रोचक परंपराः दो गांवों के योद्धा एक-दूसरे पर छोड़ते हैं आग के गोले; बचते हैं ढाल से, कई होते हैं घायल
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रोचक परंपराः दो गांवों के योद्धा एक-दूसरे पर छोड़ते हैं आग के गोले; बचते हैं ढाल से, कई होते हैं घायल

दीपावली पर सदियों से चली आ रही एक परंपरा पर इस बार संशय बना हुआ है. इंदौर के गौतमपुरा में होने वाले हिंगोट युद्ध को इस बार प्रशासन ने नहीं कराने की बात कही है. जबकि स्थानीय जनप्रतिधि और ग्रामीण युद्ध कराए जाने की मांग पर अड़े हैं. 

हिंगोट युद्ध(फाइल फोटो)

इंदौरः दीपावली एक ऐसा त्योहार है जो हर किसी के लिए खास होता है. देशभर में अलग-अलग परंपराओं के साथ यह त्योहार मनाया जाता है. दीपावली से जुड़ी ऐसी कई परंपराएं हैं जो सालों से हमारे मध्य प्रदेश की पहचान बनी हुई हैं. उन्ही में से एक है हिंगोट युद्ध. जो इंदौर के पास गौतमपुरा गांव में दीपावली के दूसरे दिन खेला जाता है. हालांकि इस बार इस युद्ध पर संशय बना हुआ है. 

क्या है हिंगोट युद्ध 
इंदौर के पास गौतमपुरा में दीपावली के दूसरे दिन परंपरा के नाम पर होने वाले हिंगोट युद्ध की तैयारियां एक महीने पहले से शुरु हो जाती है. इस पारंपरिक युद्ध में जिस हथियार का प्रयोग होता है वह एक फल है, जिसे हिंगोट कहा जाता है. जिसे दो दलों के योद्धा एक दूसरे पर छोड़ते हैं. 

कैसे बनता है हिंगोट 
हिंगोट एक छोटा सा फल होता है. इसमें बारुद, कंकर-पत्थर भरे जाते हैं. जिसमें आग लगा के हिंगोट को हवा में छोड़ते हैं तो यह लंबी दूरी पर जाकर मार करता है. इसके हमले में लोग घायल भी होते हैं. 

गौतमपुरा और रुणजी गांव के बीच चलते हैं हिंगोट 
युद्ध की परंपरा दो गांवों के बीच सदियों से चली आ रही है. गौतमपुरा और रूणजी के युवा गोवर्धन पूजा के दिन शाम के बाद एक मंदिर में दर्शन करेंगे और इसके बाद होती है हिंगोट युद्ध की शुरुआत. गौतमपुरा गांव के दल को 'तुर्रा' कहा जाता और रुणजी गांव के दल को 'कलंगी' कहते हैं. जहां दोनों दल के योद्धा एक दूसरे पर हिंगोट छोड़ते हैं और सामने से आने वाले हिंगोट को एक ढाल के जरिए खुद को बचाते हैं. हालांकि इस युद्ध में हार-जीत का परिणाम नहीं आता. यह युद्ध केवल परंपरा के लिए किया जाता है. 

आखिर क्यों होता है हिंगोट युद्ध 
हिंगोट युद्ध की परंपरा कब और कैसे शुरु हुई इसके कोई प्रामाणिक दस्तावेज तो नहीं है. हालांकि इस युद्ध के बारे में एक कथा जरुर प्रचलित है. कहा जाता है कि गौतमपुरा क्षेत्र की सीमाओं की रक्षा करने वाले यौद्धा मुगल सेना के उन दुश्मन घुड़सवारों को हिंगोट मारते थे जो गौतमपुरा की तरफ हमला करते थे. उसके बाद से गौतमपुरा और रुणजी गांव के लोगों ने इस युद्ध का अभ्यास इसलिए शुरु किया ताकि वे अपने गांव को दुश्मनों से सुरक्षित रख सके. बाद में यह युद्ध एक परंपरा बन गया. जिसे गौतमपुरा और रुणजी के लोग सदियों से मना रहे हैं. 

कई लोग होते हैं घायल 
हालांकि इस परंपरा में कई लोग घायल भी हो जाते हैं. 2017 में युद्ध देखते वक्त एक लड़का हिंगोट से घायल हो गया. जिसकी अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गयी थी. इस घटना के बाद हाईकोर्ट में हिंगोट युद्ध को लेकर एक जनहित याचिका भी दायर की गयी थी. हालांकि अब तक इस पर किसी तरह का कोई फैसला तो नहीं आया. लेकिन हर साल होने वाले हिंगोट युद्ध में कई लोग घायल होते हैं. लेकिन परंपरा के नाम पर होने वाले इस युद्ध पर अब तक रोक नहीं लगी हैं. 

इस बार युद्ध होने पर संशय 
हिंगोट युद्ध पर गौतमपुरा गांव में मेले का आयोजन भी किया जाता है. जबकि हिंगोट युद्ध देखने भी लोगों की भीड़ जुटती है. लेकिन इस बार कोरोना के चलते हिंगोट युद्ध पर संशय बना हुआ है. पुलिस ने इस बार हिंगोट युद्ध नहीं करने की बात कही है. लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधि और ग्रामीण युद्ध कराए जाने पर अड़े हैं. योद्धाओं ने पूरी तैयारी भी कर ली है. अब युद्ध होता है या नहीं यह तो कल ही पता चलेगा. 

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