मध्य प्रदेश में आदिवासियों को लेकर बीजेपी और कांग्रेस फिर आमने सामने हैं.
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भोपालः मध्य प्रदेश में एक बार फिर से आदिवासी केंद्र बिंदु में है. क्योंकि प्रदेश में इस समय आदिवासियों को लेकर जमकर सियासत हो रही है. सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी पार्टी कांग्रेस आदिवासियों को लेकर एक दूसरे पर हमलावर है. कांग्रेस प्रदेश में आदिवासी मेल-मिलाप अभियान चलाने जा रही है. जिस पर बीजेपी और कांग्रेस में जमकर बयानबाजी हो रही है.
कांग्रेस चलाएगी आदिवासी मेल-मिलाप अभियान
दरअसल, कांग्रेस मध्य प्रदेश में आदिवासी मेल मिलाप अभियान चलाने जा रही है. कांग्रेस आदिवासियों से मेल मिलाप का अभियान घर-घर जाकर आदिवासियों को एनसीआरबी के आदिवासी अपराध के आंकड़े और बताएगी और उनसे संवाद करेगी. इसके लिए कांग्रेस की टीम तैयार होगी और आदिवासियों से मेल मिलाप करेगी जिसमें विधायक भी शामिल होंगे.
कांग्रेस ने बीजेपी पर साधा निशाना
कांग्रेस के अभियान को लेकर विधायक कुणाल चौधरी ने कहा कि ''कांग्रेस के राज में ही आदिवासी सुरक्षित है, ये आदिवासियों को हम घर-घर अभियान चलाकर बतायेगे. विधायक का आरोप भाजपा सरकार में आदिवासी त्रस्त है. तालिबानी घटना आदिवासी के साथ घटित हो रही है. कांग्रेस आदिवासियों की सच्ची हितेषी यह उन्हें बताया जाएगा.''
बीजेपी का पलटवार
वहीं कांग्रेस के आरोपों पर बीजेपी ने भी पलटवार किया है. बीजेपी के प्रदेश मंत्री रजनीश अग्रवाल ने कहा कि ''कांग्रेस अगर प्रदेशभर में आदिवासियों के विकास को रोकने के लिए मेल-मिलाप अभियान चलाएगी. तो हम कांग्रेस के मेल मिलाप को एक्सपोज करेंगे. उन्होंने कहा कि जब मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार थी तब सबसे ज्यादा अत्याचार आदिवासियों पर हुए थे. लेकिन बीजेपी की सरकार में आदिवासियों के विकास का काम हुआ है.''
आदिवासी वोटबैंक पर दोनों पार्टियों की नजर
दरअसल, यूं तो आदिवासी आबादी 20 प्रतिशत है. लेकिन एमपी की सरकार में इसका सीधा असर पड़ता है. शायद यही कारण है कि आदिवासियों को लेकर सियासत सूबे में गरमाती आई है. हालांकि विश्व आदिवासी दिवस पर निरस्त किया गया अवकाश अब 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती पर दिया जाएगा. इस बात की घोषणा भी सीएम शिवराज ने कर दी है.
मप्र की कुल जनसंख्या की लगभग 20 प्रतिशत आबादी से ज्यादा यानी लगभग दो करोड़ आदिवासी हैं.
क्यों अहम है आदिवासी
प्रदेश में आदिवासी वर्ग के लिए 47 विधानसभा सीटें तो 6 लोकसभा सीटें आरक्षित हैं. जबकि सामान्य वर्ग की भी 31 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासी वोट हार-जीत में निर्णायक भूमिका में रहता है. यही वजह है कि मध्यप्रदेश की सियासत में आदिवासी वोट बैंक राजनीतिक दलों के लिए सबसे अहम होता क्योंकि आदिवासी वोट जिस करवट बैठ जाता है सरकार उसी दल की बनती है.
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