मुंबई में क्या हुआ है जो दुनिया की सबसे दुर्लभ 'बॉम्बे ब्लड ग्रुप' की डिमांड बढ़ गई है?
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मुंबई में क्या हुआ है जो दुनिया की सबसे दुर्लभ 'बॉम्बे ब्लड ग्रुप' की डिमांड बढ़ गई है?

दुनियाभर में बेहद दुर्लभ माने जाने वाले इस ब्लड ग्रुप की बात आज हम इसलिए भी कर रहे हैं, क्योंकि देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में इन दिनों इस विशेष और बेहद दुर्लभ ब्लड ग्रुप की मांग में अचानक तेज़ी आई है.

Bombay Blood Group दुनिया में सिर्फ 0.0004 फीसदी लोगों में ही पाया जाता है.

मुंबई: ब्लड ग्रुप्स की अगर हम बात करें तो अब तक हम सब ने A ग्रुप, B ग्रुप, AB ग्रुप और O ग्रुप के साथ इन सभी के पॉजिटिव और नेगेटिव ग्रुप्स के बारे में तो ज़रूर सुना होगा. आमतौर पर हम जब भी अपना ब्लड टेस्ट करवाते हैं तो हमारा ब्लड ग्रुप इनमें से ही कोई एक होता है. इसके अलावा AB ब्लड ग्रुप का मरीज़ अक्सर किसी भी ब्लड ग्रुप के डोनर से खून ले सकता है, इसलिए इसे 'यूनिवर्सल रेसिपिएंट' कहा जाता है और इसी तर्ज़ पर O ब्लड ग्रुप के लोग किसी भी ब्लड ग्रुप के मरीज़ को अपना रक्तदान कर सकते हैं, इसलिए इन्हे 'यूनिवर्सल डोनर' कहा जाता है. ये बात भी हममें से ज्यादातर लोगों को पता होगी. लेकिन आप में से शायद ही किसी ने 'बॉम्बे ब्लड ग्रुप' (Bombay Blood Group) के बारे में कभी सुना होगा.

दुनियाभर में बेहद दुर्लभ माने जाने वाले इस ब्लड ग्रुप की बात आज हम इसलिए भी कर रहे हैं, क्योंकि देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में इन दिनों इस विशेष और बेहद दुर्लभ ब्लड ग्रुप की मांग में अचानक तेज़ी आई है. इस ख़ास ब्लड ग्रुप के लिए लंबे समय से काम करने वाली संस्था ‘थिंक फाउंडेशन’ से मिली जानकारी के अनुसार, पिछले एक सप्ताह में शहर के अलग-अलग अस्पतालों में 5 मरीज़ों के लिए इस दुर्लभ ब्लड ग्रुप की ज़रूरत देखी गई. इस दौरान मुंबई के नायर अस्पताल, जेजे, टाटा और हिंदुजा हॉस्पिटल में इस ब्लड ग्रुप के मरीज़ भर्ती हुए हैं.

आखिर क्या है बॉम्बे ब्लड ग्रुप?
मुंबई के नायर हास्पिटल के मेंडिकल इंटेंसिव केयर यूनिट रेजिडेंट डॉक्टर प्रशांत साल्वे ने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक यह रेयरेस्ट ऑफ रेयर ब्लड टाइप दुनिया में सिर्फ 0.0004 फीसदी लोगों में ही पाया जाता है, जबकि भारत में यह तक़रीबन 10 हज़ार व्यक्तियों में एक व्यक्ति में पाया जाता है. इस रक्त समूह की खोज सबसे पहले बंबई (अब मुंबई) में 1952 में डॉक्टर वाई एम भेंडे द्वारा की गई थी, जिसके चलते इस ब्लड ग्रुप का नाम 'बॉम्बे रक्त समूह' पड़ा. इस ब्लड ग्रुप को Hh और oh रक्त समूह भी कहते हैं. बॉम्बे ब्लड ग्रुप वाला व्यक्ति ABO ब्लड ग्रुप वाले को ब्लड दे सकता है. परन्तु इनसे ब्लड ले नहीं सकता है. यह सिर्फ अपने ही ब्लड ग्रुप यानी Hh ब्लड टाइप वालों से ही ब्लड ले सकता है. यहां ये बताना ज़रूरी है कि इस ब्लड ग्रुप वालों की ज़िंदगी बिल्कुल सामान्य होती है और उन्हें शारीरिक तौर पर कोई समस्या नहीं होती. 

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ये ब्लड ग्रुप इतना दुर्लभ है कि भारत में तक़रीबन 10 हज़ार लोगों में से 1 व्यक्ति इस ब्लड ग्रुप का होता है. अगर किसी मरीज को इस ब्लड ग्रुप की जरूरत पड़ जाए, तो कम समय में इसके लिए डोनर मिलना बेहद मुश्किल होता है. क्योंकि ब्लड बैंकों में इस ब्लड ग्रुप को स्टोर नहीं किया जाता. यहां तक कि सिर्फ कुछ ही ऐसे ब्लड बैंक हैं जहां इसके डोनर का डेटा रिकॉर्ड रखा गया है. आमतौर पर ये ब्लड बैंक जरूरत पड़ने पर कुछ संस्थाओं को संपर्क करती हैं जिनके पास इस ब्लड ग्रुप के डोनर्स की जानकारी होती है.

नायर हॉस्पिटल के डॉ रोज़मेरी डिसूज़ा ने बताया कि देश में गिनी चुनी ही कुछ गैर सरकारी संस्थाएं हैं जो ऐसे ब्लड ग्रुप के लोगों की रजिस्ट्री बनाकर रखते हैं. ऐसी ही एक संस्था है थिंक फाउंडेशन. मुंबई समेत महाराष्ट्र के सभी अस्पतालों में जब इस ब्लड ग्रुप का कोई मरीज़ भर्ती होता है और उसे खून की ज़रूरत पड़ती है तो ज्यादातर समय इस संस्था को संपर्क किया जाता है फिर ये संस्था अपने पास मौजूद डेटा के आधार पर इस दुर्लभ ब्लड ग्रुप के डोनर, ज़रूरतमंद और अस्पताल से को-ऑर्डिनेशन करता है. 

कई बार मुंबई में भर्ती किसी मरीज़ के लिए 200-300 किलोमीटर दूर सातारा, सांगली जिल्हे का कोई डोनर रक्त दान करता है. थिंक फाउंडेशन के संस्थापक विनय शेट्टी के मुताबिक उनके पास देश भर से इस ब्लड ग्रुप के तक़रीबन 450 लोग रजिस्टर्ड हैं जबकि इनमें से एक्टिव डोनर्स महज़ तक़रीबन 40 ही हैं. ये ब्लड ग्रुप कितना दुर्लभ है इसका अंदाज़ा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि कई बार दिल्ली, पंजाब, पश्चिम बंगाल के किसी मरीज़ के लिए इस ब्लड ग्रुप की मांग पर मुंबई या महाराष्ट्र के रजिस्टर्ड डोनर्स से रक्तदान करवाकर उसे इन राज्यों के लिए एयर लिफ्ट भी करवाया जाता है.

मुंबई के रहने वाले सचिन सोनटके ऐसे ही एक ख़ास ब्लड डोनर हैं जिनका ब्लड टाइप 'बॉम्बे ब्लड ग्रुप' है. सचिन जैसे ख़ास डोनर्स को सिर्फ तभी रक्तदान करने के लिए कहा जाता है जब ऐसे ही किसी मरीज़ को इस दुर्लभ खून की ज़रूरत पड़ती है. ख़ास बात ये है कि ये डोनर्स अपने खर्च पर रक्तदान करने के लिए कई बार एक शहर से दूसरे शहर भी जाते हैं. सचिन भी मुंबई ही नहीं बल्कि देश के अलग अलग हिस्सों के मरीज़ों के लिए उनके मुश्किल हालात में अपना रक्तदान कर चुके हैं. वे अपने आप को सौभाग्यशाली मानते हैं.

आमतौर पर कई बार बॉम्बे ब्लड ग्रुप के लोगों को O ग्रुप समझने की गलती की जाती है और जब इन लोगों को खून की ज़रूरत पड़ती है तभी पता चल पाता है कि वे O ग्रुप नहीं बल्कि बॉम्बे ग्रुप के हैं. ब्लड ग्रुप पहचानना एक वैज्ञानिक तरीका है, आसान शब्दों में अगर समझने की कोशिश करें तो मूलतः खून में पाए जानेवाले रेड ब्लड सेल्स पर A एंटीजेंट पाया जाने पर उसे A ग्रुप, B एंटीजेंट पाये जाने पर उसे B ग्रुप, दोनों एंटीजेंट पाए जाने पर AB ग्रुप और दोनों ही एंटीजेंट ना पाए जाने पर O ग्रुप माना जाता है. लेकिन O ब्लड ग्रुप की तर्ज़ पर ही बॉम्बे ब्लड ग्रुप में भी A और B दोनों ही एंटीजेंट नहीं पाए जाते हैं. 

साथ ही इसमें एक और एंटीजेंट H भी नहीं पाया जाता. आमतौर पर सामान्य पैथोलॉजी लैब में ये पता करना मुश्किल है कि आप O ग्रुप के नहीं बल्कि बॉम्बे ब्लड ग्रुप के हैं क्यूंकि इसकी जांच के लिए ख़ास तकनीक की ज़रूरत पड़ती है. A, B, AB और O ग्रुप की तरह बॉम्बे ब्लड ग्रुप में भी पॉजिटिव और नेगेटिव ग्रुप पाए जाते हैं. बॉम्बे ब्लड ग्रुप - नेगेटिव और भी ज्यादा दुर्लभ है. सामान्य तौर पर इस ब्लड ग्रुप को 35 से 45 दिनों पर प्रिसर्व किया जा सकता है जबकि क्रायो प्रिजर्वेशन नाम की तकनीक से इसे एक साल तक संरक्षित रख सकते हैं, इस तकनीक में ख़ून को बेहद कम तापमान पर रखा जाता है लेकिन भारत में इस तकनीक का इस्तेमाल बहुत कम जगह होता है.

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