पिता के पास 50 साल पहले गिरवी रखी गई जमीन बिना पैसे लिए लौटाई, रजिस्ट्री भी खुद करवाई
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पिता के पास 50 साल पहले गिरवी रखी गई जमीन बिना पैसे लिए लौटाई, रजिस्ट्री भी खुद करवाई

पिता के पास साल 1970 में गिरवी रखी गई जमीन हरिओम ने बिना पैसा लिए वापस की है, बल्कि जमीन की रजिस्ट्री भी अपने खर्च पर ही सरमन के परिवार के नाम कर दी है. 

हरिओम भदौरिया के इस नेक काम की हो रही सराहना

प्रदीप शर्मा/भिंड: आज के समय में जहां जमीन-जायदात के पीछे भाई-भाई एक दूसरे का खून कर देते हैं. वहीं भिंड जिले की मेहगांव विधानसभा के धनौली गांव में एक साहुकार के बेटे ने एक कर्जदार की 50 साल पुरानी जमीन वापस की है. ये वो जमीन है जो साल 1970 में एक कर्जदार ने उसके पिता के पास गिरवी रखी थी. इस जमीन की कीमत लगभग 15 लाख रुपये है.

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दरअसल हरिओम भदौरिया के पिता जनक सिंह बड़े किसान थे और साहूकार भी हुआ करते थे. साल 1970 में पचेरा गांव के सरमन सिंह कुशवाह ने 1300 रुपय के कर्ज के बदले अपनी जमीन उनके पास गिरवी रखी थी. लेकिन गरीबी के चलते वह कर्ज ना चुका सके और जमीन वापस नहीं ले पाए. तो उन्होंने अपनी 3 बीघा जमीन जनक सिंह भदौरिया के नाम कर दी.जमीन का सिलसिला चलता रहा और एक समय आया जब साहूकार और कर्जदार दोनों ने इस दुनिया से अलविदा कह दिया.

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सरमन सिंह की मौत के बाद भी उनके परिवार की माली हालत काफी खराब है. उनके तीन बेटे हैं जो मजदूरी कर अपना और परिवार का पेट पाल रहे हैं. उनकी आर्थिक स्थिति को देखते हुए जनक सिंह के बेटे हरीओम सिंह भदौरिया ने उनकी जमीन लौटाने का फैसला लिया.

बता दें कि हरिओम ने गिरवी रखी जमीन ना सिर्फ बिना पैसा लिए वापस की है, बल्कि जमीन की रजिस्ट्री भी अपने खर्च पर ही सरमन के परिवार के नाम कर दी है. जमीन वापस मिलने पर तिलक सिंह और उनके परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं है.

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जमीन लौटाने वाले हरिओम भदौरिया कहते हैं कि आज हम सभी देश के किसानों की हालत देख रहे हैं. उन्हें सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही है. वे खुद भी एक किसान हैं और अपने भाई बंधुओं का दर्द समझ सकते हैं. हरीयोम का कहना है की तिलक का परिवार बेहद गरीब है, अगर उनके पास जमीन ना रहती तो शायद भविष्य में ये लोग भूखे मर जाते. इसलिए उन्होंने अपने परिवार से सलाह मश्वरा कर जमीन वापस लौटाने का फैसला लिया.

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हरिओम ने ये भी बताया की कई लोग उनके पास इस जमीन की कीमत लगा चुके थे, कभी 12 लाख से शुरू हुई कीमत 20 तक लगायी जा चुकी थी. जिसके बावजूद वे अपने संकल्प पर क़ायम रहे. हरिओम भदौरिया के इस फैसले की प्रशंसा पूरे गांव भर में हो रही है. 

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