MP उपचुनाव: खंडवा में अब सचिन वर्सेस सचिन की लड़ाई! जानिए क्या है बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक?
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MP उपचुनाव: खंडवा में अब सचिन वर्सेस सचिन की लड़ाई! जानिए क्या है बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक?

सचिन बिरला का कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होना बीजेपी का खंडवा लोकसभा सीट पर एक बड़ा दांव माना जा रहा है. 

उपचुनाव में सचिन वर्सेस सचिन

भोपालः मध्य प्रदेश में हो रहे उपचुनाव दिलचस्प होते जा रहे हैं. कल बीजेपी ने कांग्रेस को बड़ा झटका देते हुए बड़वाह से कांग्रेस विधायक सचिन बिरला को अपने पक्ष में शामिल कर लिया. सचिन बिरला ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सनावद में आयोजित सभा में पहुंचकर बीजेपी की सदस्यता ली. दरअसल, सचिन बिरला का कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का बड़ा दांव माना जा रहा है, क्योंकि सचिन बिरला के जरिए बीजेपी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं. 

गुर्जर वोट पर नजर 
दरअसल, जिस खंडवा लोकसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है. वहां की तीन विधानसभा सीटें मांधाता, बड़वाह और पंधाना गुर्जर बहुल है. जिसमें से पंधाना सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित है. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में गुर्जर बहुल मांधाता और बड़वाह विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. मांधाता में नारायण पटेल ने जीत हासिल की थी तो बड़वाह में सचिन बिरला जीते थे. खास बात यह है कि सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद नारायण पटेल बीजेपी में शामिल हो गए और बाद में उपचुनाव जीतकर बीजेपी से विधायक बने थे. जबकि अब दूसरे गुर्जर विधायक सचिन बिरला भी बीजेपी में शामिल हो गए हैं. यानि एक तरह से कांग्रेस ने दोनों गुर्जर बहुल सीटों पर अपना दबदबा बनाने की कोशिश की है. 

सचिन पायलट की सभा से पहले प्रेशर पॉलिटिक्स 
सचिन बिरला का कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होना प्रेशर पॉलिटिक्स भी माना जा रहा है. दरअसल, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि गुर्जर समाज से आने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता सचिन पायलट 27 अक्टूबर को खंडवा लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी राजनारायण सिंह पुरनी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने वाले हैं. पायलट खंडवा लोकसभा क्षेत्र में जनसभा के साथ रोड शो भी करेंगे. सचिन पायलट मांधाता के मूंदी, पंधाना के छैगांवमाखन और बड़वाह विधानसभा के सनावद में सभा करेंगे. तीनों क्षेत्र गुर्जर-राजपूत समाज के गढ़ है. बड़वाह, मांधाता जैसी सामान्य सीट पर गुर्जर विधायक थे, जिन्होंने राजपूत प्रतिद्वंद्वी को हराया था. लेकिन मांधाता के विधायक पहले ही बीजेपी में शामिल हो गए तो सचिन पायलट के दौरे से पहले ही बीजेपी ने गुर्जर समाज से आने वाले सचिन बिरला को भी अपने पक्ष में शामिल करके एक बड़ा चुनावी संदेश देने की कोशिश की है. सचिन बिरला को बीजेपी में लाने में अहम भूमिका भी गुर्जर विधायक नारायण पटेल ने निभाई है. यानि खंडवा लोकसभा सीट के तहत आने वाली दोनों सीटों पर बीजेपी सचिन पायलट की सभा से पहले अपना दबदबा बनाने की कोशिश में हैं. 

2015 में भी सचिन पायलट ने कांग्रेस को जिताने में निभाई थी अहम भूमिका 
दरअसल, यह कोई पहला मौका नहीं है जब सचिन पायलट कांग्रेस के लिए प्रचार करने के लिए पहली बार मध्य प्रदेश आ रहे हो, इससे पहले जब प्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए थे. तब भी सचिन पायलट प्रचार के लिए मध्य प्रदेश पहुंचे थे. यह भी एक बड़ा संयोग है कि नवंबर 2015 में, कांग्रेस ने मालवा-निमाड़ में रतलाम लोकसभा चुनाव जीता था, जहां पायलट ने बड़े पैमाने पर कांग्रेस के लिए प्रचार किया था. रतलाम-झाबूआ लोकसभा सीट पर भी गुर्जर वोटर अहम थे, जिनकों साधने में सचिन पायलट ने अहम भूमिका निभाई थी. 2015 में कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया ने जीत के बाद सचिन पायलट को एक धन्यवाद नोट भी भेजा था. इस बार भी चुनाव खंडवा सीट पर हो रहा है जहां कांग्रेस 2015 की कहानी दौहारने की कोशिश में लगी है. शायद यही वजह है कि कांग्रेस ने सचिन पायलट को प्रचार के लिए उतारा है. लेकिन उससे पहले ही बीजेपी ने सचिन बिरला को पार्टी में शामिल कराकर कांग्रेस का गणित बिगाड़ने की कोशिश की है. 

ढाई लाख गुर्जर वोटर पर बीजेपी की नजर
खंडवा लोकसभा सीट पर तकरीबन 20 लाख वोटर्स हैं, जिनमें से ढाई लाख यानि (13 प्रतिशत) से ज्यादा गुर्जर वोटर है. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ माने जाने वाले इस वोट बैंक में कांग्रेस ने सेंधमारी की थी. जिससे बड़वाह और मांधाता सीट पर कांग्रेस को जीत मिली थी. ऐसे में कांग्रेस ने जहां सचिन पायलट की तीन चुनावी सभाओ के जरिए ढाई लाख गुर्जर वोट साधने की कोशिश की तो बीजेपी ने कांग्रेस के विधायकों को अपने पाले में करके गुर्जर वोटरों पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है. कुल मिलाकर देखा जाए तो यह पूरा सियासी खेल गुर्जर वोटर्स से जोड़कर देखा जा रहा है. 

सामान्य खंडवा सीट पर कांग्रेस ने पहले से ही राजपूत समाज से आने वाले राजनारायण सिंह पुरनी को कैंडिडेट बना था. वहीं वहीं, बीजेपी ओबीसी कार्ड खेलते हुए ज्ञानेश्वर पाटिल को मैदान में उतारा, लेकिन कांग्रेस ने बीजेपी की काट के लिए ओबीसी वर्ग में आने वाले गुर्जर समाज को साधने के लिए सचिन पायलट का चुनावी दौरा करवाया जा रहा है, जो बीजेपी पर भारी पड़ सकता था. लेकिन पायलट के दौरे से पहले सचिन बिरला को कांग्रेस में लाकर बीजेपी ने काउंटर अटैक कर दिया. जिससे अब गुर्जर वोटरों की जंग भी दिलचस्प हो सकती है. 

बड़वाह और मांधाता में गुर्जर समाज का बोलबाला 
खंडवा लोकसभा सीट के तहत आने वाली बड़वाह और मांधाता सीट पर गुर्जर समाज का बोलबाला है. दोनों विधानसभा सीटें सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है, क्योंकि गुर्जरों के बराबर राजपूत वोटर्स है. इसके बाद भी पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के नारायण पटेल (गुर्जर) ने बीजेपी के नरेंद्रसिंह तोमर (राजपूत) को हराया था. इसी तरह बड़वाह में कांग्रेस कैंडिडेट सचिन बिरला (गुर्जर) ने बीजेपी के तीन बार से विधायक हितेंद्र सिंह सोलंकी (राजपूत) को हराया. वहीं जब 2019 में मांधाता उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस के नारायण पटेल (गुर्जर) बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़े और कांग्रेस प्रत्याशी उत्तमपालसिंह (राजपूत) को हराया. खास बात यह है कि बिरला को बीजेपी में लाने में नारायण पटेल की अहम भूमिका रही है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इन दोनों सीटों पर गुर्जर वर्ग के वोटर अपनी जाति से आने वाले प्रत्याशियों पर ही दांव लगाते हैं. 

सचिन बिरला से बीजेपी को कैसे मिलेगा फायदा
सचिन बिरला गुर्जर समाज से आते हैं. बड़वाह विधानसभा में बड़ी संख्या में गुर्जर वोटर हैं. ऐसे में उनके बीजेपी को सीधा फायदा होगा. 2018 में सचिन बिरला 30,500 हजार वोटरों से चुनाव जीतकर विधायक बने थे. उन्होंने भाजपा के ही तीन बार के विधायक हितेंद्रसिंह सोलंकी को हराया था. 2013 में कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने से सचिन बिरला ने निर्दलीय चुनाव लड़े थे और उसके बाद से ही वह सुर्खियों में आए थे.

राहुल गांधी और अरुण यादव के करीबी थे सचिन बिरला 
सचिन बिरला कांग्रेस में राहुल गांधी और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव के करीबी है. 2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनने के बाद राहुल गांधी भोपाल आए थे तो उन्होंने सचिन बिरला से मुलाकात की थी. जबकि सचिन भी राहुल से तीन बार दिल्ली जाकर मिल चुके हैं. बताया जाता है कि सचिन बिरला को राहुल गांधी के करीब लाने में अरुण यादव की अहम भूमिका थी. 

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