Knowledge: जानिए क्या होते हैं ग्लेशियर और कैसे बनते हैं, इनके टूटने से क्यों मचती है तबाही?
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Knowledge: जानिए क्या होते हैं ग्लेशियर और कैसे बनते हैं, इनके टूटने से क्यों मचती है तबाही?

 उत्तराखंड के चमोली जिले में रविवार सुबह 10 बजे के करीब ग्लेशियर टूटकर धौली नदी में गिरने से बाढ़ जैसे हालात उत्पन्न हो गए. यहां के तपोवन इलाके के रेनी गांव में हिमस्खलन से धौली नदी का जल स्तर अचानक बढ़ गया. चमोली पुलिस के मुताबिक ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट को काफी नुकसान पहुंचा है.

सांकेतिक तस्वीर.

नई दिल्ली: उत्तराखंड के चमोली जिले में रविवार सुबह 10 बजे के करीब ग्लेशियर टूटकर धौली नदी में गिरने से बाढ़ जैसे हालात उत्पन्न हो गए. यहां के तपोवन इलाके के रेनी गांव में हिमस्खलन से धौली नदी का जल स्तर अचानक बढ़ गया. चमोली पुलिस के मुताबिक ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट को काफी नुकसान पहुंचा है. धौलीगंगा, अलकनंदा की सहायक नदी है. अलकनंदा रुद्र प्रयाग में भागीरथी से आकर मिलती है. ऐसे में धौली नदी में जल स्तर बढ़ने से आशंका थी कि अलकनंदा तबाही मचा सकती है. लेकिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ट्वीट कर बताया कि अलकनंदा में पानी का बहाव रुद्रप्रयाग आने तक सामान्य हो गया. इससे बड़ी तबाही होने से बच गई.

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उत्तराखंड से निकलने वाली प्रमुख नदियों में भागीरथी ,अलकनंदा, विष्णुगंगा, भ्युंदर, पिंडर, धौलीगंगा, अमृत गंगा, दूधगंगा, मंदाकिनी, बिंदाल, यमुना, टोंस, सोंग, काली, गोला, रामगंगा, कोसी, जाह्नवी, नंदाकिनी के नाम हैं. रविवार की घटना धौलीगंगा नदीं में हुई है. धौलीगंगा नदी अलकनंदा की सहायक नदी है. गढ़वाल और तिब्बत के बीच यह नदी नीति दर्रे से निकलती है. इसमें कई छोटी नदियां मिलती हैं जैसे कि पर्ला, कामत, जैंती, अमृतगंगा और गिर्थी नदियां. धौलीगंगा नदी पिथौरागढ़ में काली नदी की सहायक नदी है. आपके मन में सवाल होंगे कि ग्लेशियर टूटने की घटना क्या है, इससे नदी का जनस्तर कैसे बढ़ता है और ग्लेशियर टूटते क्यों हैं? आइए जानते हैं इन प्रश्नों के उत्तर...

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ग्लेशियर (Glacier) को हिंदी में हिमनद (River of Ice) कहते हैं. यानी बर्फ की नदी, जिसका पानी ठंड के कारण जम जाता है. हिमनद में बहाव नहीं होता. अमूमन हिमनद जब टूटते हैं तो स्थिति काफी विकराल होती है. क्योंकि बर्फ पिघलकर पानी बनता है और उस क्षेत्र की नदियों में समाता है. इससे नदी का जलस्तर अचानक काफी ज्यादा बढ़ जाता है. चूंकि पहाड़ी क्षेत्र होता है इसलिए पानी का बहाव भी काफी तेज होता है. ऐसी स्थिति तबाही लाती है. ​नदी अपने तेज बहाव के साथ रास्ते में पड़ने वाली हर चीज को तबाह करते हुए आगे बढ़ती है. 

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ग्लेशियर दो प्रकार के होते हैं, अल्पाइन ग्लेशियर या घाटी (Valley), ग्लेशियर का पहाड़ (Mountain). उत्तराखंड के चमोली जिले में हुई घटना का संबंध पहाड़ी ग्लेशियर से संबंधित है, जो ऊंचे पर्वतों के पास बनते हैं और घाटियों की ओर बहते हैं. पहाड़ी ग्लेशियर ही सबसे ज्यादा खतरनाक माने जाते हैं. ग्लेशयर वहां बनते हैं जहां काफी ठंड होती है. बर्फ हर साल जमा होती रहती है. मौसम बदलने पर यह बर्फ पिघलती है जो नदियों में पानी का मुख्य स्त्रोत होता है. ठंड में बर्फबारी होने पर पहले से जमीं बर्फ दबने लगती है. उसका घनत्व (Dnesity) काफी बढ़ जाता है. 

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हल्के​ क्रिस्टल (Crystal) ठोस (Solid) बर्फ के गोले यानी ग्लेशियर में बदलने लगते हैं. नई बर्फबारी होने से ग्लेशियर नीचे दबाने लगते हैं. और कठोर हो जाते हैं, घनत्व काफी बढ़ जाता है. इसे फर्न (Firn) कहते हैं. इस प्रक्रिया में ठोस बर्फ की बहुत विशाल मात्रा जमा हो जाती है. बर्फबारी के कारण पड़ने वाले दबाव से फर्न बिना अधिक तापमान के ही पिघलने लगती है और बहने लगती है. हिमनद का रूप लेकर घाटियों (Valleys) की ओर बहने लगती है. हिमनद तब तक खतरनाक नहीं होते जब तक यह हिमस्खलन (Avalanche) में तब्दील न हो जाएं. 

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हिमस्खलन में बहुत अधिक मात्रा में बर्फ पहाड़ों से फिसलकर घाटी में गिरने लगती है, जैसे चमोली (Chamoli) की नीति घाटी में हुआ. इस दौरान काफी विशाल मात्रा में बर्फ पहाड़ी की ढलानों से तेज गति से घाटियों में गिरने लगती है. इसके रास्ते में जो कुछ आता है सब तबाह होता है. जैसे पेड़, घर, जंगल, बांध, बिजली प्रोजेक्ट या किसी भी तरह का कंस्ट्रक्शन. 

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ग्लेशियर का पानी के साथ मिलना इसे और ज्यादा विनाशक बना देता है. पानी का साथ मिलते ही ग्लेशियर टाइडवॉटर ग्लेशियर (Tidewater Glacier) बन जाते हैं. बर्फ के विशाल टुकड़े (Icebergs) पानी में तैरने लगते हैं. इस प्रक्रिया को काल्विंग (Calving) कहते हैं. इससे नदी के पानी का बहाव और स्तर बढ़ जाता है. धौली नदी में भी यही नजारा दिखा.

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ग्लेशियर (Glacier) पृथ्वी पर पानी का सबसे बड़ा सोर्स हैं. इनकी उपयोगिता नदियों के स्रोत (Source of Rivers) के तौर पर होती है. जो नदियां पूरे साल पानी से लबालब रहती हैं वे ग्लेशियर से ही निकलती हैं. गंगा नदी का प्रमुख स्रोत गंगोत्री (Gangotri Glacier) हिमनद ही है. यमुना नदी का स्रोत यमुनोत्री भी (Yamunotri Glacier) ग्लेशियर ही है. ग्लेशियर का टूटना या पिघलना ऐसी दुर्घटनाएं हैं, जो बड़ूी आबादी पर असर डालती हैं. कई बार पहाड़ों पर घूमने गए सैलानी, माउंटेनियर  ग्लेशियर की चोटियों पर पहुंचने की कोशिश करते हैं. ये बर्फीली चोटियां काफी खतरनाक होती हैं. कभी भी गिर सकती हैं. 

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ग्लेशियर हमेशा अस्थिर होते हैं और धीरे-धीरे नीचे की ओर सरकते हैं. यह प्रक्रिया इतनी धीमी गति से भी होती है कि आंखों से दिखाई नहीं पड़ती. ग्लेशियर में कई बार बड़ी-बड़ी दरारें होती हैं, जो ऊपर से बर्फ की पतली परत से ढंकी होती हैं. ये जमी हुई मजबूत बर्फ की चट्टान की तरह ही दिखती हैं. ऐसी चट्टान के पास जाने पर वजन पड़ते ही ग्लेशियर में मौजूद बर्फ की पतली परत टूट जाती है और व्यक्ति सीधे बर्फ की विशालकाय दरार में जा गिरता है. इसी तरह यदि भूकंप या कंपन होता है तब भी चोटियों पर जमी बर्फ ​खिसककर नीचे आने लगती है, जिसे एवलॉन्च कहते हैं. कई बार तेज आवाज, विस्फोट के कारण भी एवलॉन्च आते हैं. 

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ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण अंटार्कटिका के ग्लेशियर पिघल रहे हैं. पश्चिम अंटार्कटिका में एक ऐसा ग्लेशियर है, जिसकी बर्फ तेजी से पिघल रही है. इसे थ्वाइट्स ग्लेशियर कहते हैं. यह ग्लेशियर आकार ब्रिटेन के क्षेत्रफल से बड़ा है. इससे सालाना 35 अरब टन पानी पिघलकर समुद्र में जा रहा है. इसके कारण समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है. यूनाइटेड नेशंस क्लाइमेट साइंस पैनल ने एक शोध के बाद बताया कि साल 2100 तक समुद्र का जलस्तर 26 सेंटीमीटर से 1.1 मीटर तकऊपर उठ सकता है. इसके कारण समुद्र के किनारे पर बसे देश, शहर, गांवों के डूबने का खतरा उत्पन्न हो गया है. 

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ग्लेशियर के पिघलने का कारण दुनिया में कार्बन डाई ऑक्साइड और ग्रीनहाउस गैसों के काफी ज्यादा मात्रा में उत्सर्जन है. कल, कारखाने, व्हीकल, एसी इत्यादि इन गैसों का उत्सर्जन करते हैं. इससे धरती का तापमान बढ़ता है और ग्लेशियर पिघल रहे हैं. कार्बन समेत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए ही देश अब क्लीन एनर्जी की ओर बढ़ रहे हैं. इनमें सोलर एनर्जी, विंड टरबाइन, एटॉमिक एनर्जी इत्यादि प्रमुख हैं. ग्लेशियर का अपनी गति से पिघलना सामान्य प्रक्रिया है. इसी से दुनिया को पानी की आपूर्ति होती है. लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण इसका तेजी से पिघलना समस्या पैदा कर देता है. जैसे बाढ़ का आना, हिमस्खलन का होना जैसी प्राकृतिक आपदाएं. 

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