1000 साल पुराने भोरमदेव मंदिर का पुरातत्व विभाग ने किया दौरा, पानी रिसने की मिली थी शिकायत
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1000 साल पुराने भोरमदेव मंदिर का पुरातत्व विभाग ने किया दौरा, पानी रिसने की मिली थी शिकायत

पुरातत्व विभाग की टीम संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के तकनीकी टीम ने भोरमदेव मंदिर का निरीक्षण किया.

1000 साल पुराने भोरमदेव मंदिर का पुरातत्व विभाग ने किया दौरा, पानी रिसने की मिली थी शिकायत

कवर्धा: ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के भोरमदेव मंदिर में बारिश के पानी के रिसाव गर्भ गृह में होने की खबर ज़ी मीडिया में दिखाए जाने के बाद पुरातत्व विभाग की टीम संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के तकनीकी टीम ने भोरमदेव मंदिर का निरीक्षण किया. तकनीकी टीम ने मंदिर के बाहरी भाग में भी चावल व केमिकल युक्त गुलाल व अन्य समाग्री छिड़कने पर प्रतिबंध लगाने की रिपोर्ट कबीरधाम जिला प्रशासन के रिर्पोर्ट के आधार पर सौंप दी है. छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक भोरमदेव मंदिर के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में जल्द ही काम शुरू किया जाएगा. इसकी प्रांरभिक तैयारियां शुरू हो गई है.

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कलेक्टर को कारण बताया
भोरमदेव मंदिर के परिसर एवं गर्भगृह में हो रहे बरसात के पानी के रिसाव व मंदिर के बाहरी भाग के क्षरण के वास्तविक कारणों का पता लगाने के लिए जिला प्रशासन की रिपोर्ट पर छत्तीसगढ़ संस्कृति एवं पुरात्व विभाग की टीम ने मंदिर परिसर का अवलोकन किया. संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के डिप्टी डायरेक्टर अमृत लाल पैकरा की अवलोकन टीम में चार अलग-अलग तकनीकी विशेषज्ञों ने बारिकी से निरीक्षण किया. अवलोकन के बाद टीम ने कलेक्टर रमेश कुमार शर्मा को भोरमदेव मंदिर परिसर के गर्भ गृह में पानी का रिसाव,व बाहरी भाग के रक्षण होने के वास्तविक कारणों को बताया.

भोमरदेव मंदिर की स्थिति बहुत ही अच्छी
पुरात्व विभाग की विशेषज्ञों की टीम ने बताया छत्तीसगढ़ में 11वीं शताब्दी काल में निर्मित व इसके समकालिन अन्य मंदिरों की तुलना में भोमरदेव मंदिर की स्थिति बहुत ही अच्छा है. कुछ कारणों से पानी का रिसाव हो रहे हैं, इसकी रिपोर्ट विभाग को दे दी जाएगी. विशेषज्ञों की टीम ने भोरमदेव मंदिर की संरक्षण व संवर्धन की दिशा में मंदिर की उपरी भाग की विशेष साफ सफाई, पत्थरों के जोड़ों को पुनः फिलिंग करने व विशेष कोडिंग के लिए रिपोर्ट बनाई है. टीम ने मंदिर के आसपास के पेड़ों की छटाई करने की रिपोर्ट जिला प्रशासन को दी है.

इन चीजों को किया जाएगा प्रतिबंध
टीम ने बताया कि पतझड़ के मौसम में आसपास के पेड़ों के पत्तें मंदिर के उपरी भाग में जम गए है, जिसकी वजह से पानी की निकासी सही नहीं हो पा रही है. पुरात्व विभाग के विशेषज्ञों की टीम ने मंदिर के चारों दिशा में भूतल से नए सिरें से फिलिंग करने के लिए सर्वे किया है. तकनीकी विशेषज्ञों की टीम ने मंदिर के गर्भगृह के बाहरी भाग में चावल व केमिकल युक्त गुलाल, चंदन व वंदन लगाने के लिए प्रतिबंध करने की बात कही अब शीघ्र ही मंदिर का मेटनेंश का काम किया जाएगा.

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11वीं शताब्दी में राजा गोपाल देव ने बनवाया मंदिर
बता दें कि मंदिर करीब एक हजार साल पुराना है. भोरमदेव मंदिर की बनावट खजुराहो और ओडिशा के कोणार्क मंदिर जैसी है. कवर्धा से करीब 10 किमी दूर मैकल पर्वत समूह से घिरा यह मंदिर करीब एक हजार साल पुराना है. यहां मुख्य मंदिर की बाहरी दीवारों पर मिथुन मूर्तियां बनी हुई हैं, इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है. मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था. 

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