आजादी के दशकों बाद भी नहीं मिल रहीं सुविधाएं, दवा-पानी के लिए भटक रही बैगा जनजाति  
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आजादी के दशकों बाद भी नहीं मिल रहीं सुविधाएं, दवा-पानी के लिए भटक रही बैगा जनजाति  

MP NEWS: देश की विशेष संरक्षित बैगा जनजाति आजादी के दशकों बाद भी मूलभूत सुविधाओं के लिए संषर्ष कर रही है. बुधवार को जरूरी मांगों के लिए कई महिलाएं, पुरुष और बच्चे घर से निकले और सड़क, आवास और पानी की मांग को लेकर करीब 70 किलोमीटर का सफर तय कर धरना देने पहुंचे.  

 

आजादी के दशकों बाद भी नहीं मिल रहीं सुविधाएं, दवा-पानी के लिए भटक रही बैगा जनजाति  

Madhya Pradesh News/विमलेश मिश्रा: देश की विशेष संरक्षित बैगा जनजाति आजादी के दशकों बाद भी मूलभूत सुविधाओं के लिए संषर्ष कर रही है. संरक्षण के नाम पर या तो राजनीति हो रही है या दिखावा. मंडला में बुधवार को जिला मुख्यालय के योजना भवन और कान्हा टाइगर रिजर्व के दफ्तर पर बैगा समाज के लोगों ने धरना दिया. कई महिलाएं, पुरुष और बच्चे सड़क, आवास और पानी की मांग को लेकर करीब 70 किलोमीटर का सफर तय कर जिला मुख्यालय पहुंचे. 

धरना कर रहे लोगों का कहना है कि हमें कोई सुविधाएं नहीं मिलीं. हमारे गांव में न सड़क है न स्कूल और न ही पानी. बता दें कि कान्हा नेशनल पार्क के कोर जंगल के ग्राम जामी और मानेगांव में रहने वाले इन बैगाओं को 2014 में जंगल से विस्थापित कर बाहर किया गया था. तब कहा गया था कि रोड, पानी और स्वास्थ्य सुविधाएं भी देंगे. देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने इस जनजाति को गोद लिया था. वे अविभाजित सरगुजा दौरे पर आए थे तब उन्होंने विलुप्त होती विशेष संरक्षित जनजाति पंडो व पहाड़ी कोरवाओं को गोद लिया था.

'हमारे बच्चों का भविष्य बिगाड़ दिया'
बैगा लोगों को कहना है कि हमारा और हमारे बच्चों का भविष्य बिगाड़ दिया. हम जंगल में रहते थे तो न हम बीमार होते थे, न खाने पीने की कोई समस्या थी, लेकिन अब हम परेशान हैं. धरना दे रही बसंती कहती हैं कि हम जंगल में रहते थे तो कोई रोग नहीं होता था. कंदमूल खाकर सुखी थे. न डॉक्टर की जरूरत होती थी न दवाओं की, लेकिन अब कोई बीमार हो जाये तो खाट पर लादकर ले जाना पड़ता है.  

'तमाम सुविधाएं देने के वादे किए'
जंगल में सुखी रहने वाली इस जनजाति को जंगल बचाने के नाम पर जंगल से निकाल दिया गया. तमाम सुविधाओं का वादा किया, लेकिन कुछ नहीं मिला. लोगों का कहना है कि हमारा जीवन नरकीय हो गया. हमारे बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे. हमारे लिए सड़कें नहीं है. बड़ी समस्या ये है कि रोजगार भी नहीं है. मातु बैगा कहते हैं कि हमें कान्हा के जंगल से विस्थापित करने के समय पर कहा गया था कि 10 लाख रुपये देंगे, लेकिन हमें अब तक पूरा पैसा नहीं मिला. किसी को 5 लाख दिया तो किसी को 6 लाख रुपये ही मिले. 

'अब अपने हक के लिए निकले बैगा जनजाति के लोग'
अब जब जंगल से निकलकर बैगा जनजाति के लोग अपने हक के लिए निकले हैं तो जिला प्रशासन सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए सर्वे का हवाला दे रहे हैं. दूसरी ओर कान्हा टाइगर रिजर्व के अधिकारियों का कहना है कि इनकी समस्या का समाधान किया जाएगा, लेकिन पहले इनकी ग्राम पंचायत इनकी सुविधाओं के लिहाज से प्रस्ताव पेश करें.

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