राजेश नाम का यह मजबूर बाप रोजाना घर से निकलता है तो साथ में उसका दुधमुंहा बेटा भी रहता है और उसी को साथ लेकर राजेश शहर भर में घूमकर सवारियां तलाशता है और सवारी मिलने पर एक हाथ से ही रिक्शा चलाकर उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचाने की जतन में जुट जाता है.
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प्रमोद शर्मा/जबलपुर: आज के दौर में परिवार पालना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. उनके लिए यह जिम्मेदारी और बढ़ जाती है जो दो जून की रोटी के लिए रोजाना ही जी तोड़ मेहनत करते हैं. आज हम एक ऐसे ही लाचार और मजबूर पिता से आपको बताने जा रहे हैं, जो कंधे पर एक हाथ से अपने मासूम बेटे को संभालता है तो दूसरे हाथ से साइकिल रिक्शे की हैंडल थामता है.
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दरअसल राजेश नाम का यह मजबूर बाप रोजाना घर से निकलता है तो साथ में उसका दुधमुंहा बेटा भी रहता है और उसी को साथ लेकर राजेश शहर भर में घूमकर सवारियां तलाशता है और सवारी मिलने पर एक हाथ से ही रिक्शा चलाकर उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचाने की जतन में जुट जाता है.
सरकारी योजना का नहीं मिल रहा लाभ
पेट और परिवार पालने की मजबूरी इंसान से क्या-क्या नहीं कराती, मजबूर राजेश इस बात का जीता जागता उदाहरण है. राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक की तमाम योजनाएं ऐसे लाचार लोगों के पास आकर दम तोड़ देती हैं, सरकारी दावों के उलट राजेश की यह मजबूरी यह बताने के लिए काफी है कि सरकारी योजनाओं का फायदा भले ही किसी को मिले लेकिन जरूरतमंदों को अब भी नसीब नहीं हो पा रही हैं.
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लोग करते है तारीफ
गरीबी लाचारी और मजबूरी की ऐसी तस्वीरें विकास के दावों को कटघरे में खड़ा कर रही हैं. बिन कपड़ों के अपने मासूम बेटे को कंधे पर लेकर और एक हाथ से साइकिल रिक्शा चलाते राजेश पर जिस की भी नजर पड़ती है, वह उसकी मेहनत और ज़िंदादिली की दाद देने से खुद को रोक नहीं पाता साथ ही ऐसे लोग सरकार से भी सवाल करते हैं कि तरक्की के असली मायने बड़ी-बड़ी इमारतें तानना नहीं बल्कि ऐसे लोगों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ना भी है.