बीते अक्टूबर से मनरेगा के बजट करीब-करीब खाली पड़ा हुआ है. राज्य सरकार का कहना है कि केंद्र सरकार ने अपने हिस्से की करीब 1 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा राशि नहीं भेजी है.
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संदीप भम्मरकर/भोपालः मध्य प्रदेश में राज्य और केंद्र की लड़ाई में अटके बजट के चलते गांवों में मनरेगा के तहत होने वाले विकास कार्य ठप हो गए हैं. दरअसल, मध्य प्रदेश में साल भर से मनरेगा का बजट नहीं पहुंचा है, जिससे गांवों में होने वाले विकास कार्य ठप पड़ गए हैं. वहीं पंचायतों और बेरोजगारों के खाते में भी पैसे नहीं पहुंचे हैं, जिससे ग्रामीण जन काफी परेशान चल रहे हैं. पंचायतों और बेरोजगारों के खाते में पैसे न पहुंचने पर राज्य सरकार का कहना है कि अक्टूबर से केंद्र सरकार ने फंड रिलीज नहीं किया है, जिससे अभी तक बेरोजगारों और पंचायतों को पैसे नहीं भेजे जा सके हैं.
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वहीं केंद्र सरकार का कहना है कि राज्य सरकार ने केंद्र को उपयोगिता सर्टिफिकेट नहीं भेजे थे, जिसकी वजह से बजट आवंटित नहीं किया जा सका. ऐसे में अब लोकसभा चुनाव की वजह से जून में ही इसका फैसला हो सकेगा. ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस के बीच चल रही इस जंग में मध्य प्रदेश के मजदूरों की हालत है कि बिगड़ती जा रही है. यही नहीं, करीब साल भर से गांवों में मनरेगा के बजट से चल रहे विकास कार्य ठप पड़े हुए हैं. दरअसल, बीते अक्टूबर से मनरेगा के बजट करीब-करीब खाली पड़ा हुआ है. राज्य सरकार का कहना है कि केंद्र सरकार ने अपने हिस्से की करीब 1 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा राशि नहीं भेजी है. इससे पंचायतों और ग्रामीण बेरोजगारों के बैंक खातों में पैसा नहीं पहुंच पा रहा है.
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यहां ग्रामीण बेरोजगारों के हालात खराब हो रहे हैं. उनके खाते में पैसा नहीं पहुंच रहा है और अब वे रोजगार की तलाश में शहरों की तरफ पलायन करने लगे हैं. मनरेगा एक ऐसा कानून है, जिसमें ग्रामीण बेरोजगारों को रोजगार की गारंटी दी जाती है. साल में कम से कम सौ दिन का रोजगार दिया जाता है. रोजाना कम से कम 172 रुपए की राशि उनके खाते में जमा की जाती है. बदले में ग्राम पंचायत किसी विकास कार्य में उन बेरोजगारों का उपयोग करती है. भोपाल और रायसेन जिले की सीमा पर मौजूद एक ग्राम पंचायत अमझरा के पिपलिया हटीला गांव के मज़दूरों के हालात भी ऐसे ही है. इस गांव तक पहुंचने के लिए केवल खेत की मेढ़ ही एक रास्ता है, लेकिन डेढ़ साल पहले सरपंच ने यहां एक मुरम की सड़क बनाने की योजना बनाई और इस सड़क के लिए आसपास के गांव के मनरेगा मज़दूरों को लगाया.
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पिछली बरसात के बाद अक्टूबर में थोड़ा काम शुरू ही हुआ था कि मनरेगा के बजट ही खत्म हो गया. नया पैसा आना बंद हो गया. तब तक सरपंच ने अपनी जेब से पैसा खर्च कर दिया था. महज 14 लाख रुपए की लागत वाली ये सड़क छह महीने में बनकर तैयार हो जाना थी, लेकिन आने वाले एक साल में भी इसके भविष्य का पता नहीं है. जून में बरसात का मौसम शुरू होने पर सड़क निर्माण कार्य नहीं हो सकता है. इस दौरान लोकसभा चुनाव की आचार संहिता की वजह से मनरेगा का बजट मिलने की उम्मीद नहीं है. यानी केंद्र और राज्य की बेतकल्लुफी से गांव वालों को इस साल ना तो सड़क नसीब होगी और ना ही मजदूरी.