Maratha Reservation Bill: मराठा आरक्षण क्या कोर्ट में टिकेगा? संदेह है तो शिंदे सरकार ने क्यों किया ऐसा
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Maratha Reservation Bill: मराठा आरक्षण क्या कोर्ट में टिकेगा? संदेह है तो शिंदे सरकार ने क्यों किया ऐसा

Maharashtra News: एकनाथ शिंदे सरकार ने मराठा आरक्षण बिल तो पास करा लिया लेकिन यह पहला कदम है. असली टेस्ट तो कोर्ट में है क्योंकि 10 साल में ऐसे दो बिल कानूनी समीक्षा में टिक नहीं पाए. कानूनी एक्सपर्ट और विपक्ष के नेता भी संदेह जता रहे हैं तो सरकार ने ऐसा फैसला क्यों लिया?

Maratha Reservation Bill: मराठा आरक्षण क्या कोर्ट में टिकेगा? संदेह है तो शिंदे सरकार ने क्यों किया ऐसा

Maratha Aarakshan News: महाराष्ट्र में शिक्षा और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को एक अलग श्रेणी में 10 प्रतिशत आरक्षण देने वाला बिल पास हो गया है. विपक्ष ने समर्थन तो किया लेकिन चुनाव से ठीक पहले सरकार की मंशा पर सवाल भी खड़े कर रहा है. दरअसल, यह 6 साल के भीतर समुदाय को आरक्षण देने का दूसरा प्रयास है. विपक्षी नेताओं ने कहा है कि कानूनी समीक्षा में इस बिल के सफल होने पर उन्हें संदेह है. सवाल यह है कि अगर ऐसा है तो चुनाव से ठीक पहले सरकार ने यह दांव क्यों चला? गौर करने वाली बात यह है कि भूख हड़ताल पर बैठे आंदोलनकारी मनोज जरांगे भी इस बिल से खुश नहीं हैं. ऐसे में यह समझना दिलचस्प है कि वो कौन सा तर्क है जिस पर शिंदे सरकार कॉन्फिडेंट दिख रही है. 

महाराष्ट्र में 28% मराठी

जरांगे मराठा समुदाय के लिए ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण की मांग पर अड़े हैं. महाराष्ट्र की कुल आबादी में मराठों की हिस्सेदारी 28 प्रतिशत है. बिल में कहा गया है कि बड़ी संख्या में जातियां और समूह पहले से ही आरक्षित श्रेणी में हैं. इस तरह कुल मिलाकर करीब 52 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है. ऐसे में मराठा समुदाय को OBC श्रेणी में रखना पूरी तरह से अनुचित होगा. विधेयक में कहा गया है कि मराठा वर्ग का पिछड़ापन पिछड़े वर्गों और विशेष रूप से ओबीसी से इस मायने में अलग है कि यह अपने प्रसार के मामले में ज्यादा व्यापक है. 

विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि एक बार आरक्षण लागू हो जाने पर 10 साल बाद इसकी समीक्षा की जा सकती है. राज्य में अभी दिए 52 प्रतिशत आरक्षण में अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 7 प्रतिशत, ओबीसी को 19 प्रतिशत, विशेष पिछड़ा वर्ग को 2 प्रतिशत बाकी अन्य के लिए हैं. 

सीएम शिंदे का तर्क

- कल महाराष्ट्र विधानसभा में विधेयक पेश करने के बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि देश के 22 राज्य 50 प्रतिशत आरक्षण का आंकड़ा पार कर चुके हैं. 
- उन्होंने उदाहरण के तौर पर तमिलनाडु में 69 प्रतिशत, हरियाणा में 67 प्रतिशत, राजस्थान में 64 प्रतिशत, बिहार में 69 प्रतिशत, गुजरात में 59 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 55 प्रतिशत आरक्षण की बात कही. 
- आगे बोले कि मैं दूसरे राज्यों का भी जिक्र कर सकता हूं... हमारा उद्देश्य मराठा समुदाय की मदद करना है. 
- एनसीपी (अजीत गुट) और भाजपा के साथ मिलकर सरकार चला रहे शिंदे ने कहा कि हम राज्य में ओबीसी के मौजूदा कोटे को छुए बगैर मराठा समुदाय को आरक्षण देना चाहते हैं. मराठा आरक्षण का लाभ पाने के लिए 40 साल से संघर्ष कर रहे हैं. 

डेटा समझेगा कोर्ट, शिंदे को भरोसा

हां, सीएम ने कहा कि मराठा समाज सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा है. स्टेट बैकवर्ड कमीशन ने यह सिद्ध किया है. ढाई करोड़ से ज्यादा लोगों से डेटा कलेक्ट किया गया है. यह कोटा निश्चित रूप से कोर्ट में टिकेगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने जो खामियां निकाली थीं, उसे ध्यान में रखकर यह डीटेल सर्वे किया गया है. इसलिए कोर्ट भी सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगा क्योंकि मराठा समुदाय के कई लोग आत्महत्या कर रहे हैं. यह एक अपवाद वाली स्थिति है. ऐसे समय में सरकार ने यह उचित निर्णय लिया है. 

उधर, अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे कार्यकर्ता जरांगे बिल पारित होने से नाखुश हैं. उन्होंने कहा है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि महाराष्ट्र सरकार 10 प्रतिशत या 20 प्रतिशत आरक्षण देती है, आरक्षण ओबीसी श्रेणी के तहत होना चाहिए, अलग नहीं होना चाहिए. उन्होंने भी आशंका जताई है कि ओबीसी श्रेणी के बाहर अलग आरक्षण कानूनी चुनौतियों का सामना कर सकता है क्योंकि इससे आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक हो जाएगी. 

विपक्ष बोला, सब दिखावा है

NCP के संस्थापक शरद पवार ने कहा है कि मराठा आरक्षण बिल का यह मसौदा पहले वाले कानून की तरह ही है, जो सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा में टिक नहीं सका था. कांग्रेस और उद्धव ठाकरे गुट के शिवसेना नेताओं ने इसे दिखावा और चुनाव को ध्यान में रखकर उठाया गया कदम बताया है. राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा कि मराठा आरक्षण पर कानून पहले भी पारित किया गया था, लेकिन उसे SC ने खारिज कर दिया. चुनाव से पहले सुविधाजनक रूप से यह बिल पारित कराया गया है. उन्होंने आरोप लगाया कि यह चुनाव जीतने के लिए एक दिखावा है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या सरकार ने सिर्फ प्रोटेस्ट रोकने के लिए बिल पारित कराया है. 

यह विधेयक विधानसभा के बाद विधान परिषद में भी सर्वसम्मति से पारित हो गया है. अब इसे राज्यपाल रमेश बैस के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा. (एजेंसी इनपुट के साथ)

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