महादेव के इस मंदिर में पहली बार मनाई जा रही महाशिवरात्रि, कारण जान रह जाएंगे हैरान
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महादेव के इस मंदिर में पहली बार मनाई जा रही महाशिवरात्रि, कारण जान रह जाएंगे हैरान

हम आपको ऐसे शिव मंदिर के बारे में बता रहे हैं जहां पहली बार महाशिवरात्रि पर पूजा हो रही है. क्योंकि आज से पहले  महाशिवरात्रि पर इस मंदिर में कोई शिव भक्त नहीं पहुंच सका था. 

जलाभिषेक करता भक्त

रतलाम: आज पूरे देश में महाशिवरात्रि धूमधाम से मनाई जा रही है. इस मौके पर हम आपको ऐसे शिव मंदिर के बारे में बता रहे हैं जहां पहली बार महाशिवरात्रि पर पूजा हो रही है. क्योंकि आज से पहले  महाशिवरात्रि पर इस मंदिर में कोई शिव भक्त नहीं पहुंच सका था. आखिर क्यों इस शिव मंदिर में आज तक कोई पहुंच नहीं पाया आइए जानते हैं...

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जमीन के अंदर छिपा था प्राचीन शिव मंदिर 
रतलाम से 45 किलोमीटर दूर माही नदी के किनारे एक सकरा पैदल मार्ग है. इस मार्ग से पहाड़ी पर करीब एक किलोमीटर की पैदल चढ़ाई के बाद एक प्राचीन शिव मंदिर पड़ता है. यहां आज पहली बार महाशिवरात्रि पर शिव भक्त महादेव की पूजा कर रहे हैं. आपको जानकर हैरानी होगी की यह मंदिर कुछ दिनों पहले तक यहां था ही नहीं और न ही किसी ने कल्पना की थी कि इतना भव्य मंदिर यहां हो सकता है. क्योंकि यह एक पहाड़ी का ढलान वाला हिस्सा था, जो पूरी तरह जमीन के अंदर था.

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एक महीने की खुदाई के बाद निकला बाहर
जब इस मंदिर का पता चला तो भोपाल पुरातत्व विभाग ने 1 माह खुदाई करवाई. तब यह मंदिर जमीन से बाहर निकाला. यह विशाल मंदिर कई सदियों से जमीन के अंदर था. इस मंदिर का ऊपरी हिस्सा खंडित हो गया है. लेकिन खंभे और दूसरा हिस्सा अपने पुराने प्राचीन स्वरूप के साथ पूरी तरह सुरक्षित है. इस प्राचीन मंदिर में बारीक नक्काशी के साथ भारतीय संस्कृति की झलक भी देखने को मिलती है. 

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12वीं शताब्दी में बना हो सकता है यह मंदिर
इस मंदिर की जानकारी जैसे-जैसे लोगों को लग रही है वे यहां पहुंचकर इस ऐतिहासिक धरोहर को निहार रहे हैं. महाशिवरात्रि पर इस मंदिर में पहली बार विशेष पूजा की जा रही है. मंदिर के आसपास खुदाई में कई प्राचीन प्रतिमाएं निकली हैं. इनमें कुछ देवी-देवताओं की प्रतिमाएं हैं तो कुछ भारतीय संस्कृति की छटा बिखेरती आकर्षक मूर्तियां हैं. पुरातत्व विभाग के मुताबिक खुदाई में करीब 250 ऐसी प्रतिमाएं निकली हैं. मंदिर पर हुई नक्काशी और कलाकृति को देखकर पुरातत्व विभाग का मानना है कि यह 12वीं शताब्दी का बना मंदिर हो सकता है.

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