इस सरकारी अस्पताल में मरीजों को मिलता है अंकुरित आहार, घर की तरह रखा जाता है ख्याल
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इस सरकारी अस्पताल में मरीजों को मिलता है अंकुरित आहार, घर की तरह रखा जाता है ख्याल

बैतूल शहर में कुछ समाजसेवी हर दिन जिला अस्पताल में मरीजों को लिए अंकुरित आहार बांटने का काम करते हैं. 1 जनवरी 2021 को इस काम के लिए 21 साल पूरे हो गए.  

 

अंकुरित आहार बांटते समाजसेवी

बैतूलः कहते हैं अगर लोगों की मदद करने का हौसला और जज्बा हो तो छोटा सा काम भी बहुत बड़ा हो जाता है. बैतूल शहर में भी आज से 21 साल पहले कुछ समाजसेवियों ने ऐसे ही काम की शुरुआत की थी, जो आज एक बड़े मुकाम पर पहुंच गया है. बैतूल में कुछ समाजसेवियों और पत्रकारों ने गरीब मरीजों और बीमार लोगों के लिए एक योजना की शुरुआत की थी, उनकी इस पहल से लाखों मरीजों को फायदा मिला है.

सुबह से दिया जाता है अंकुरित आहार 
पिछले 21 सालों से सुबह 8 बजते ही बैतूल जिले के समाजसेवी जिला अस्पताल पहुंचकर यहां भर्ती मरीजों को अंकुरित आहार बांटते हैं. अस्पताल में काम करने वाले लोगों का कहना है कि पिछले 21 सालों में एक भी दिन ऐसा नहीं गुजरा है जब इन लोगों ने अस्पताल में आकर मरीजों को अंकुरित आहार न वितरित किया हो. सुबह-सुबह अंकुरित आहार का सेवन करने से मरीजों को भी फायदा पहुंचता है. 

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1 जनवरी को पूरे हुए 21 साल 
बैतूल शहर के समाजसेवियों ने आज से 21 साल पहले ही अंकुरित आहार बांटने का काम शुरू किया था. उन्होंने बताया कि हर दिन अस्पताल में करीब 400 मरीजों को रोज सुबह 8 बजे अंकुरित आहार दिया जाता है.  पोषक तत्वों से बने आहार लेकर सेवाकर्मी सबसे पहले अस्पताल पहुंचते हैं, फिर सेवाभावना के लिए छोटी सी प्रार्थना की जाती है. उसके बाद एक दर्जन से ज्यादा सेवाभावी सदस्य अंकुरित आहार हर वार्ड में पहुंचकर मरीज और उनके परिजनों को देते हैं. खास बात यह है कि सेवाभावी सदस्यों का यह कारवा बढ़ता ही जा रहा है. 

200 टन से ज्यादा आहार बांटा जा चुका है 
पिछले 21 सालों में 200 टन से ज्यादा अंकुरित आहार मरीजों में बांटा जा चुका है. इसके अलावा शादी की सालगिरह, बर्थडे या अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि पर भी लोग 500 रुपए का शुक्ल देकर इस योजना में शामिल होते हैं. उस दिन मरीजों के लिए विशेष भोजन का इंतजाम किया जाता है. जबकि यह भोजन मरीजों के अलावा गरीबों को भी बांटा जाता है. 

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हर दिन तैयार होता है मीनू 
दरअसल, यह परिवार हर दिन के लिए अपना मीनू तैयार कर लेता है. जिसमें कभी मूंग तो कभी चना या फिर सोयाबीन के दाने पानी में भिगोकर और उन्हें अंकुरित कर उसे हल्का चटपटा बनाकर मरीजों को दिया जाता है. समाजसेवियों के इस काम की सफलता का अंदाजा इसी से बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 21 सालों में भी यह एक भी दिन बंद नहीं हुआ. कोरोना के दौरान भी लोगों ने अंकुरित आहार बांटने का काम बंद नहीं हुआ. इस साल भी 260 दिन की बुकिंग एडवांस में हो चुकी है. जहिर है एक अच्छी पहल ने प्रेरणादायी शक्ल अख्तियार कर ली है. इस काम की शुरुआत करने वाले लोगों का कहना है कि उन्होंने तो छोटा सा काम शुरू किया था लेकिन धीरे-धीरे कारवां बनता चला गया.

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