परंपरा के नाम पर खेला जा रहा 'मौत का खेल', लोगों के ऊपर से निकलती हैं गायें
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परंपरा के नाम पर खेला जा रहा 'मौत का खेल', लोगों के ऊपर से निकलती हैं गायें

बड़नगर तहसील के ग्राम भिडादावद मे दीपावली के 1 दिन बाद पड़वा के दिन गोवर्धन पूजा पर एक अनूठी परंपरा का निर्वहन कई वर्षों से होता आ रहा है. 

गाय के नीचे लोग

राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: बड़नगर तहसील के ग्राम भिडादावद मे दीपावली के 1 दिन बाद पड़वा के दिन गोवर्धन पूजा पर एक अनूठी परंपरा का निर्वहन कई वर्षों से होता आ रहा है. प्रदेश की उन्नति और मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु प्रत्येक वर्ष इस परंपरा में भाग लेते हैं. यह परंपरा कई वर्षों पुराने समय से चली आ रही है. इस परंपरा में श्रद्धालु 5 दिन का उपवास रखकर मंदिर में भजन-कीर्तन करते हैं और आखरी दिन जमीन पर लौटते हैं व ऊपर से एक साथ सैकड़ों दौड़ती गायों को श्रद्धालुओं के ऊपर से निकाला जाता है.

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दरअसल उज्जैन से करीब 60 से 70 किलामीटर की दूरी पर स्थित बडनगर तहसील के ग्राम भिडावद मे आज फिर अनूठी आस्था देखने को मिली. गांव में सुबह गाय का पूजन किया गया. पूजन के बाद लोग जमीन पर लेटे और उनके ऊपर से गायें निकाली गई. 

मान्यताओं पर आधारित अंधविश्वास
मान्यता है कि ऐसा करने से मन्नत पूरी होती है और जिन लोगो की मन्नत पूरी हो जाती है. वे ही ऐसा करते है. परम्परा के पीछे लोगों का मानना है कि गाय में 33 करोड़ देवी देवताओ का वास रहता हैं और गाय के पैरो के नीचे आने से देवताओ का आशीर्वाद मिलता है. दरअसल देखा जाए तो आस्था के नाम पर यहां लोगों की जान के साथ खिलवाड़ भी किया जाता हैं. हमारे देश भारत ने आज वैज्ञानिक तरक्की के जरिये भले ही दुनिया भर में अपनी मजबूत पहचान बना ली हो लेकिन 21वीं सदी में जी रहे भारत देश में आज भी परंपरा और आस्था का बोलबाला है. आस्था और परंपरा की हदे पार हो जाये तो आस्था और अंध विश्वास में फर्क करना मुश्किल हो जाता है.

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अन्नकूट के नाम से मनाया पर्व
मान्यता है कि जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी ऊंगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहें. सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी, तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा.

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