who was Sardar Vishnu Singh Gond: बैतूल के बस स्टैंड पर सरदार विष्णु सिंह गोंड की प्रतिमा का भव्य अनावरण हुआ, जिसमें आदिवासी समुदाय ने बड़े जुलूस और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ भाग लिया.
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Sardar Vishnu Singh Gond: बैतूल के बस स्टैंड पर स्वतंत्रता संग्राम के आदिवासी क्रांतिवीर सरदार विष्णु सिंह गोंड की प्रतिमा के अनावरण पर जिला मुख्यालय जनजातीय समुदाय के सैलाब से भर गया. शहर की सभी सड़कों पर नाचते झूमते हुए आदिवासी युवा बुजुर्गों ने बस स्टैंड की तरफ कूच किया. बैतूल शहर में आदिवासी समुदाय के हजारों लोगों ने मिलकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ जुलूस निकाला और भव्य तरीके से सरदार विष्णु सिंह गोंड की प्रतिमा का अनावरण किया गया.
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प्रतिमा की हुई स्थापना
बता दें कि इस कार्यक्रम को लेकर खास बात यह रही कि बैतूल के बस स्टैंड का सरदार विष्णु सिंह के नाम पर कई वर्षों पहले ही नामकरण हो चुका था, लेकिन यहां उनकी कोई प्रतिमा नहीं थी. आदिवासी संगठन प्रतिमा की मांग को लेकर कई वर्षों से प्रयासरत थे. जब प्रशासन ने आदिवासियों की मांग पर ध्यान नहीं दिया तो सभी आदिवासी संगठनों ने मिलकर एक-एक रुपये चंदा इकट्ठा करके सरदार विष्णुसिंह गोंड की प्रतिमा बनवाकर बस स्टैंड पर स्थापित करवाई है. सरदार विष्णुसिंह की प्रतिमा स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी लड़ाकों की वीरता का प्रतीक है.
बैतूल में आदिवासियों के जनसैलाब से पूरे दिन ट्रैफिक व्यवस्था संभालने में प्रशासन को मुश्किलों का सामना करना पड़ा. कई जगहों से रूट डाइवर्ट किए गए, लेकिन तब भी लोगों के हुजूम से सड़कों पर पैदल चलना भी मुश्किल हो रहा था. आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में अब यह बड़ा परिवर्तन देखने मिल रहा है जब प्रमुख मौकों पर जनजातीय समुदाय भी जुलूस और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से शक्ति प्रदर्शन करते दिखाई देते हैं.
कौन थे विष्णु सिंह गौंड?
बता दें कि सरदार विष्णु सिंह गोंड एक आदिवासी नायक और स्वतंत्रता सेनानी थे. सरदार विष्णु सिंह गोंड मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के महेंद्रवाड़ी गांव से थे. उन्होंने 1930 में युवा अवस्था में जंगल सत्याग्रह का नेतृत्व किया. विष्णु सिंह एक किसान परिवार से थे और प्राथमिक शिक्षा के बाद स्वतंत्रता संग्राम में पूरी तरह से समर्पित हो गए. 1942 में गांधीजी के "करो या मरो" आंदोलन के दौरान, उन्होंने घोडाडोंगरी में आंदोलन का नेतृत्व किया और सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के लिए संघर्ष किया. ब्रिटिश सरकार ने उन्हें मौत की सजा सुनाई, लेकिन लंदन के प्रिवी काउंसिल के हस्तक्षेप के बाद सजा को जीवन कारावास में बदल दिया गया. 1946 में जेल से रिहा होने के बाद विष्णु सिंह गोंड की तबीयत खराब रहने लगी और 1956 में उनके गांव महेंद्रवाड़ी में उनका निधन हुआ.
रिपोर्ट: रूपेश कुमार (बैतूल)