MP news-आज हम आपको चित्रकूट के अनोखे गधे मेले के बारे में बताएंगे, जो दीपावली के मौके पर हर साल सजता है. दीपावली के दूसरे दिन लगने वाला यह मेला अपने आप में बड़ा खास है. मंदाकिनी नदी के किनारे लगा यह ऐतिहासिक गधा मेला, मुगल शासक औरंगजेब के समय से चला आ रहा है.
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Madhya pradesh news-सतना जिले के चित्रकूट में मन्दाकिनी नदी किनारे एक एतिहासिक मेला लगता है. इस मेले में गधों की बोली लगती है, हर साल यहां सैंकड़ो की संख्या में व्यापारी पहुंचते हैं. इस मेले में की खास बात ये है यहां फिल्मी सितारों के नाम वाले गधों और खच्चरों की बोली लगती है. इस बार के मेले में सलमान और शाहरुख को पीछे छोड़ 'लॉरेंस' ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया.
हर साल लगने वाला यह मेला सिर्फ गधों की खरीद-फरोख्त के लिए सजता है, जहां व्यापारी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दूसरों राज्यों से पहुंचते हैं. इस मेले हजारों गधे और खच्चर बेचे-खरीदे जाते हैं.
चर्चित है मेला
चित्रकूट का यह गधा मेला हर साल अपनी खासियत और विविधता के लिए चर्चित रहता है. यह केवल गधों का बाजार नहीं, बल्कि यहां की परंपरा और संस्कृति का भी जीवंत उदाहरण है. गधों का यह अनोखा मेला मुगल काल से चला आ रहा है, मुगल शासक औरंगजेब के जमाने से इसी जगह पर गधों का यह मेला लगातार चला आ रहा है. गधों के व्यापारी हर साल इस मेले में पहुंचते हैं, व्यापारी यहां गधों को खरीदने और बेचने के अलावा अदला बदली भी करते हैं.
ऐसा है इतिहास
औरंगजेब के समय से चले आ रहे गधों के इस मेले की यह परंपरा काफी पुरानी है. इस मेले की शुरुआत मुगल शासक औरंगजेब द्वारा की गई थी. औरंगजेब ने चित्रकूट के इसी मेले से अपनी सेना के बेड़े में गधों और खच्चरों को शामिल किया था. इसलिए इस मेले का ऐतिहासिक महत्व है. इस मेले में अच्छी नस्ल के गधों और खच्चरों की कीमत हजारों से लाखों में होती है.
लॉरेंस पड़ा भारी
हर बार कोई ना कोई खास बात इस मेले में रहती है. इस बार मेले में 'लॉरेंस विश्नोई' नाम के गधे ने सबका ध्यान खींच लिया. यह गधा 1 लाख 25 हजार रुपये में बिका, जो इस मेले का अब तक का सबसे महंगा गधा है. पिछले साल 'सलमान खान' नामक गधा 80 हजार रुपये में बिका था, लेकिन इस बार लॉरेंस ने एक नया रिकॉर्ड कायम कर दिया है.
संस्कृति का हिस्सा
यहाँ हर साल व्यापारियों और खरीदारों का तांता लगा रहता है, जो इस मेले की रौनक बढ़ाता है. मेले में गधों की खरीदारी के साथ-साथ स्थानीय सांस्कृति का भी आनंद लिया जाता है. यह मेला चित्रकूट की जीवंतता को दर्शाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मेला उनकी संस्कृति का हिस्सा है.