विक्रांत भूरिया के सहारे आदिवासी वोट बैंक साधने की कवायद! जानिए कांग्रेस के लिए क्यों अहम है ये वर्ग
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विक्रांत भूरिया के सहारे आदिवासी वोट बैंक साधने की कवायद! जानिए कांग्रेस के लिए क्यों अहम है ये वर्ग

मध्य प्रदेश में करीब सात साल बाद युवा कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर आदिवासी वर्ग से आने वाले विक्रांत भूरिया को अध्यक्ष पद की कमान मिली है. आखिर कौन है विक्रांत भूरिया जिन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस में इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी गयी है.

विक्रांत भूरिया(मध्य प्रदेश युवा कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष)

भोपालः कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत भूरिया मध्य प्रदेश में युवा कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कमान संभालेंगे. यूं तो विक्रांत युवा कांग्रेस का चुनाव जीतकर अध्यक्ष पद की कुर्सी पर पहुंचे हैं. लेकिन राजनीतिक जानकारों की माने तो विक्रांत की नियुक्ति से कांग्रेस ने आदिवासी वोटबैंक पर पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है. विक्रांत कांग्रेस के बड़े नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की पसंद बताए गए थे.  

आदिवासी वर्ग से पहला युवा कांग्रेस अध्यक्ष
मध्य प्रदेश में 2011 से युवा कांग्रेस अध्यक्ष पद की शुरुआत हुई थी. प्रियव्रत सिंह मध्य प्रदेश के पहले युवा कांग्रेस अध्यक्ष बने थे. उसके बाद कुणाल चौधरी को युवा कांग्रेस की कमान मिली. लेकिन अब पार्टी ने आदिवासी वर्ग से आने वाले विक्रांत भूरिया को यह जिम्मेदारी सौंपी है. लिहाजा अब युवाओं को साधने की जिम्मेदारी विक्रांत भूरिया के कंधे पर होगी.

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कौन हैं विक्रांत भूरिया
विक्रांत भूरिया पेशे से डॉक्टर हैं. 2018 से विक्रांत सक्रिय राजनीति में एक्टिव हुए और विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें झाबुआ विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा था. लेकिन उन्हें अपने पहले ही चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. लेकिन विक्रांत के पिता के लंबे राजनीतिक अनुभव और आदिवासी वोट बैंक पर मजबूत पकड़ के चलते अब उन्हें कांग्रेस में बड़ी जिम्मेदारी मिली है.

आदिवासी युवाओं पर है कांग्रेस की नजर
कांग्रेस आदिवासी वर्ग के युवा वोटबैंक पर मजबूत पकड़ बनाना चाहती है. इससे पहले कमलनाथ सरकार में आदिवासी वर्ग से आने वाले उमंग सिंघार, सुरेंद्र सिंह बघेल, ओमकार सिंह मरकाम मंत्री थे. ये सभी सभी आदिवासी वर्ग के युवा नेता माने जाते हैं. अब विक्रांत को बड़ी जिम्मेदारी सौंपकर कांग्रेस आदिवासी युवाओं को रिझाने की पूरी कोशिश में जुटी है.

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मध्य प्रदेश की सियासत में आदिवासी
प्रदेश में आदिवासी वर्ग के लिए 47 विधानसभा सीटें तो 6 लोकसभा सीटें आरक्षित हैं. जबकि सामान्य वर्ग की भी 31 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासी वोट हार-जीत में निर्णायक भूमिका में रहता है. यही वजह है कि मध्यप्रदेश की सियासत में आदिवासी वोट बैंक राजनीतिक दलों के लिए सबसे अहम होता क्योंकि आदिवासी वोट जिस करवट बैठ जाता है सरकार उसी दल की बनती है.

दिग्विजय सिंह की पसंद विक्रांत भूरिया
कांतिलाल भूरिया और दिग्विजय सिंह के करीबी माने जाते हैं. शायद यही वजह रही की उनके बेटे विक्रांत को युवा कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए दिग्विजय सिंह का समर्थन मिला. जबकि राजनीतिक जानकारों की माने तो मालवा निमाड़ में आदिवासी वोटर्स निर्णायक माने जाते हैं. लिहाजा दिग्विजय सिंह ने एक तीर से दो निशाने लगाते हुए एक तरफ आदिवासी वोटर्स को रिझाने की कोशिश की है और इस पद पर अपने समर्थक को कमान सौंपने से क्षेत्र में भी पकड़ बनाने की कोशिश रहेगी.

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आदिवासी वोटबैंक को वापस पाने की कोशिश
दरअसल, जब तक प्रदेश में आदिवासी वर्ग ने कांग्रेस का साथ दिया पार्टी की पकड़ मजबूत रही. लेकिन पिछले कुछ सालों में आदिवासी वोट तेजी से बीजेपी की तरफ मुड़ा है. लिहाजा पार्टी अब आदिवासी वोट बैंक पर फिर से पकड़ मजबूत करना चाहती है. 2018 के विधानसभा चुनाव में मालवा-निमाड़ की आदिवासी सीटों पर कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली जिसके चलते प्रदेश में कांग्रेस 15 साल बाद सत्ता में वापसी करने में सफल हुई थी. लेकिन सिंधिया की बगावत से सरकार गिर गयी. ऐसे में पार्टी अब नए सिरे से पार्टी का संगठन मजबूत करने में जुट गयी है.

2023 के लिए बीजेपी को घेरने की रणनीति पर कांग्रेस
पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने प्रदेश के आदिवासी वोटर्स पर मजबूत पकड़ बनाई है. वर्तमान शिवराज सरकार में प्रेम सिंह पटेल, मीना सिंह, विजय शाह, बिसाहूलाल सिंह, रामकिशोर कावरे जैसे आदिवासी वर्ग से आने वाले नेता मंत्रिमंडल में शामिल हैं, तो संपत्तियां उईके और सुमेर सिंह सोलंकी राज्यसभा में पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं. साथ ही आदिवासी वर्ग से आने वाले लोकसभा सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते केंद्रीय मंत्री हैं. यही वजह है कि अब कांग्रेस भी बड़े पदों पर आदिवासी नेताओं की तैनाती करके बीजेपी को उसी की रणनीति से घेरने की कोशिश में जुटी है. माना जा रहा है कि नेता प्रतिपक्ष या उप नेता प्रतिपक्ष पर भी कमलनाथ किसी आदिवासी विधायक की ही नियुक्ति कर सकते हैं. यानि युवक कांग्रेस के सहारे कांग्रेस अभी से 2023 की रणनीति बनाती नजर आ रही है.

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