुश्किल हालात को याद करते हुए बताया कि उस वक्त ना स्नो बूट थे ना गर्म कपड़े. एक बार तो तीन दिन तक लगातार खाना तक नहीं मिल सका और भूखे चौकसी करते रहे. युद्ध के दौरान वह एक दिन भी भरपूर नींद नहीं ले सके थे. तीन महीने तक घर में पता भी नहीं था कि मैं कहां गया हूं. उस समय सैटेलाइट फोन से बात करने को मिलता था और सिर्फ एक मिनट बात होती थी. अतीत की यादों में डूबे प्रेमचंद पांडेय ने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान ऐसी घड़ी भी आई जब लगा कि अब बस मां भारती हमें अपनी गोद में सुला ले, आंचल में छिपा ले और इस मिट्टी में मिला ले लेकिन दूसरे ही पल दुश्मन की गोलियों की आवाज आती तो मन में फिर जोश भर जाता. उन्होंने कहा कि मंजर ही ऐसा था लेकिन वह वक्त हार मानने का नहीं था.