12 महीने, 7 दिन, 9 ग्रह और 12 राशियों का प्रतीक यह मंदिर, जहां पड़ती है सूर्य की पहली किरण
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12 महीने, 7 दिन, 9 ग्रह और 12 राशियों का प्रतीक यह मंदिर, जहां पड़ती है सूर्य की पहली किरण

मकर संक्रांति के मौके पर पूरे देश में भगवान सूर्य देव की पूजा की जाती है. खरगोन जिले में एक ऐसा ही मंदिर है, जहां मकर संक्रांति पर श्रद्धालुओं की भीड़ खूब उमड़ती है.

खरगोन नवग्रह मंदिर.

खरगोन: मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में स्थित अति प्राचीन नवग्रह मंदिर का मकर संक्रांति पर काफी महत्व है. मकर संक्रांति के दिन यहां सूर्य देव की प्रतिमा पर सूर्य की पहली किरण पड़ती है. ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर के बाद यह देश का दूसरा ऐसा मंदिर है, जहां सूर्य की किरणें सबसे पहली आती हैं. इस मंदिर में चारों तरफ नवग्रहों की प्राचीन मूर्तियां स्थापित हैं. देश भर से श्रद्धालु मकर संक्रांति पर यहां भगवान भास्कर के दर्शन के लिए आते हैं.

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गर्भ गृह में सूर्य की मूर्ति विराजित
मकर संक्रांति के दिन मंदिर में सूर्योदय से पहले ही भक्तों का तांता लगने लग जाता है. संक्रांति पर खरगोन नवग्रह मंदिर में सूर्य की पहली किरण मंदिर के गुंबद से होते हुए भगवान सूर्य की मूर्ति पर पड़ती है. बता दें कि मकर संक्रांति सूर्य की अगवानी का पर्व होता है, और नवग्रह मंदिर सूर्य प्रधान होता है. इस मंदिर के गर्भ गृह में सूर्य की मूर्ति विराजित है. मूर्ति के आसपास अन्य ग्रह हैं. यहां मान्यता है कि मकर संक्रांति पर सूर्य की पूजा की जाती है तो नवग्रह की कृपा होती है. प्राचीन ज्योतिष सिद्धांतों के अनुसार मंदिर की रचना की गई है.

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इस मंदिर की खासियत
खरगोन नवग्रह मंदिर में प्रवेश करते समय 7 सीढ़ियां हैं, जो सप्ताह के सात दिनों का प्रतीक हैं. इसके बाद ब्रह्मा विष्णु के स्वरूप, मां सरस्वती, श्री राम और पंचमुखी महादेव के दर्शन होते हैं. मंदिर के गर्भगृह में जाने के लिए जहां 12 सीढ़ियां उतरना होती हैं, जो साल के 12 महीने का प्रतीक हैं. इसके बाद दूसरे मार्ग पर फिर 12 सीढ़ियों से ऊपर चढ़ते हैं जो 12 राशियों का प्रतीक हैं. 

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खरगोन नवग्रह नगरी कहा जाता है
इस प्रकार से सात दिन, 12 महीने, 12 राशियों और नवग्रह, इनके बीच में हमारा जीवन चलता है और उसी आधार पर मंदिर की रचना की गई है. ​इस मंदिर की वजह से खरगोन को नवग्रह नगरी भी कहा जाता है. कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना 600 साल पहले हुई है. इसकी स्थापना शेपाप्पा सुखावधानी वैरागकर ने की थी, जो मूल रूप से कर्नाटक के रहने वाले थे. वह अष्टम् महाविद्या बगलामुखी देवी के उपासकर थे.

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