Knowledge: क्या है दल-बदल कानून? जिसके दम पर कांग्रेस कर रही शिवराज सरकार के कार्यकाल पूरा न कर पाने का दावा
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Knowledge: क्या है दल-बदल कानून? जिसके दम पर कांग्रेस कर रही शिवराज सरकार के कार्यकाल पूरा न कर पाने का दावा

कांग्रेस नेता जीतू पटवारी और पीसी शर्मा ने दावा किया कि शिवराज सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी. पटवारी और शर्मा के मुताबिक दल-बदल वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट कुछ ऐसा फैसला सुना सकता है, जिससे शिवराज सरकार खतरे में आ जाएगी.आइए जानते हैं क्या है दल-बदल...

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान (L), भाजपा के राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया.

भोपाल: बीते साल मार्च में 22 कांग्रेसी विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया था. इसके बाद कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आने के कारण गिर गई थी.  ''दल-बदल'' को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक एक्टिविस्ट ने जनहित याचिका दायर की थी. इस याचिका को शीर्ष अदालत ने स्वीकार कर लिया है. 

कांग्रेस नेता जीतू पटवारी और पीसी शर्मा ने इसे लेकर शनिवार को भोपाल कांग्रेस दफ्तर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. दोनों ने दावा किया कि शिवराज सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी. पटवारी और शर्मा के मुताबिक दल-बदल वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट कुछ ऐसा फैसला सुना सकता है, जिससे शिवराज सरकार खतरे में आ जाएगी.

''दल-बदल'' को लेकर देश में एक कानून भी है. इसे एंटी डिफेक्शन लॉ (Anti - Defection Law) कहते हैं. आइए जानते हैं इस कानून में क्या प्रावधान हैं...

दल-बदल विरोधी कानून क्या है?
साल 1967 में हरियाणा के एक विधायक ''गयालाल'' ने एक दिन में तीन बार पार्टी बदली. इस प्रथा को बंद करने के लिए 1985 में 52वां संविधान संशोधन किया गया. संविधान में 10वीं अनुसूची जोड़ी गई. इस अनुसूची में दल-बदल विरोधी कानून को शामिल किया गया. 

दल-बदल विरोधी कानून के मुख्य प्रावधान

दल-बदल विरोधी कानून के तहत जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित किया जा सकता है यदि...

1. एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है. 

2. कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है. 

3. किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट यानी क्रॉस वोटिंग की जाती है. 

4. कोई सदस्य स्वयं को वोटिंग से अलग रखता है यानी वॉक आउट करता है. 

5. छह महीने की समाप्ति के बाद कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है. 

जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित करने की शक्ति किसके पास होती है?

1. दल-बदल कानून के मुताबिक सदन के अध्यक्ष के पास सदस्यों को अयोग्य करार देने संबंधी निर्णय लेने की शक्ति है. 

2. यदि सदन के अध्यक्ष के दल से संबंधित कोई शिकायत प्राप्त होती है तो सदन द्वारा चुने गए किसी अन्य सदस्य को इस संबंध में निर्णय लेने का अधिकार है.

कुछ विशेष परिस्थितियों में जनप्रतिनिधि पर लागू नहीं होता यह कानून
इस कानून में कुछ ऐसी विशेष परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है, जिनमें दल.बदल करने वाले जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता. इस कानून में एक राजनीतिक दल को किसी अन्य राजनीतिक दल में विलय करने की अनुमति है. शर्ते इतनी है कि उस दल के न्यनूतम दो.तिहाई जनप्रतिनिधि विलय के पक्ष में हों. ऐसी स्थिति में  जनप्रतिनिधियों पर दल-बदल कानून लागू नहीं होगा और न ही राजनीतिक दल पर. सदन के अध्यक्ष को इस कानून से छूट प्राप्त है.

साल 2003 में 91वें संविधान संशोधन के तहत दल-बदल कानून में क्या बदलाव हुआ?
साल 1985 में बने इस कानून में मूल प्रावधान यह था कि अगर किसी पार्टी के एक तिहाई विधायक या सांसद बगावत कर अलग होते हैं तो उनकी सदस्यता नहीं जाएगी. इसके बाद भी बड़े पैमाने पर दल-बदल की घटनाएं जारी रहीं तो 2003 में संविधान में 91वां संशोधन किया गया.इस संशोधन के तहत दल.बदल कानून में बदलाव कर इस आंकड़े को दो तिहाई कर दिया गया. 

दल-बदल विरोधी कानून पर बनी समिति और उसकी सिफारिश
आयोग्यता संबंधी निर्णय पर वर्ष 2002 में दिनेश गोस्वामी समिति और न्यायमूर्ति एमएन वेंकटचलैया की अध्यक्षता वाली संविधान समीक्षा समिति ने राष्ट्रपति, राज्यपाल तथा चुनाव आयोग से एक ठोस निर्णय की सिफारिश की थी. दिनेश गोस्वामी समिति ने कहा कि अयोग्यता उन मामलों तक सीमित होनी चाहिए जहां 1. एक सदस्य स्वेच्छा से अपनी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है. 2. एक सदस्य वोट देने से परहेज करता है या वोट के अविश्वास प्रस्ताव में पार्टी व्हीप के विपरीत वोट करता है.

विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट में दल-बदल विरोधी कानून को लेकर क्या कहा गया?
विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट के अनुसार चुनाव पूर्व गठबंधन को दल-बदल विरोधी कानून के तहत एक राजनीतिक दल के रूप में माना जाना चाहिए. इसके अलावा राजनीतिक दलों को व्हिप (Whip) जारी करने को केवल उन मामलों तक सीमित करना चाहिए जब सरकार खतरे में हो.

दल-बदल कानून के लागू होने से क्या बदलाव और फायदा हुआ?
दल-बदल विरोधी कानून के लागू होने के बाद जनप्रतिनिधियों के राजनीतिक पार्टियां बदलने पर रोक लगी. यह कानून चुनी हुई सरकारों को स्थिरता प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है. अवसरवादी राजनीति पर रोक लगने के साथ असमय चुनाव और उस पर होने वाले खर्च को नियंत्रित करने में भी मदद मिली है.

दल-बदल कानून के विरोध में भी दिए जाते हैं कई मजबूत तर्क
हालांकि राजनीतिक विश्लेषक दल-बदल कानून की खामियां भी बताते हैं. उनके मुताबिक इस कानून के कारण राजनीतिक पार्टियों के अंदर लोकतांत्रिक व्यवस्था प्रभावित हुई है. यदि किसी जनप्रतिनिधि के विचार पार्टी लाइन से अलग हैं, फिर भी इस कानून की वजह से वह अपनी आवाज बुलंद नहीं कर सकता. आसान शब्दों में कहें तो दल-बदल विरोधी कानून के कारण किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े सदस्यों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगता है. इस कानून की आलोचना में यह भी तर्क दिया जाता है कि लोकतंत्र में जनता ही सर्वोच्च होती है. उसकी अनुमति से ही शासन चलता है. लेकिन दल-बदल कानून जनता की बजाय राजनीतिक दलों के शासन को मजबूती देता है.

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