नासा (NASA) की ताजा स्टडी ने 2030 में दुनिया में विनाशकारी बाढ़ (Record Flooding) का अंदेशा जताया है. यह बाढ़ इतनी भीषण होगी कि शहर के शहर ही जलमग्न हो सकते हैं और समुद्र का जलस्तर काफी ज्यादा बढ़ जाएगा.
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नई दिल्ली: साल 2020 से पूरी दुनिया में एक वायरस ने तबाही मचाई हुई है. कोरोना वायरस दुनिया की अब तक की सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है जिससे निपटने के लिए सब कोशिशों में जुटे हैं. ऐसे समय में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने एक और चिंता बढ़ाने वाली खबर दुनिया को दी है.
नासा की एक स्टडी के मुताबिक अब से 9 साल बाद पूरी दुनिया पर जलप्रलय का एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है. नासा ने चेतावनी दी है कि 2030 में विनाशकारी बाढ़ आने का अंदेशा है और उस बाढ़ की वजह धरती से कई लाख किलोमीटर दूर चांद की जगह में बदलाव होगा.
जलप्रलय जब भी आती है तब सब कुछ तबाह कर जाती है. तटीय इलाकों में इस तरह की बाढ़ अब आम हो चुकी है. जब समुद्र से उठने वाली ऊंची-ऊंची लहरें पूरे के पूरे शहर को जलमग्न कर देती हैं. लेकिन आने वाले समय में ये खतरा इतना बढ़ने वाला है कि हर तरफ सिर्फ तबाही ही तबाही नज़र आएगी.
इस भीषण तबाही की वजह धरती से करीब 3.5 लाख किलोमीटर दूर चांद पर होगी. चांद आज से 9 साल बाद दुनिया के तटीय इलाकों में भयंकर तबाही मचाने वाला है और इसकी चेतावनी खुद नासा ने दी है. स्टडी के मुताबिक 2030 में हाई टाइड की वजह से आने वाली बाढ़ बेहद विनाशकारी होगी.
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इस बाढ़ की वजह चांद का अपनी कक्षा से डगमगाना होगा. नासा के मुताबिक 2030 तक ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से समुद्री जलस्तर काफी बढ़ जाएगा और बढ़े जलस्तर में जब चांद अपनी जगह बदलेगा तो हाईटाइड का खतरा बढ़ जाएगा जिससे विनाशकारी बाढ़ आएगी.
नासा की ये स्टडी क्लाइमेट चेंज पर आधारित जर्नल नेचर में 21 जून को प्रकाशित की गई है. अगर नासा की ये भविष्यवाणी सच साबित हुई तो तटीय इलाकों में आने वाली बाढ़ साल में एक या दो बार नहीं बल्कि हर महीने आया करेगी. साथ ही वो भी पहले से कहीं ज्यादा विनाशकारी क्योंकि जब भी चांद की ऑर्बिट में हल्का-फुल्का भी बदलाव आएगा तो ये बाढ़ ज्यादा नुकसानदेह हो जाएगी.
एक्सपर्ट के मुताबिक चांद पर हलचल के चलते धरती पर आने वाली बाढ़ को 'उपद्रवी बाढ़' कहा गया है. इस तरह की बाढ़ तटीय इलाकों में आती है, जब समुद्र की लहरें रोजाना की औसत ऊंचाई के मुकाबले 2 फीट ऊंची उठती हैं. इससे घर और सड़क सब जलमग्न हो जाते हैं और दैनिक कामकाज प्रभावित होता है. लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग और चांद की जगह में बदलाव इन लहरों को और ऊंचा उठा सकता है.
चांद हमेशा अपनी ग्रैविटी की वजह से समुद्री लहरों को आकर्षित करता है जिससे हाई टाइड आता है. चांद का खिंचाव और दबाव दोनों साल दर साल संतुलन बनाए हुए हैं. लेकिन अगर चांद अपनी कक्षा में जरा सा भी बदलता आता है तो इससे धरती के कई तटीय इलाकों में बाढ़ आ जाएगी. क्योंकि चांद 18.6 साल में अपनी जगह पर हल्का सा बदलाव करता है. इस पूरे समय में आधे वक्त चांद धरती की लहरों को दबाता है. लेकिन आधे वक्त ये चांद लहरों को तेज कर देता है. उनकी ऊंचाई बढ़ा देता है जो कि काफी खतरनाक है.
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नासा के मुताबिक अब चांद के 18.6 साल के पूरी साइकिल का वो आधा हिस्सा शुरू होने वाला है, जो धरती की लहरों को तेज करेंगे. ये 2030 में होने वाला है. तब तक वैश्विक समुद्री जलस्तर काफी ज्यादा बढ़ चुका होगा. इसकी वजह से दुनिया के कई देशों में तटीय इलाकों में न्यूसेंस फ्लड की समस्या होगी. इससे ज्यादा दिक्कत अमेरिका में होगी क्योंकि उस देश में तटीय पर्यटन स्थल बहुत ज्यादा हैं.
साल 1880 से समुद्री जलस्तर में 8 से 9 इंच की बढ़ोतरी हो चुकी है और पिछले 25 साल में ही इसकी एक तिहाई ऊंचाई बढ़ी है. इसकी वजह ग्लोबल वॉर्मिंग है. साल 2100 तक इसके 8.2 फीट तक बढ़ने के आसार है यानी समुद्री जलस्तर इतना बढ़ चुका होगा कि कई शहर पूरी तरह जलमग्न हो जाएंगे और कईयों का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा तो कहीं जगहों पर बाढ़ का खतरा बेहद बढ़ जाएगा.