विदिशा में भी है राधा रानी का ऐतिहासिक मंदिर, औरंगजेब के डर से बनने वाले इस मंदिर का बड़ा ही रोचक है इतिहास!
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विदिशा में भी है राधा रानी का ऐतिहासिक मंदिर, औरंगजेब के डर से बनने वाले इस मंदिर का बड़ा ही रोचक है इतिहास!

विदिशा के नंदवाना स्थित श्री राधा अष्टमी का मंदिर है और आज पूरे देश में राधा अष्टमी का पर्व जोर-शोर से मनाया जा रहा है. 

विदिशा में भी है राधा रानी का ऐतिहासिक मंदिर, औरंगजेब के डर से बनने वाले इस मंदिर का बड़ा ही रोचक है इतिहास!

दिपेश शाह/विदिशा: विदिशा के नंदवाना स्थित श्री राधा अष्टमी का मंदिर है और आज पूरे देश में राधा अष्टमी का पर्व जोर-शोर से मनाया जा रहा है. विदिशा का ऐतिहासिक मंदिर की खासियत है कि मंदिर के पट वर्ष में सिर्फ एक बार ही खुलते हैं. बाकी वर्षभर मंदिर की गुप्त पुजारी मंदिर के अंदर ही पूजा करते हैं.

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गौरतलब है कि बरसाना से पुजारी संप्रदाय के लोग कई वर्षों पहले राधा जी को एक टोकरी में लेकर बरसाना मथुरा से चले थे. क्योंकि उस समय मुगलों के आक्रमण के कारण पूजा और मंदिर पर विपदा आन खड़ी थी. तभी से पुजारी संप्रदाय के लोग पैदल ही एक टोकरी में राधा जी की मूर्ति रख कर चुपचाप रातों-रात वहां से निकले थे और यहां विदिशा आकर नंदवाना में एक छोटी सी कुटिया में श्री राधा जी की पूजा अर्चना शुरू की गई. आज राधा अष्टमी के पर्व पर इस मंदिर के पट सुबह 4:00 बजे खुल जाते हैं.

वृंदावन से लाई गई है प्राचीन प्रतिमा
दरअसल जो प्रतिमाएं विदिशा के वृंदावन गली स्थित मंदिर में विराजमान हैं. वह प्रतिमाएं 1669 से पहले वृंदावन में जमुना जी के किनारे राधा रंगीराय नाम से स्थापित मंदिर में विराजमान थी, यानि जो प्रतिमा विदिशा में है वह पहले जमुना जी के किनारे थी. तब 9 अप्रैल 1669 को औरंगजेब बादशाह ने एक फरमान जारी किया था. जिसमें पूजा स्थल और सारे मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश जारी हुआ था. उस क्रम में इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया था. मंदिर पर करीब 6 से 7 हमले किए गए. तब पुजारी संप्रदाय के पूर्वज लोग प्रतिमाओं को बक्से में चोरी छिपे लेकर निकल पड़े थे

18 से 20 साल दिशाहीन चले
वहां से 1698 से 1707 के बीच काफी अंतराल वहां से चलने में हो गए. बताते है कि पुजारी संप्रदाय के लोग कम से कम 18 से 20 साल दिशाहीन चले थे. कई जंगलों से दुर्गम पत्थरों को पार किया. कोई दिशा नहीं थी कि कहां जाना है. प्रतिमाओं को ले लेकर बहुत कष्ट सहन करना पड़े. तब विदिशा में आकर उनको एक दिशा प्रतीत हुई. फिर यहां आकर विदिशा में वियावान जंगल में जो किले के बाहर था. बाहर कोई बस्ती भी नहीं थी. यहां मूर्ति की स्थापना की गई. कोई और आक्रमक न हो इसी डर की आशंका को लेकर पुजारी संप्रदाय के लोगों ने भक्तों के दर्शन पर रोक लगा दी. फिर परिवार के लोग ही पूजा करने लगे. इसी क्रम में राधाअष्टमी के दिन ही मंदिर खुलता बाकि साल भर बंद रहता. ये परंपरा लगभग 150 वर्षों से चली आ रही है. पुजारियों की 13वीं पीढ़ी यहां सेवा में संलग्न है. 

राधा जी की सहेलियां भी विराजमान 
नंदवाना स्थित वृदांवन गली में राधा रानी मंदिर में राधाजी की 9 इंच की अष्टधातु की प्राचीन प्रतिमा के अलावा राधावल्लभ जी सहित ललिता, विशाखा, चित्रा, चंपक, लता आदि सहेलियां भी विराजमान हैं.

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खुलेंगे मंदिर के पट, होंगे आयोजन
यहां दोपहर 12 बजे से जन्मोत्सव, तिलक दर्शन होता है. शाम 5 बजे उत्थापन दर्शन होंगे. शाम 6 बजे भोग दर्शन और मटकी छेदन कार्यक्रम होगा. 6.30 बजे से संध्या आरती तथा फिर रात 10 बजे तक लगातार पालना दर्शन, बधाईयां, हवेली संगीत, समाज गायन और भजन संध्या का दौर चलेगा.  15 सितंबर को सुबह 5 बजे मंगल आरती, शाम 5 बजे उत्थापन दर्शन, शाम 5.30 बजे भोग दर्शन, शाम 6 बजे संध्या आरती, 6.30 बजे पालना दर्शन के बाद रात को 10 बजे शयन आरती दर्शन के बाद फिर एक साल के लिए पट बंद हो जाएंगे. 

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