रतलाम के रश्मि और नीरज हैं भगवान के 'ड्रेस डिजाइनर', बाबा महाकाल भी पहनते हैं इनकी बनाई पगड़ी
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रतलाम के रश्मि और नीरज हैं भगवान के 'ड्रेस डिजाइनर', बाबा महाकाल भी पहनते हैं इनकी बनाई पगड़ी

रश्मि और नीरज का कहना है कि, भगवान के श्रृंगार का कार्य करने वाले ही इस कार्य मे पारंगत हो पाते हैं, क्योंकि हर प्रतिमा अलग आकर प्रकार की होती है. इएलिए कभी भी श्रृंगार का ढांचा पहले से तैयार नहीं किया जा सकता.

रतलाम के रश्मि और नीरज हैं भगवान के 'ड्रेस डिजाइनर', बाबा महाकाल भी पहनते हैं इनकी बनाई पगड़ी

चंद्रशेखर सोलंकी, रतलामः वैसे तो देश मे बेरोजगारी का मुद्दा चरम पर है. उच्च शिक्षा के बाद भी अच्छे पद पर नौकरी नहीं मिलने के कारण बेरोजगार युवा भटकते रहते हैं, लेकिन इन सबके बीच कुछ युवा ऐसे भी हैं जो उच्च शिक्षा के बाद रोजगार के लिए प्रयास में असफल तो हुए, लेकिन उन्होंने बेरोजगारी के बारे में सोच कर अपना समय बर्बाद करने के बजाए ऐसे कार्य को भी चुन लिया जिसका उच्च शिक्षा से से कोई संबंध नहीं होता. रतलाम के रहने वाले नीरज और रश्मि ने.

रश्मि और नीरज को जब नौकरी में सफलता नहीं मिली तो असफलता से मायूस होने के बजाए इन्होंने स्वरोजगार को चुना और भगवान के वस्त्र और उनके श्रंगार का सामान बनाने का काम शुरू कर दिया. इस कार्य मे आज वह इस तरह पारंगत हो गए कि इनके द्वारा बनाये गए भगवान की पगड़ी, साफे, और वस्त्र उज्जैन महाकाल तक जाते हैं. आज इनके इस कार्य पारंगता को देख लोग न सिर्फ रतलाम जिले से बल्कि अन्य जिलों से भी भगवान के श्रृंगार के लिए इनसे  काम करवाते हैं. इनसे भगवान के श्रंगार के लिए न सिर्फ रतलाम, झाबुआ, उज्जैन बल्कि मुंबई तक से लोग इन्हें बुलाते हैं और भगवान का श्रृंगार कराते हैं.

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रतलाम के भाई-बहन  नीरज और रश्मि समाज के यूआओ को ऐसे ही संदेश देते हैं. नीरज सोवनचा बताते हैं कि वह 22 साल से भगवान के श्रृंगार का काम कर रहे हैं. परिवार की आर्थिक हालात शुरू से ठीक नहीं थी. ऐसे में नीरज ने स्कूल पढ़ाई के समय से भगवान के श्रृंगार का काम करना शुरू कर दिया था, जिससे हुई आमदनी से पढ़ाई का खर्च निकल जाता था. नीरज का सपना था कि वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर अच्छे पद पर शासकीय सेवा में पदस्त होगा और परिवार को आर्थिक तंगी से बाहर लाएगा, लेकिन 12 वीं कक्षा पढ़ाई पूरी कर कॉलेजमे कदम रखते ही परिवार में भी जवाददारी बढ़ती गई.

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छोटी बहन को भी पढ़ाने की जिम्मेदारी नीरज पर आ गई. ऐसे में नीरज ने अपने काम को आगे बढ़ाने का फैसला किया और रतलाम के मंदिरों से इस काम की शुरुआत की. पहले सिर्फ चांदी के बर्क के साथ काम करने के बाद इन्होंने धीरे-धीरे लेस लगाकर और सितारे मोतियों से श्रृंगार को और आकर्षक बनाया. फिर घर पर अलग-अलग रंग में कॉटन को कलर कर उससे भगवान की प्रतिमाओं का श्रृंगार किया. अब नीरज काफी बारीक कारीगरी और कुछ तकनीकी कार्य कर बड़े ही सुंदर और आकर्षक पोशाख, पगड़ी, साफे के साथ भगवान का श्रृंगार करते है.

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छोटी  बहन रश्मि ने भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर उच्च पद का लक्ष्य लिया और डबल एमए  कर शासकीय सेवा में उच्च पद पर जाने के  लिए कवायद शुरू की.  कई परीक्षाएं देने के बाद भी लगातार असफलता हाथ लगी,  बावजूद इसके रश्मि ने हिम्मत नहीं हारी और भाई नीरज  के कार्य मे हाथ बटाना शुरू किया. आज बहन भी इसी कार्य मे पारंगत है और और वह भी महाकाल की विशाल पगड़ी और अन्य बड़े प्रतिमाओं की पोषाक बनाने का काम स्वयं करती हैं. अब दोनों भाई-बहन भगवान के श्रृंगार के  काम को मुख्य व्यवसाय बना चुके हैं.

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रश्मि और नीरज का कहना है कि, भगवान के श्रृंगार का कार्य करने वाले ही इस कार्य मे पारंगत हो पाते हैं, क्योंकि हर प्रतिमा अलग आकर प्रकार की होती है. इएलिए कभी भी श्रृंगार का ढांचा पहले से तैयार नहीं किया जा सकता. हर प्रतिमा के श्रंगार के लिए पूरी तैयारी शुरू से ही करना पड़ता है. पहले मंदिर जाकर ही प्रतिमा का श्रृंगार करते थे, लेकिन अब प्रतिमा के आकार प्रकार का हिसाब लेकर घर पर ही पोशाक तैयार कर लिए जाते हैं. पोशाख पर अलग-अलग सुंदर रंग बिरंगी लेस और सितारे मोती लगाकर इसे और आकर्षक बनाया जाता है. फिर इन पोशाख को मंदिर ले जाया जाता है, जहां अलग-अलग हिस्सों को जोड़कर भगवान को और सुंदर सजाया जाता है.

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