MP के बटेश्वर मंदिर की कहानी, जिसे एक डकैत और एक अधिकारी ने मिलकर बचाया!
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MP के बटेश्वर मंदिर की कहानी, जिसे एक डकैत और एक अधिकारी ने मिलकर बचाया!

Bateshwar Temple: साल 2000 में पद्मश्री से सम्मानित मशहूर पुरातत्व वैज्ञानिक केके मुहम्मद की मध्य प्रदेश में तैनाती हुई. केके मुहम्मद ने बटेश्वर मंदिर परिसर के जीर्णोद्धार की योजना बनाई 

MP के बटेश्वर मंदिर की कहानी, जिसे एक डकैत और एक अधिकारी ने मिलकर बचाया!

नई दिल्लीः मध्य प्रदेश में कई ऐसी ऐतिहासिक साइट हैं, जो पुरातत्व महत्व की हैं. ऐसी ही एक प्रसिद्ध जगह है बटेश्वर मंदिर परिसर. ग्वालियर से करीब एक घंटे की दूरी पर मौजूद ये ऐतिहासिक स्थल चंबल इलाके में पड़ता है. चंबल का इलाका एक समय डाकुओं का गढ़ होता था. यही वजह रही कि साल 1924 में पुरातत्व विभाग ने इसे ऐतिहासिक स्थल घोषित किया था लेकिन डाकुओं के डर से हर कोई यहां आने से डरता था. हालांकि बाद में चंबल के एक दुर्दांत डाकू और पुरातत्व विभाग के अधिकारी के प्रयासों से इस मंदिर का पुनर्निर्माण संभव हुआ और आज यह मंदिर परिसर अपनी वास्तुकला के लिए बेहद फेमस है. 

क्या है इस मंदिर के पुनर्निर्माण की कहानी
बताया जाता है कि एक समय चंबल का सबसे ताकतवर डाकू रहा निर्भय गुर्जर बटेश्वर मंदिर परिसर में रहा करता था. उस वक्त ये मंदिर परिसर सूना पड़ा था और डाकुओं के डर से कोई यहां नहीं आता था. मनी कंट्रोल में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2000 में पद्मश्री से सम्मानित मशहूर पुरातत्व वैज्ञानिक केके मुहम्मद की मध्य प्रदेश में तैनाती हुई. केके मुहम्मद ने बटेश्वर मंदिर परिसर के जीर्णोद्धार की योजना बनाई और इसके लिए उन्होंने पहले डकैत निर्भय गुर्जर से बात की और उसे बटेश्वर मंदिर परिसर खाली करने के लिए राजी कर लिया. निर्भय गुर्जर ने पुरातत्व विभाग को इस बात की भी गारंटी दी कि कोई डाकू पुरातत्व विभाग के लोगों को कुछ नहीं कहेंगे.

इसके बाद ही साल 2005 में बटेश्वर मंदिर परिसर के पुनर्निर्माण का काम शुरू हुआ था. पुरातत्व विभाग ने निर्भय गुर्जर से सुरक्षा का आश्वासन मिलने के बाद चंदेरी के कारीगरों को बुलाकर मंदिर के पुनर्निर्माण का काम शुरू कराया. आज इस मंदिर परिसर के करीब 80 मंदिरों का पुनर्निर्माण हो चुका है और आज यह एमपी का फेमस पर्यटन स्थल है. 

बता दें कि बटेश्वर मंदिर परिसर में करीब 200 छोटे बड़े मंदिर मौजूद हैं. माना जाता है कि 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच में गुर्जर प्रतिहार वंश के राजाओं ने इस मंदिर परिसर का निर्माण कराया था. गुर्जर प्रतिहार वंश के राजाओं ने ही मध्यप्रदेश के एक और ऐतिहासिक स्थल खजुराहों का भी निर्माण कराया था. 

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